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International Yoga Day 2019 : योग के महागुरु, जिनकी दीवानी हुई पूरी दुनिया, आप भी जानिए क्यों?
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: Madhukar Mishra
Updated Fri, 21 Jun 2019 06:01 AM IST
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योग के महागुरु
- फोटो : Rohit Jha
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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को लेकर जहां पूरी दुनिया में योग की धूम मची हुई है, उसमें आपका यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर महर्षि पतंजलि द्वारा बताई गई योग की विद्या को किन लोगों ने दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने में अपना अहम योगदान दिया और इससे जुड़ी नई तकनीक भी विकसित की। जानिए योग के महागुरुओं की पूरी जीवन यात्रा एवं उनकी उपलब्धियां —
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1. तिरुमलाई कृष्णमचार्य : मॉडर्न योग का 'पितामह'
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योग के महागुरु
तिरुमलाई कृष्णमचार्य को 'आधुनिक योग का पितामह' कहा जाता है। उनका जन्म कर्नाटक के चित्रदुर्गा में 18 नवंबर, 1888 को हुआ था। वह आयुर्वेद और योग दोनों ही विद्या के बहुत अच्छे जानकार थे। कृष्णमचार्य ने हिमालय की गुफाओं में रहने वाले योगाचार्य राममोहन ब्रह्मचारी से पतंजलि योगसूत्र की बारीकियां सीखी थीं। उन्होंने छह वैदिक दर्शनों में डिग्री की। मैसूर के महराजा के राज में उन्होंने योग को बढ़ावा देने के लिए पूरे भारत का भ्रमण किया।
कृष्णमाचार्य अपनी धड़कनों पर काबू कर सकते थे। हठयोग और विन्यास को पुन: जीवित करने का पूरा श्रेय उन्हें ही जाता है। वह अपनी सांसो की गति पर नियंत्रण रख लिया करते थे। उनके शिष्यों में के.एस. अयंगर, के पट्टाभी जोस, ए.जी. मोहन, श्रीवास्ता रामास्वामी, दिलीपजी महाराज जैसे जाने-माने योग गुरु शामिल रहे।
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2. स्वामी शिवानंद सरस्वती: योग के महास्तंभ
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योग के महागुरु
तमिलनाडु में 1887 में जन्मे स्वामी शिवानंद सरस्वती पेशे से डॉक्टर थे। लोगों का इलाज करते-करते उन्हें एक दिन लगा कि उन्हें शरीर के सभी अंगों का ज्ञान तो हो गया लेकिन वह अब भी आत्मज्ञान से अनजान हैं। इसी घटना के बाद वे आत्मा की खोज में ऋषिकेश पहुंचे और यहीं उन्होंने गुरुदीक्षा ली और यहीं से उन्होंने देश-दुनिया को योग का महाज्ञान दिया। उन्होंने योग, वेदांत और कई अन्य विषयों पर लगभग 200 से ज्यादा किताबें लिखी हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन 'शिवानंद योग वेदांत' में योग की शिक्षा देते हुए समर्पित कर दिया।
3. परमहंस योगानंद : 'एक योगी की आत्मकथा'
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योग के महागुरु
स्वामी परमहंस योगानंद अपनी एक किताब जिसका नाम 'एक योगी की आत्मकथा' है, के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी किताब इस किताब के जरिए पश्चिम के लोगों को मेडिटेशन और क्रिया योग से अवगत कराया। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 5 जनवरी 1893 को जन्में इस योगी के बचपन का नाम मुकुंद नाथ घोष था। बचपन से धर्म-अध्यात्म के प्रति रुचि होने के कारण वह कम आयु में ही गुरु को खोजने निकल पड़े। इसके बाद उनकी मुलाकात 1910 में स्वामी युक्तेश्वर गिरि से हुई। जिन्होंने इनके जीवन को नई दिशा दी।
स्वामी परमहंस योगानंद ने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। परमहंस योगानंद योग के सबसे पहले गुरु हैं, जिन्होंने अपना ज्यादातर जीवन अमेरिका में गुजारा था।
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4. महर्षि महेश योगी : ध्यान-योग का पश्चिम भी हुआ दीवाना
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योग के महागुरु
20वीं सदी में महर्षि महेश योगी ने देश और दुनिया ध्यान और योग का अलख जगाने का अद्भुत काम किया। दुनिया भर में भावातीत ध्यान और योग के माध्यम से परचम लहराने वाले महर्षि महेश योगी ने जीवन को संतुलित करने वाली इस पारंपरिक विद्या से पश्चिम को तब परिचित कराया था, जब हिप्पियों का बोल-बाला हुआ करता था। जीवन को सुखद बनाने वाली यह विधा तब चर्चा में आई जब विश्व भर में धूम मचाने वाले संगीत बैंड बीटल्स भारत आया और उनसे मस्तिष्क को एकाग्र करने वाली तकनीक को सीखने के लिए ऋषिकेश स्थित ‘चौरासी आश्रम’ पहुंच गया।
महर्षि महेश योगी के 'ट्रांसैडेंटल मेडिटेशन' या फिर कहें अनुभवातीत ध्यान का अर्थ है परे जाना। ध्यान की यह प्रक्रिया काफी सरल और सहज है। इसमें आंख मूंदकर विश्राम की अवस्था में बैठकर 15 से 20 मिनट तक प्रतिदिन दो बार किया जाता है। सबसे खास बात यह कि ध्यान की इस क्रिया को करने में किसी धार्मिक क्रिया की जरूरत नहीं पड़ती है और इसे किसी भी धर्म का व्यक्ति कर सकता है।
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