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UP: जानें क्या है यूएसएफडी तकनीक, जिससे सुरक्षित होंगे रेलवे ट्रैक; पटरियों की दरारों तक की देगी जानकारी
अमर उजाला न्यूज नेटवर्क, आगरा
Published by: धीरेन्द्र सिंह
Updated Fri, 21 Nov 2025 08:42 AM IST
सार
नई यूएसएफडी तकनीक से रेलवे ट्रैक की सुरक्षा की जा रही है। इस तकनीक से खामियां पहचान कर दुर्घटनाओं की रोकथाम करने में सहायता मिल रही है।
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रेलवे ट्रैक
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विस्तार
रेलवे ट्रैक की सुरक्षा अब यूएसएफडी (अल्ट्रासोनिक फ्लॉ डिटेक्शन) तकनीक से शुरू कर दी गई है। आमतौर पर रेल हादसों की बड़ी वजहों में पटरियों का खिसकना, वेल्ड टूटना और ट्रैक के भीतर बनने वाली दरारें होती हैं।
ऊंचे तापमान, भारी रेल यातायात और समय के साथ पटरियों में ऐसे बदलाव होते हैं जो पकड़ में नहीं आते और हादसे का रूप ले लेते हैं। इसी वजह से रेल मंडल ने ट्रैक सुरक्षा को आधुनिक तकनीक से मजबूत करते हुए यूएसएफडी तकनीक को अपनाया है। ये मशीनें उन कमियों को भी पकड़ लेती हैं जो सामान्य निरीक्षण में दिखाई नहीं देतीं।
पीआरओ प्रशस्ति श्रीवास्तव ने बताया कि मंडल में कुल 9 यूएसएफडी टीमें और 13 प्रशिक्षित इंजीनियर तैनात हैं। सभी को अत्याधुनिक बी-स्कैन मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं जो पटरियों की अंदरूनी स्थिति का डिजिटल रिकॉर्ड तुरंत तैयार कर लेती हैं। वेल्ड की गुणवत्ता जांचने के लिए सभी टीमों को डिजिटल वेल्ड टेस्टर भी दिए गए हैं। इससे पटरियों के जोड़ में मौजूद सूक्ष्म से सूक्ष्म खामी तुरंत पकड़ में आ जाती है।
वर्ष 2025-26 में मंडल ने 3612.1 किलोमीटर ट्रैक, 24,527 वेल्ड, 1,673 टर्नआउट और 1,745 स्विच एक्सपेंशन जॉइंट्स की विस्तृत जांच कीं। उसकी तुरंत मरम्मत भी की गई। उन्होंने बताया कि तुरंत कार्रवाई से उन स्थितियों पर समय रहते नियंत्रण पाया जा सकता है जो आगे चलकर हादसों की वजह बनती हैं।
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ऊंचे तापमान, भारी रेल यातायात और समय के साथ पटरियों में ऐसे बदलाव होते हैं जो पकड़ में नहीं आते और हादसे का रूप ले लेते हैं। इसी वजह से रेल मंडल ने ट्रैक सुरक्षा को आधुनिक तकनीक से मजबूत करते हुए यूएसएफडी तकनीक को अपनाया है। ये मशीनें उन कमियों को भी पकड़ लेती हैं जो सामान्य निरीक्षण में दिखाई नहीं देतीं।
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पीआरओ प्रशस्ति श्रीवास्तव ने बताया कि मंडल में कुल 9 यूएसएफडी टीमें और 13 प्रशिक्षित इंजीनियर तैनात हैं। सभी को अत्याधुनिक बी-स्कैन मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं जो पटरियों की अंदरूनी स्थिति का डिजिटल रिकॉर्ड तुरंत तैयार कर लेती हैं। वेल्ड की गुणवत्ता जांचने के लिए सभी टीमों को डिजिटल वेल्ड टेस्टर भी दिए गए हैं। इससे पटरियों के जोड़ में मौजूद सूक्ष्म से सूक्ष्म खामी तुरंत पकड़ में आ जाती है।
वर्ष 2025-26 में मंडल ने 3612.1 किलोमीटर ट्रैक, 24,527 वेल्ड, 1,673 टर्नआउट और 1,745 स्विच एक्सपेंशन जॉइंट्स की विस्तृत जांच कीं। उसकी तुरंत मरम्मत भी की गई। उन्होंने बताया कि तुरंत कार्रवाई से उन स्थितियों पर समय रहते नियंत्रण पाया जा सकता है जो आगे चलकर हादसों की वजह बनती हैं।