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Vidisha: एमपी का अनूठा दशहरा, यहां रावण की सेना गोफन से बरसाती है रामा दल पर पत्थर

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, विदिशा Published by: शबाहत हुसैन Updated Wed, 25 Oct 2023 02:00 PM IST
सार

Vidisha: विदिशा के कालादेव गांव में अनूठा दशहरा मनाया जाता है। यहां दशहरे पर रावण की विशालकाय पाषाण प्रतिमा के सामने राम का ध्वज उठाये वाली राम की सेना पर रावण की सेना द्वारा गोफन से पत्थरों की बौछार की जाती है।

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Unique Dussehra is celebrated in Vidisha
पत्थर बरसाते लोग - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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विदिशा जिला मुख्यालय से करीब 130 किमी दूर लटेरी ब्लॉक का ग्राम कालादेव अपने अनूठे दशहरे के लिए जाना जाता है, यहां दशहरे पर राम का ध्वज उठाने जाने वाली राम की सेना पर रावण की सेना द्वारा गोफन से पत्थरों की बौछार की जाती है। मान्यता यह है कि पत्थरों की इस बौछार में रामादल का कोई भी व्यक्ति घायल नहीं होता। सदियों पुरानी इस परम्परा में रावण की सेना का प्रतिनिधित्व आसपास के आदिवासी और बंजारा समाज के लोग करते हैं।

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दशहरे पर होता है अनूठा आयोजन

भोपाल से करीब 180 किमी दूर बैरसिया, महानीम चौराहा, लटेरी और आनंदपुर होते हुए कालादेव पहुंचा जा सकता है, आनंदपुर से इस गांव की दूरी 25 किमी है। यहां दशहरे पर अनूठा आयोजन होता है। मैदान में रावण की एक विशाल प्रतिमा है जिसे सजाया जाता है। शाम के समय दूर-दूर से लोग आकर दशहरा मैदान मेें एकत्रित होते हैं।

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लगाया जाता है राम का ध्वज
 

मैदान में रावण की प्रतिमा से करीब 200 मीटर दूर राम का ध्वज लगाया जाता है। जिसकी परिक्रमा करने के लिए कालादेव के स्थानीय लोग आते हैं, जिनकी संख्या लगभग 200 तक होती है। यही लोग राम की सेना के प्रतीक माने जाते हैं। शर्त यह होती है कि इस सेना में कालादेव के स्थानीय लोग ही शामिल हों, बाहरी व्यक्ति इस रामादल में शामिल नहीं हो सकता। अगर हो गया तो उसे पत्थरों की चोट लगने की संभावना रहती है।


पत्थरों की होती है बौछार 
 

गांव के ये लोग यानी रामादल के लोग जैसे ही ध्वज की परिक्रमा करने जाते हैं, वैसे ही रावण की प्रतिमा के पास लाइन से खड़े आदिवासियों और बंजारों की टोली अपने परंपरागत देसी हथियार (गोफन) से पत्थरों की बौछार शुरू कर देते हैं। इस आयोजन से पहले रावण की प्रतिमा के पास आदिवासियों द्वारा पत्थरों का ढेर लगाकर अपनी गोफन तैयार कर ली जाती हैं, पत्थरों के इस हमले में रामादल का कोई भी व्यक्ति घायल नहीं होता और वे राम की जय जयकार कर अपने स्थान पर पहुंच जाते हैं और फिर आदिवासी वापस लौट जाते हैं। 

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