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UP: जानें क्या है माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए, जिससे होगी मथुरा हादसे के दो मृतकों की पहचान
अमर उजाला न्यूज नेटवर्क, आगरा
Published by: धीरेन्द्र सिंह
Updated Wed, 24 Dec 2025 09:32 AM IST
सार
यमुना एक्सप्रेस वे पर हुए हादसे के 11 मृतकों की पहचान हो चुकी है। वहीं दो की पहचान करने के लिए माइटोकॉन्ड्रिया से डीएनए निकाला जाएगा।
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मथुरा हादसा
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मथुरा में यमुना एक्सप्रेस-वे पर हुए भीषण हादसे में जलकर मरने वाले 15 में से 10 की पहचान डीएनए से सोमवार को हो गई थी। मंगलवार को एक और की पहचान हो गई। अभी चार की पहचान होना बाकी है। दो और मृतकों के अवशेष से डीएनए निकाल लिया गया है। जल्द ही इनकी रिपोर्ट आ जाएगी। बाकी दो के नमूनों को लखनऊ फोरेंसिक लैब भेजा जाएगा। यह नमूने बहुत ही खराब स्थिति में थे। वैज्ञानिकों को इनसे आंशिक परिणाम मिले। अब दो मृतकों के माइटोकॉन्ड्रिया से डीएनए लेकर दोबारा जांच की जाएगी।
आगरा की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में मथुरा हादसे के 15 मृतकों के जले हुए अवशेष भेजे गए थे। इनमें से कई दिन की मेहनत के बाद 10 की पहचान हो पाई थी। विज्ञानियों ने 13 नमूनों से न्यूक्लियस तकनीक से डीएनए हासिल कर लिया था। विज्ञानियों के मुताबिक, दो के अवशेष काफी खराब स्थिति में हैं। हाथ में पकड़ते ही हडि्डयां चूरा बन जा रही हैं, इसलिए एडवांस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। माइटोकॉन्ड्रिया में डीएनए होता है। माइटोकॉन्ड्रिया से डीएनए निकालने वाली हाईटेक मशीनें लखनऊ और मुरादाबाद फोरेंसिक लैब के पास है। डिप्टी डायरेक्टर अशोक कुमार ने बताया कि लखनऊ लैब में भी अवशेष की जांच कराई जाएगी।
क्या है माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए
विधि विज्ञान प्रयोगशाला के पूर्व निदेशक अतुल कुमार मित्तल ने बताया कि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया (ऊर्जा बनाने वाले अंग) में पाया जाता है, जबकि अधिकांश डीएनए नाभिक में होता है। यह एक छोटा, वृत्ताकार डीएनए होता है, जिसमें 37 जीन होते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन के लिए जरूरी होते हैं। यह केवल मां से बच्चों को मिलता है, इसलिए यह पारिवारिक रिश्तों और वंशावली को ट्रैक करने में मदद करता है। चुनौतीपूर्ण नमूनों (जैसे पुराने अवशेष) में व्यक्तियों की पहचान करने के लिए उपयोगी है, जहां नाभिकीय डीएनए खराब हो जाता है।
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आगरा की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में मथुरा हादसे के 15 मृतकों के जले हुए अवशेष भेजे गए थे। इनमें से कई दिन की मेहनत के बाद 10 की पहचान हो पाई थी। विज्ञानियों ने 13 नमूनों से न्यूक्लियस तकनीक से डीएनए हासिल कर लिया था। विज्ञानियों के मुताबिक, दो के अवशेष काफी खराब स्थिति में हैं। हाथ में पकड़ते ही हडि्डयां चूरा बन जा रही हैं, इसलिए एडवांस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। माइटोकॉन्ड्रिया में डीएनए होता है। माइटोकॉन्ड्रिया से डीएनए निकालने वाली हाईटेक मशीनें लखनऊ और मुरादाबाद फोरेंसिक लैब के पास है। डिप्टी डायरेक्टर अशोक कुमार ने बताया कि लखनऊ लैब में भी अवशेष की जांच कराई जाएगी।
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क्या है माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए
विधि विज्ञान प्रयोगशाला के पूर्व निदेशक अतुल कुमार मित्तल ने बताया कि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया (ऊर्जा बनाने वाले अंग) में पाया जाता है, जबकि अधिकांश डीएनए नाभिक में होता है। यह एक छोटा, वृत्ताकार डीएनए होता है, जिसमें 37 जीन होते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन के लिए जरूरी होते हैं। यह केवल मां से बच्चों को मिलता है, इसलिए यह पारिवारिक रिश्तों और वंशावली को ट्रैक करने में मदद करता है। चुनौतीपूर्ण नमूनों (जैसे पुराने अवशेष) में व्यक्तियों की पहचान करने के लिए उपयोगी है, जहां नाभिकीय डीएनए खराब हो जाता है।
