कन्नौज लोकसभा सीट से डिंपल की हार ने राजनीति के कई धुरंधरों की सियासी गणित पर प्रश्न चिन्ह जरूर लगा दिये हैं। कन्नौज सीट पर अखिलेश और मायावती की जोड़ी ने जमकर चुनाव प्रचार किया। इतना ही नहीं जनता तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास किया। इटावा से भाजपा प्रत्याशी रामशंकर कठेरिया ने जीत दर्ज की तो कन्नौज में भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को शिकस्त दी। इसके साथ भाजपा ने इन दोनों गढ़ों को ध्वस्त कर दिया।
मोदी के‘राष्ट्रवाद’ ने सपाई किले को ढहा दिया। ‘राष्ट्रवाद’ के आगे सारे मुद्दे धरे रह गए। लोगों ने भाजपा को खुलकर वोट किया। सुब्रत पाठक की जीत ने साबित कर दिया कि पीएम मोदी ‘राष्ट्रवाद’के मुद्दे को देश के सामने रखने में और उसके दम पर भाजपा के पक्ष में लहर बनाने में कामयाब रहे। एयर स्ट्राइक के मुद्दे पर भी मोदी को भारी जन समर्थन मिला।
बता दें कि मायावती ने कन्नौज में डिंपल के समर्थन में चुनावी सभा की। इस दौरान डिंपल ने मायावती के पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया था। मायावती ने डिंपल को अपने परिवार की सदस्य भी बताया था। इन तमाम बातों के बावजूद जनता के दिलों तक वो बातें नहीं पहुंच पाईं जो सपा-बसपा गठबंधन पहुंचना चाहता था। इस सीट को मुलायम परिवार के गढ़ के रूप में देखा जाता रहा है। इसी सीट 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर डिंपल संसद तक पहुंची थीं।
2014 की मोदी लहर भी डिंपल की जीत को रोक पाने में असफल रही थी। लेकिन 2019 में सियासी गणित इस कदर बिगड़े कि डिंपल को अपने गढ़ में हार का सामना करना पड़ा।
इस चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन होने के बावजूद डिंपल का हारना कई सवाल खड़ा कर गया। सियासी पंडितों के अनुसार दोनों पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को एक-दूसरे के खाते में ट्रांसफर करने में नाकामयाब रहे।