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जवाहर हत्याकांड : फैसले के इंतजार में बीत गए 23 साल

योगेंद्र मिश्र, अमर उजाला, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Fri, 01 Nov 2019 01:13 PM IST
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Jawahar massacre: two decades spent waiting for verdict
udaybhan karwariya - फोटो : प्रयागराज
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शहर के सबसे पॉश इलाके सिविल लाइंस में सरेशाम सपा नेता और विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित की हत्या को पूरे 23 साल हो चुके हैं। अब घड़ी फैसले की है। अदालत ने निर्णय सुरक्षित कर लिया है। फैसला आज सुनाए जाने की संभावना है। यह जिले में किसी विधायक की हत्या की पहली घटना थी। हत्याकांड में मरने वाला और आरोपी दोनों ही रसूखदार राजनीतिक और दबंग परिवारों से थे, तो हत्या का तरीका भी कई मायनों में अलग था। जिले में पहली बार एके 47 जैसे अत्याधुनिक असलहे की तड़तड़ाहट सुनाई दी। पूरी घटना को प्रोफेशनल तरीके से अंजाम दिया गया। जवाहर हत्याकांड की फाइल को कई दौर की जांच और अदालती स्थगन आदेशों से निकल कर फैसले के मुकाम तक पहुंचने में पूरे दो दशक से ज्यादा का वक्त लगा। गुनहगार कौन और कौन नहीं, यह तो अदालत तय करेगी मगर ‘न्याय’ का इंतजार दोनों पक्ष बेसब्री से कर रहे हैं।

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Jawahar massacre: two decades spent waiting for verdict
kapilmuni karwariya - फोटो : प्रयागराज

13 अगस्त की वो खूनी शाम
सपा नेता जवाहर यादव उर्फ पंडित के लिए 13 अगस्त 1996 शाम जिंदगी की आखिरी शाम साबित हुई। पूरा दिन अपने लाउदर रोड स्थित कार्यालय में कार्यकर्ताओं और परिचितों के बीच बिताने के बाद करीब साढ़े छह बजे वह कार्यालय से घर अशोक नगर जाने के लिए निकले। सफेद रंग की मारुती 800 कार को गुलाब यादव चला रहा था। सहयोगी कल्लन यादव पीछे की सीट पर बैठा था। करीब पौने छह बजे जैसे ही कार सिविल लाइंस पैलेस सिनेमा घर के पास पहुंचती है, वहां से क्रास हो रही जीप से टकरा जाती है। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले सफेद रंग की एक मारुती वैन ठीक जवाहर पंडित की कार के बगल में रुकती है। गेट खुलता है और एके 47 से लैस कुछ लोग कार में बैठे जवाहर पर निशाना साध ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने लगाते हैं। कुछ मिनटों तक गोलियों की आवाज गूंजती रही। किसी को कुछ समझ में आता, इससे पहले ही वैन सवार लोग पत्थर गिरजाघर की ओर से तेजी से निकल जाते हैं। भरे बाजार गोलियां चलने से वहां सन्नाटा फैल गया। जो जहां था, वहीं दुबक गया। दुकानों के शटर बंद होने लगे। कुछ ही देर में सिविल लाइंस थाने की पुलिस और अन्य लोग घटना स्थल पर पहुंचे। अब तक जवाहर यादव की सांसे थम चुकी थीं। कार चला रहे गुलाब यादव की भी मौत हो गई थी। एक राहगीर कमल कुमार दीक्षित भी गोलियों की चपेट में आकर मारे गए थे। कल्लन गंभीर रूप से घायल था। सभी को फौरन अस्पताल ले जाया गया।

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Jawahar massacre: two decades spent waiting for verdict
surajbhan karwariya - फोटो : प्रयागराज

