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UP: सूरज, शेर, भेड़िया...सिक्कों पर ऐसे चिह्न, मथुरा के बहाज में मिला 800 ईसा पूर्व का खजाना

अमित कुलश्रेष्ठ, अमर उजाला, आगरा Published by: अरुन पाराशर Updated Tue, 30 Dec 2025 04:48 PM IST
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सार

उत्खनन में तांबे के छह ढलवां सिक्के मिले हैं, जिन पर हाथी और चैत्यवृक्ष जैसे चिह्न हैं। उत्खनन में बहुत घिसे हुए सिक्के मिले। अध्ययन के मुताबिक यह कम से कम 200 साल तक चलन में रहे होंगे। इस आधार पर इन्हें ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी का माना जा रहा है।
 

hoard of coins dating back to 800 BC has been discovered in Bahaj in Mathura
मथुरा में उत्खनन में मिले सिक्के। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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मथुरा के पास गोवर्धन पर्वत और डीग के बीच बहाज में 800 ईसा पूर्व के सिक्कों का ऐसा खजाना मिला है जो सिक्कों के प्रचलन से जुड़े इतिहास को बदल देगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने दो चरणों में बहाज के वज्रनाभ का खेड़ा टीले पर उत्खनन किया, जिसमें 800 ईसा पूर्व से गुप्त काल तक के 220 सिक्के और 47 कौड़ियां मिलीं। इनकी वैज्ञानिक जांच और रासायनिक सफाई के बाद सूरज, तीन आर्च वाली पहाड़ी, जानवर खासकर शेर की आकृतियां मिली हैं।
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एएसआई के जयपुर सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. विनय कुमार गुप्ता के निर्देशन में बीते साल से उत्खनन शुरू किया गया। दो चरणों में यहां चांदी के सात आहत सिक्के (सिल्वर पंच) मिले हैं, जो आयताकार हैं और इनका वजन 3 से 3.3 ग्राम है। यह मौर्य काल से पहले का सिक्का है जो बेहद घिसा हुआ मिला। तांबे के पंच वाले 18 सिक्के मिले, जिनमें 14 एक साथ पाए गए। इन पर शेर, भेड़िया या कुत्ता बना हुआ है। तांबे के 6 ढलवां सिक्के मिले हैं, जिन पर हाथी और चैत्यवृक्ष जैसे चिह्न हैं। उत्खनन में बहुत घिसे हुए सिक्के मिले। अध्ययन के मुताबिक यह कम से कम 200 साल तक चलन में रहे होंगे। इस आधार पर इन्हें ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी का माना जा रहा है।
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शुंग राजा सुज्येष्ठ के मिले सिक्के
डॉ. विनय कुमार गुप्ता के मुताबिक 800 ईसा पूर्व तक के सिक्कों के साथ यहां शुंग राजा सुज्येष्ठ का तांबे का सिक्का मिला है जो पहली बार पुरातात्विक स्तर पर उनके शुंग वंश के शासक होने की पुष्टि करता है। सुज्येष्ठ ने अग्निमित्र के बाद सात साल तक शासन किया था। उत्खनन में यज्ञकुंड के भीतर रेत में दबे हुए छोटे बर्तन मिले हैं, जिनमें कपड़े में लिपटे चांदी और तांबे के सिक्के थे। यह दर्शाता है कि मौर्य काल से पहले भी सिक्कों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-अर्चना में किया जाता था।

 

सिक्कों को धार्मिक रूप से चढ़ाने की थी परंपरा
उत्खनन के दौरान कुछ सिक्के छोटे बर्तन में कपड़े में लिपटे पाए गए जो प्राचीन काल से सिक्कों को धार्मिक भेंट के रूप में चढ़ाने की परंपरा को दर्शाते हैं। यहां मिट्टी के बर्तन से 47 कौड़ियां मिलीं हैं जो कुषाण काल के दौरान छोटे लेनदेन में इस्तेमाल की जाती थीं। बहज से मिले तांबे के सिक्कों में शेर और खड़े हुए इंद्रध्वज के प्रतीक अंकित हैं। भारतीय मुद्राशास्त्र में यह एक दुर्लभ मेल है। इससे पहले ऐसे सिक्के केवल सौंख में पाए गए थे। पंजाब में पाए जाने वाले तीन मेहराबों वाली पहाड़ी और अर्धचंद्र वाले सिक्के मिलने से व्यापारिक संबंधों में लेनदेन का प्रमाण मिलता है।

उत्खनन में मिले सिक्के इतिहास का ऐसा खजाना हैं जो भारतीय मुद्राशास्त्र को और प्राचीन बता रहा हैं। तांबे के सिक्के पर अभिषेक लक्ष्मी का सुंदर चित्रण किया गया है। इनकी रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय को भेजी गई है, जिसे जल्द प्रकाशित किया जाएगा। -डॉ. विनय गुप्ता, अधीक्षण पुरातत्वविद

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