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UP: दिवाली पर उल्लुओं की जान को खतरा, वन अधिकारी करेंगे पहरेदारी; जानें क्यों लोग बन जाते हैं जान के दुश्मन

अमर उजाला नेटवर्क, आगरा Published by: धीरेन्द्र सिंह Updated Sun, 27 Oct 2024 02:58 PM IST
सार

संरक्षित श्रेणी में आने वाले उल्लू की जान दिवाली के दौरान सांसत में रहती है। तंत्र पूजा के कारण दिवाली के दौरान उल्लू के शिकारियों के सक्रिय होने की आशंका है। इसे रोकने के लिए वन विभाग ने पहरेदारी बढ़ा दी है।
 

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Owls lives in danger on Diwali forest officials will guard them know why people become enemies of their lives
उल्लू। स्त्रोत सैलानी
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विस्तार
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आगरा की चंबल सेंक्चुअरी की बाह रेंज में लक्ष्मी का वाहन माने जाने वाले उल्लू की दो प्रजातियां मुआ और घुग्घू मौजूद हैं। मुआ पानी के आसपास और घुग्घू पुराने खंडहरों और पेड़ों पर रहते हैं। दोनों के नर-मादा एक जैसे होते हैं। नदी किनारे के टीलों की खुखाल, खंडहर और पेड़ों पर इनका दिखना आम है। वहीं दिवाली पर संपन्नता के लिए उल्लू की बलि का अंधविश्वास प्रचलित है। वजन, आकार, रंग, नाखून, पंख के आधार पर बलि के लिए उल्लू की तस्करी का खतरा बढ़ने से वन विभाग ने पहरेदारी तेज कर दी है।
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रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि उल्लू का वैज्ञानिक नाम स्ट्रिगिफोर्मिस है। दिवाली पर उल्लू की बलि के अंधविश्वास से रेंज में पहरेदारी बढ़ा दी है। 60 वन समितियों एवं तटवर्ती ग्रामीणों को जागरूक किया है। उल्लू को मारने और पकड़ने वाले लोग दिखने पर सूचना देने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि सेंक्चुअरी में तस्करी के मामले अभी नहीं हुए हैं, फिर भी वन विभाग सतर्क है।
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मुआ- मुआ के ऊपर के पर कत्थई, दुम गहरी भूरे रंग की, गला सफ़ेद होता है। इसकी चोंच टेढ़ी और गहरी मटमैली हरी, पैर धूमिल पीले रंग के होते हैं। इनका भोजन चिड़िया, चूहे, मेंढक और मछलियां हैं। घुग्घू- घुग्घू के शरीर का रंग भूरा रहता है। आंख की पुतली पीली, चोंच सलेटी रंग की और पैर रोएंदार और काले होते हैं। यह चूहे, मेंढक और कौओं के अंडों को खाता है।

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पौराणिक कहानियों में उल्लू बुद्धिमान
पौराणिक कहानियों में उल्लू को बुद्धिमान माना गया है। प्राचीन यूनानियों ने बुद्धि की देवी, एथेन के बारे में कहा है कि वह उल्लू का रूप धारण कर पृथ्वी पर आईं थीं। उल्लू धन की देवी लक्ष्मी का वाहन बताया गया है। हिंदू संस्कृति में माना जाता है कि उल्लू समृद्धि और धन लाता है।

हो सकती है तीन साल की सजा
भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित श्रेणी का पक्षी है। उल्लू के शिकार या तस्करी पर कम से कम तीन वर्ष सजा का प्रावधान है।
 

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उल्लू के बारे में जानें
उल्लू अपने सिर को दोनों तरफ 135 डिग्री तक घुमा सकता है। पलकें नहीं होने के कारण इनकी आंखे हरदम खुली रहती हैं। उल्लू के पंख चौड़े और शरीर हल्का होने के कारण उड़ान के समय आवाज नहीं होती।
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