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हाईकोर्ट : जानबूझ कर गलत हलफनामा देना न सिर्फ गैरकानूनी बल्कि अदालत से धोखाधड़ी भी है, आयुक्त को किया बर्खास्त

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Thu, 09 May 2024 12:30 PM IST
सार

कानपुर नगर के थाना कोतवाली के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम से जुड़े मामले में जेल में बंद आरोपी की ओर जमानत याचिका के साथ पूरक हलफनामा भी दाखिल किया गया था। सुनवाई के दौरान पता चला कि पूरक हलफनामे में शपथकर्ता और अभिसाक्षी अधिवक्ता का हस्ताक्षर मौजूद नही था।

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Deliberately giving false affidavit is not only illegal but also fraud on the court, Commissioner dismissed
अदालत। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शपथकर्ता और अभिसाक्षी अधिवक्ता के हस्ताक्षर के बिना निष्पादित पूरक हलफनामा दाखिल करने पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही शपथ आयुक्त को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है। न्यायमूर्ति विक्रम डी.चौहान की अदालत ने कानपुर नगर के याची शक्ति की ओर से दाखिल जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, जानबूझ कर गलत हलफनामा देना न सिर्फ गैरकानूनी बल्कि न्याय प्रशासन में अनुचित हस्तक्षेप संग अदालत से धोखाधड़ी भी है।

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कानपुर नगर के थाना कोतवाली के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम से जुड़े मामले में जेल में बंद आरोपी की ओर जमानत याचिका के साथ पूरक हलफनामा भी दाखिल किया गया था। सुनवाई के दौरान पता चला कि पूरक हलफनामे में शपथकर्ता और अभिसाक्षी अधिवक्ता का हस्ताक्षर मौजूद नही था।
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ऐसे में नाराज अदालत ने हलफनामा देने वाले शपथ आयुक्त को निलंबित करते हुए स्पष्टीकरण तलब किया। शपथ आयुक्त कमलेश सिंह ने बताया कि पूरक हलफनामा अधिवक्ता के लिपिक के इस आश्वासन पर दिया गया था कि वह शपथकर्ता और अधिवक्ता का हस्ताक्षर बनवा देगा।

अदालत ने कहा, शपथ आयुक्त ने जानबूझकर हलफनामा देने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया। सो अदालत ने इसे गैर कानूनी के साथ ही अदालत से धोखाधड़ी करार देते हुए शपथ आयुक्त को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया। साथ ही अगले तीन वर्षो तक दोबारा नियुक्ति पर पाबंदी भी लगा दी।

इसी क्रम में शपथ आयुक्त की सील और रजिस्टर दस दिन में महानिबंधक के समक्ष देने का निर्देश दिया। अनियमित पूरक हलफनामे को निरस्त करते हुए दस हजार रुपये के जुर्माने को 15 दिन में जमा करने को कहा।

बार एसोसिएशन से भी जवाब तलब

कोर्ट ने शपथ आयुक्तों की ओर से शपथपत्रों को अभिसाक्षी के हस्ताक्षर के बिना जारी करने की प्रथा की कड़ी निंदा की। कहा,न्यायालय की ओर से बार-बार कहे जाने के बावजूद ऐसे मामलों में सक्षम प्राधिकारी और बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे शपथ आयुक्त की ओर से शपथपत्रों के निष्पादन में नियमों और प्रक्रियाओं की घोर अवहेलना जारी है। कानूनी कामकाज के मानक का स्तर उच्चतम बनाए रखना सक्षम प्राधिकारी और बार एसोसिएशन का कर्तव्य है। कोर्ट ने बार एसोसिएशन से हलफनामा देकर अब तक उठाए गए कदमों की जानकारी देने के लिए भी कहा है।

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