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High Court : पस्थितिजन्य साक्ष्य तभी मान्य जब संदेह की न हो कोई गुंजाइश, उम्रकैद के अभियुक्त को नहीं मिली राहत

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Mon, 24 Nov 2025 12:56 PM IST
सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य तभी मान्य होंगे जब उन पर संदेह की कोई गुंजाइश न रह जाए। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने 42 साल पहले इटावा के एक ट्रैक्टर चालक की हत्या में उम्रकैद पाए अशोक कुमार की दोषसिद्धि पर मुहर लगाते हुए अपील खारिज कर दी।

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High Court: Circumstantial evidence is valid only when there is no room for doubt
अदालत(सांकेतिक) - फोटो : अमर उजाला
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य तभी मान्य होंगे जब उन पर संदेह की कोई गुंजाइश न रह जाए। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने 42 साल पहले इटावा के एक ट्रैक्टर चालक की हत्या में उम्रकैद पाए अशोक कुमार की दोषसिद्धि पर मुहर लगाते हुए अपील खारिज कर दी। मामला इटावा के भरथना थाना क्षेत्र का है।

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नौ अप्रैल 1983 को ट्रैक्टर चालक गोविंद दुबे अपने परिचित अशोक और दो अन्य साथियों के साथ ईंटों की ढुलाई करने निकला था लेकिन वह घर नहीं लौटा। अगले दिन मैनपुरी की गंग नहर में उसका शव मिला। गले पर गहरी चोट से हत्या की पुष्टि हुई। पुलिस की जांच में सामने आया कि हत्या के तुरंत बाद गोविंद का ट्रैक्टर मेरठ में 32,200 रुपये में बेच दिया गया। खरीदार तबारक अली से ट्रैक्टर बरामद भी हो गया। वहीं ईंटें सह आरोपी गोरे उर्फ उजागर के घर मिलीं।
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1996 में सत्र अदालत ने आरोपी अशोक कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस आदेश को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने अपील खारिज कर दी। कहा कि यह मामला भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत ‘परिस्थितिजन्य साक्ष्य’ का एक आदर्श उदाहरण है, जहां हर कड़ी अभियोजन के पक्ष को पुष्ट करती है और आरोपी के बचाव को झूठा साबित करती है।

दोषसिद्धि के आधार

1. अंतिम बार साथ देखे जाने की मजबूत कड़ी: कोर्ट ने पाया कि मृतक आखिरी बार जिन लोगों के साथ गया था वही लोग बाद में चोरी का माल बेचते मिले।
2. आपराधिक मंशा : ट्रैक्टर की जल्दी-जल्दी बिक्री और ईंटों की बरामदगी सीधे हत्या के बाद की आपराधिक हरकत हैं।
3. साक्ष्यों की कड़ियां : कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य की हर कड़ी एक-दूसरे से जुड़कर पूरी कहानी को चित्रित करती है। इन कड़ियों का इशारा आरोपी की ओर है। लिहाजा, इन हालात में किसी तीसरी संभावना की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

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