भारत-पाकिस्तान 1971 युद्ध के दौरान दुश्मनों को धूल चटाने वाले टी-55 टैंक कानपुर शहर की शान बन गए हैं। सेंट्रल आर्म्ड फाइट व्हीकल डिपो किरकी, पुणे से दो टी-55 टैंक मंगलवार सुबह शहर पहुंचे। उन्हें छावनी के शंख चौक और महात्मा गांधी पार्क के पास रखा गया है।
Indo-Pak War 1971: कानपुर की शान बने पाक को धूल चटाने वाले टी-55 टैंक, 14 किमी थी मारक क्षमता, देंखे तस्वीरें
टैंक चौक नाम से जाने जाएंगे, सेल्फी भी ले सकेंगे
छावनी बोर्ड, सेना की जवानों की मदद से शंख चौक और महात्मा गांधी चौराहा के पास रखा गया है। आने वाले समय में इन चौराहों का नाम टैंक चौराहा किया जाएगा। जल्द ही इन स्थानों को और विकसित, रंग रोगन और सजाकर सेरेमनी कार्यक्रम किया जाएगा। कोई भी व्यक्ति इन टैंकों के साथ सेल्फी ले सकेगा।
टैंक की खासियत
टैंक की लंबाई 9 मीटर, चौड़ाई 3.7 मीटर है। ऊंचाई 2.40 मीटर है। इसका वजन करीब 36 हजार किलोग्राम है। इसमें लगी मुख्य गन 100 एमएमडी, 10 टी और माध्यमिक गन 12.5 एमएम मशीनगन भी लगी होती थी। साथ ही एंटी एयरक्राफ्ट गन भी लगती थी। इससे दुश्मनों के लड़ाकू विमानों को भी मार गिरा सकता था।
अब शहर में हो गए चार टैंक
कानपुर में अब चार टैंक हो गए हैं। इससे पहले 1971 के युद्ध में ही पाकिस्तानियों के हौसले पस्त करने वाला और देश में बना पहला युद्धक टैंक विजयंता एक जून 2020 को फील्डगन फैक्टरी के मुख्य द्वार पर स्मारक के तौर पर स्थापित किया गया था। यहां पर दो टैंक रखे गए थे।
विजयंता का निर्माण चेन्नई स्थित हैवी व्हीकल फैक्टरी अवाडी में किया गया था। यह टैंक 1963 में शुरू होकर 1965 में तैयार हुआ। शुरुआत में भारतीय सेना को 2200 टैंक दिए गए थे। इसकी मारक क्षमता 4000 मीटर व भार 39 टन था।