करवरिया परिवार पर उठीं उंगलियां
जवाहर की हत्या में उंगलियां करवरिया परिवार पर उठीं। जवाहर के भाई सुलाखी यादव ने थाने में तहरीर देकर सूरजभान करवरिया(पूर्व एमएलसी), कपिलमुनि करवरिया(पूर्व सांसद), उदयभान करवरिया(पूर्व विधायक) और उनके रिश्तेदार रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू और श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला (अब दिवंगत) पर हत्या को अंजाम देने का आरोप लगाया। सुलाखी की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी में उन्होंने खुद को घटना का चश्मदीद बताते हुए कहा कि घटना के वक्त वह अपनी टाटा सूमो गाड़ी में जवाहर यादव के ठीक पीछे चल रहे थे। गाड़ी रामलोचन यादव चला रहा था। प्राथमिकी के मुताबिक जवाहर की कार में टक्कर मारने वाली जीप में रामचंद्र उर्फ कल्लू सवार था, जिसके हाथ में राइफल थी। जबकि कपिल मुनि के पास राइफल, उदयभान के पास एके 47 और सूर्यभान के पास बंदूक थी। मौला के पास रिवाल्वर थी। रामचंद्र और मौला की भूमिका ललकारने की बताई गई है।

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vijma yadav - फोटो : प्रयागराज

तीन बार बदली विवेचना
सुलाखी यादव की तहरीर पर पुलिस कपिल मुनि, सूरजभान, उदयभान, मौला और रामचंद्र के खिलाफ हत्या, विधि विरुद्ध जमाव, हत्या का प्रयास, शस्त्र अधिनियम और सात क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट की धाराओें में मुकदमा दर्ज कर लिया। प्रारंभिक जांच सिविल लाइंस की पुलिस ने की मगर जल्दी ही जांच सीबीसीआईडी को सुपुर्द कर दी गई। कुछ दिनों की जांच के बाद विवेचना एक बार फिर बदली और जांच सीबीसीआईडी की वाराणसी शाखा को दे दी गई। वाराणसी के बाद लखनऊ शाखा को जांच स्थानांतरित हुई और अंत में 20 जनवरी 2004 को सीबीसीआईडी लखनऊ ने आरोप पत्र दाखिल किया। मुकदमे की सुनवाई शुरू होने पहले जांच ने एक बार फिर रुख बदला और सीबीसीआईडी की एक और जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। इस दौरान हाईकोर्ट के एक स्थगन आदेश से कपिल मुनि, सूरज भान और रामचंद्र के ख्रिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लग गई। सिर्फ उदयभान इस आदेश की परिधि से बाहर रहे। लिहाजा एक जनवरी 2014 को उदयभान को सरेंडर कर जेल जाना पड़ा। हाईकोर्ट का स्टे आठ अप्रैल 2015 तक चला। इसके बाद 28 अप्रैल 2015 को कपिलमुनिल, सूरजभान और रामचंद्र ने कोर्ट में सरेंडर किया। केस के सभी आरोपी फिलहाल जेल में हैं।

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Court order - फोटो : सोशल मीडिया

चार बार खारिज हुई जमानत अर्जी
जेल जाने के बाद करवरिया बंधुओं ने जमानत पर रिहा होने का भरसक प्रयास किया। मगर हर बार उनकी जमानत अर्जी अदालत ने खारिज कर दी। तीन बार जिला अदालत और चौथी बार हाईकोर्ट ने जमानत देने से इंकार कर दिया। इस बीच अभियुक्तों की अपराध से उन्मोचित करने की अर्जी भी अदालत ने लंबी बहस के बाद खारिज कर दी।

अक्तूबर 2015 से शुरू हुई गवाही
जवाहर हत्याकांड में अक्तूबर 2015 से विधिवत सुनवाई और गवाही शुरू हुई जब सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में अनावश्यक विलंब न करते हुए दिन प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई का निर्देश दिया। दोनों पक्षों की ओर से अदालत में जमकर पैरवी हुई। अभियोजन ने दो चश्मदीद गवाहों सहित कुल 18 गवाह पेश किए जबकि वादी सुलाखी यादव की मुकदमे के विचारण के दौरान मृत्यु हो गई। घटना में घायल हुए एक और चश्मदीद कल्लन की भी साक्ष्य होने से पहले ही मृत्यु हो गई। बचाव पक्ष ने खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए कुल 156 गवाह और तमाम दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए।

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क्राइम की खबरें

मौके पर मौजूदगी पर उठाया सवाल
अभियोजन और बचाव पक्ष की पूरी लड़ाई अभियुक्तगणों की घटना स्थल पर मौजूदगी को लेकर रही। चश्मदीद गवाहों और तहरीर के मुताबिक सभी अभियुक्त मौके पर मौजूद थे और उन्होंने खुद हत्याकांड को अंजाम दिया। जबकि बचाव पक्ष ने खुद को घटना स्थल से काफी दूर होने के कई साक्ष्य अदालत के प्रस्तुत किए हैं।

