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जड़ें खोजते-खोजते माल्टा से कौशाम्बी पहुंचे हेंड्रिक, गांव की मिट्टी माथे पर लगाकर हुए भावुक 

विनोद सिंह बघेल, अमर उजाला, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Sun, 08 Mar 2020 03:11 AM IST
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Hendrik arrives in Kaushambi from Malta while searching for roots
hendrik kalka - फोटो : prayagraj

यूरोपीय महाद्वीप के छोटे से देश माल्टा में जन्में भारतीय मूल के हेंड्रिक कालका अपने लोगों को खोजते-खोजते कौशाम्बी पहुंच गए। वह काफी मशक्कतों के बाद सिराथू तहसील के उस गांव में भी गए, जहां से वर्षों पहले उनके पुरखों को अंग्रेज सूरीनाम मजदूरी कराने ले गए थे। दादा की जुबानी गांव के बारे में जो सुना था, उसी के आधार पर उन्होंने अपनी खोज शुरू की।



हालांकि, अभी हेंड्रिक अपने वंशजों तक तो नहीं पहुंच सके, लेकिन उस मिट्टी को खोज निकाला, जिसमें उनकी जड़े हैं। मालटा से प्रयागराज आए हेंड्रिक ने बताया कि इस काम में उनकी एक स्थानीय व्यापारी ने मदद की, जिससे वह फेसबुक के जरिए जुड़े थे। वह आठ मार्च को फिर कौशाम्बी जाएंगे और अपने लोगों की खोजबीन करेंगे।  

 सिराथू तहसील के कनवार गांव से 1895 में अंग्रेज बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूरों को अपने साथ सूरीनाम में ले गए, जिसमें सीताराम लोध भी शामिल थे। तमाम यातनाएं झेलते हुए सीताराम ने अपने बच्चों और परिवार का भरण पोषण किया। सीताराम ही हेंड्रिक कालका (74) के दादा थे। हैंड्रिक ने बताया, जब वह 12 वर्ष के थे, तब उनके दादा का निधन हो गया था।

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prayagraj news - फोटो : prayagraj
वह बचपन में उनसे अपने पैतृक देश भारत और कौशाम्बी के कनवार गांव के बारे में सुनते आए थे। उनके मन में हमेशा अपनी मिट्टी को देखने की लालसा थी। अपने लोगों से मिलने और उनसे जुड़ने की इच्छा थी। यही वजह थी कि माल्टा में कंपनी डायरेक्टर के पद से रिटायर होने के बाद वह तीन मार्च को प्रयागराज आ पहुंचे। यहां उनकी मदद पवन तिवारी नाम के एक व्यवसायी ने की, जो उनसे फेसबुक के जरिए काफी पहले से जुड़े थे। 

 कालका ने बताया कि स्थानीय होने के नाते पवन तिवारी ने उनकी काफी मदद की। काफी खोजबीन करते हुए जब वह रेलवे लाइन और पुराना पीपल का पेड़ खोजते हुए सिराथू के कनवार गांव पहुंचे, तब सबसे पहले उन्होंने गांव की मिट्टी को माथे से लगाया। लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि यहां लोध परिवार के कुछ लोग रहते थे, जो गांव के दूसरे छोर पर नयापुरवा में बस गए हैं।


नयापुरवा में प्रताप लोध के घर जब पहुंचे तो प्रताप से मुलाकात नहीं हुई और उनके घर की महिलाएं बातचीत को तैयार नहीं थीं। हेंड्रिक को अपने दादा के भाई का नाम भी मालूम नहीं था, इस कारण वंशजों तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया। हेंड्रिक ने बताया कि वह आठ मार्च को फिर गांव जाएंगे और लोगों से बातचीत कर अपने दादा के भाई का नाम और उनके परिवार के बारे में पता करने की कोशिश करेंगे। कहा, जब गांव मिल गया है तो परिवार भी मिल जाएंगे। 
 

गांव के लिए कुछ करना चाहते हैं हेंड्रिक 

हेंड्रिक ने बताया कि वह अपने पूर्वजों की मिट्टी के लिए कुछ करना चाहते हैं। गांव में अपने दादा के नाम से स्कूल, सामुदायिक भवन या स्कूलों में भवन और स्कॉलरशिप की योजना बना रहे हैं। कनवार 15 मजरों का बड़ा गांव है। उनके परिवार से संबंधित लोध जाति के कुछ लोग नयापुरवा में मिले हैं, जो खेतीबारी से जुड़े हैं। बताया कि 10 मार्च को उन्हें माल्टा रवाना होना है। वह शीघ्र ही पूरी योजना के साथ फिर गांव के विकास के लिए आएंगे। 
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