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फूलों से लाखों की कमाई: इस फूल के एक बंडल की कीमत 40 हजार रुपये, डिमांड इतनी...किसानों की चमक रही किस्मत
अमर उजाला न्यूज नेटवर्क, आगरा
Published by: धीरेन्द्र सिंह
Updated Fri, 21 Nov 2025 09:54 AM IST
सार
फूलों की खेती कर किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। आगरा के बाह में ग्लेडियोलस की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।
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ग्लेडियोलस की खेती
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
खेतों में ग्लेडियोलस के लाल, बैंगनी, सफेद एवं पीले रंग के फूलों के साथ किसानों के चेहरे खिल उठे हैं। किसान फूलों को दिल्ली, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, नोएडा तक की मंडियों में भेज रहे हैं। साल दर साल फूलों की मांग बढ़ने के साथ खेती का दायरा भी बढ़ रहा है। बाह के 60 से ज्यादा गांवों के किसान परंपरागत खेती छोड़ कर फूलों की खेती करने लगे हैं। इससे उनकी आमदनी में वृद्धि हुई है।
बिजौली के किसान सोबरन सिंह और बरपुरा के किसान रामप्रकाश कुशवाह ने बताया कि दो बीघा खेत में ग्लेडियोलस के फूलों की खेती से शुरुआत की थी। अब 8 से 10 बीघा जमीन पर फूलों की खेती कर रहे हैं। ग्लेडियोलस के फूल 10 से 14 दिन तक खिले रहते हैं। इसलिए मुंबई की मंडी तक आसानी से खप जाते हैं। शानदार रंग, आकर्षक आकार, उत्कृष्ट एवं गुणवत्ता की वजह से इन फूलों का प्रयोग ज्यादातर सजावट में किया जाता है।
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बिजौली के किसान सोबरन सिंह और बरपुरा के किसान रामप्रकाश कुशवाह ने बताया कि दो बीघा खेत में ग्लेडियोलस के फूलों की खेती से शुरुआत की थी। अब 8 से 10 बीघा जमीन पर फूलों की खेती कर रहे हैं। ग्लेडियोलस के फूल 10 से 14 दिन तक खिले रहते हैं। इसलिए मुंबई की मंडी तक आसानी से खप जाते हैं। शानदार रंग, आकर्षक आकार, उत्कृष्ट एवं गुणवत्ता की वजह से इन फूलों का प्रयोग ज्यादातर सजावट में किया जाता है।
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कट-फ्लावर के रूप में गमलों एवं गुलदस्तों में लगाए जाते हैं। खेड़ा देवीदास के प्रताप सिंह, क्वारी के सतेंद्र सिंह ने बताया कि 100-120 रुपये प्रति बंडल तक फूल बिके रहे हैं। प्रति बीघा औसतन 25 हजार रुपये की लागत आती है। 1000-1200 बंडल की पैदावार होती है। मढ़ेपुरा के देवेंद्र, समोखीपुरा के रामकिशन ने बताया कि प्रति बीघा तीन गुना से ज्यादा मुनाफा होता है। इसलिए खेती का दायरा बढ़ता जा रहा है। बाह के 60 गांवों में 600 एकड़ में ग्लेडियोलस के फूलों की खेती हो रही है।
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ग्लेडियोलस का एक नाम लिली तलवार
ग्लेडियोलस लैटिन भाषा के शब्द 'ग्लेडियस' से बना है, जिसका अर्थ 'तलवार' है। ग्लेडियोलस की पत्तियों का आकार तलवार जैसा होता है। इसलिए इसे लिली तलवार के रूप में भी जाना जाता है।
ग्लेडियोलस लैटिन भाषा के शब्द 'ग्लेडियस' से बना है, जिसका अर्थ 'तलवार' है। ग्लेडियोलस की पत्तियों का आकार तलवार जैसा होता है। इसलिए इसे लिली तलवार के रूप में भी जाना जाता है।
हो रही चारे की जुगाड़
फूलों की खेती से चारे का भी जुगाड़ हो जाती है। किसानों के मुताबिक फूलों के बंडल बनाने के दौरान पत्ते डंठल चारे के रूप में बचते हैं। जिन्हें भैंस, बकरी आदि खाते है। किसानों का कहना है कि चारे की भरपाई भी ग्लेडियोलस की खेती से हो जाती है। बाजरा की फसल में हुए नुकसान से चारे के संकट से मुक्ति दिलाने में यह फसल मददगार साबित हो रही है।
फूलों की खेती से चारे का भी जुगाड़ हो जाती है। किसानों के मुताबिक फूलों के बंडल बनाने के दौरान पत्ते डंठल चारे के रूप में बचते हैं। जिन्हें भैंस, बकरी आदि खाते है। किसानों का कहना है कि चारे की भरपाई भी ग्लेडियोलस की खेती से हो जाती है। बाजरा की फसल में हुए नुकसान से चारे के संकट से मुक्ति दिलाने में यह फसल मददगार साबित हो रही है।
पार्सल के हिसाब से होती है खपत
फूलों की 24 डंडी से एक बंडल बनता है। एक पार्सल में 50-60 बंडल होते हैं। शहरों में पार्सल के हिसाब से कीमत तय होती है। आजकल दिल्ली और नोएडा की मंडी में एक पार्सल करीब 35-40 हजार रुपये में बिक रहा है।
फूलों की 24 डंडी से एक बंडल बनता है। एक पार्सल में 50-60 बंडल होते हैं। शहरों में पार्सल के हिसाब से कीमत तय होती है। आजकल दिल्ली और नोएडा की मंडी में एक पार्सल करीब 35-40 हजार रुपये में बिक रहा है।
इन गांवों में हो रही खेती
खेड़ा राठौर, बिजौली, मढ़ेपुरा, समोखीपुरा, बर का पुरा, क्वारी, सामरेमऊ, खेड़ा देवीदास, पहाड़पुरा, सन्नपुरा, तरासों, सहाबरायपुरा, क्यारी, रीछापुरा, रूपपुरा, हिंगोट खेड़ा, सीतापुर, रेंका, चांगोली, मझटीला, जैतपुर, मुढि़यापुरा, पार्वतीपुरा, गुंगावली, भदरौली, चौंसिगी, रजपुरा, कनेंरा, डेरक, प्रतापपुरा, आम का पुरा आदि।
खेड़ा राठौर, बिजौली, मढ़ेपुरा, समोखीपुरा, बर का पुरा, क्वारी, सामरेमऊ, खेड़ा देवीदास, पहाड़पुरा, सन्नपुरा, तरासों, सहाबरायपुरा, क्यारी, रीछापुरा, रूपपुरा, हिंगोट खेड़ा, सीतापुर, रेंका, चांगोली, मझटीला, जैतपुर, मुढि़यापुरा, पार्वतीपुरा, गुंगावली, भदरौली, चौंसिगी, रजपुरा, कनेंरा, डेरक, प्रतापपुरा, आम का पुरा आदि।