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दिल्ली हाईकोर्ट

केंद्रीयमंत्री ने दिया बयान
करवरिया बंधुओं के पक्ष में पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने भी बयान दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी सहित कई पत्रकारों और वकीलों की गवाही कराई गई है। 

मुकदमा वापसी की कोशिश रही नाकाम
प्रयागराज। जवाहर हत्याकांड में करवरिया परिवार को तब सबसे अधिक झटका तब लगा जब करवरिया बंधुओं पर से मुकदमा वापसी की सरकार की कोशिश नाकाम रही। तीन नवंबर 2018 को शासन से इस बाबत निर्देश मिलने के बाद विशेष अधिवक्ता रणेंद्र प्रताप सिंह ने मुकदमे की सुनवाई कर रहे एडीजे रमेश चंद्र  के समक्ष प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर मुकदमे की कार्यवाही समाप्त करने की प्रार्थना की।

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डेमो - फोटो : demo pic

अभियोजन की नजर में इसलिए कमजोर था मुकदमा
1- वादी सुलाखी यादव के घटना स्थल पर होने संबंधी साक्ष्य और बयान विश्वसनीय नहीं हैं।
0 हत्या के वक्त नामजद अभियुक्तों की घटना स्थल पर उपस्थिति संदेह से परे साबित नहीं होती है।
0 वादी सुलाखी और जवाहर पंडित के रिश्तेदार रामलोचन के पास लाइसेंसी असलहे थे। दोनों का कहना है कि वह सुरक्षा के लिए जवाहर पंडित के साथ थे मगर असलहे घर पर रखे थे। यह विश्वसनीय कथन नहीं है।
0 घटना के बाद वादी जवाहर पंडित को अस्पताल ले जाने के बजाए पुलिस के आने का इंतजार करता रहा, यह बात उसकी घटना स्थल पर उपस्थिति को संदिग्ध बनाती है।
0 घटना के वक्त कपिल मुनि करवरिया लखनऊ में थे, इसकी पुष्टि केंद्र सरकार के मंत्री कलराज मिश्र ने की है।
0 किसी भी स्वतंत्र साक्षी ने अभियुक्तों की घटना स्थल पर उपस्थिति की पुष्टि नहीं की है।
0 महाधिवक्ता उत्तर प्रदेश ने भी मुकदमा समाप्त करने पर अपना अभिमत दिया है।
अभियोजन की ओर से उठाए गए बिंदुओं पर मरहूम जवाहर यादव की पत्नी और पूर्व विधायक विजमा यादव ने आपत्ति की। वादी पक्ष का कहना था कि मुकदमे का ट्रायल लगभग पूरा हो चुका है और फैसला आने के करीब है। सुप्रीमकोर्ट ने दिन प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई का निर्देश दिया है। अदालत ने दोनों पक्षों के प्रार्थनापत्रों पर विचार के बाद वादवापसी की अनुमति देने से इंकार कर दिया।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : डेमो

हाईकोर्ट ने भी नहीं दी अनुमति
सेशनकोर्ट से नाकाम होने के बाद अभियोजन ने हाईकोर्ट की शरण ली। इस बार उदयभान करवरिया ने भी अभियोजन से इतर अपनी ओर से अर्जी दाखिल की। उदयभान ने अपनी अर्जी में स्वयं जिरह करने की अनुमति मांगी थी। मगर हाईकोर्ट ने न तो उनको जिरह की अनुमति दी और ही वाद वापसी की अर्जी स्वीकार की।

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AK-47

पहली बार गरजी थी एके 47
प्रयागराज। जवाहर यादव उर्फ पंडित की हत्या 13 अगस्त 1996 को सिविल लाइंस में अत्याधुनिक असलहों से की गई थी। यह जिले में पहला वाकया बताया जाता है जब किसी हत्याकांड में एके 47 का इस्तेमाल किया गया। पुलिस ने मौके से एके 47 के खोके और अन्य साक्ष्य घटनास्थल से एकत्र किए थे। जिनको बाद में माल मुकदमाती के तौर पर अदालत में पेश किया गया।

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