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Mahakumbh : नहाना तो दूर, आचमन लायक तक नहीं है गंगाजल, बदबू के कारण घाट पर खड़ा होना मुश्किल

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Sun, 10 Nov 2024 01:41 PM IST
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सार

महाकुंभ को दिव्य और भव्य बनाने के लिए प्रदेश सरकार और उनके अफसर दिन-रात जुटे हैं। लेकिन कुछ सरकारी विभाग ऐसे हैं जो इस पर पानी फेरने में जुटे हैं। यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रयागराज में 84 नालों का पानी बायोरेमिडिएशन प्रक्रिया से होकर गंगा में गिराया जा रहा है।

Mahakumbh: Leave aside bathing, the water of Ganga is not even suitable for bathing
गंगा में गिर रहा दूषित पानी। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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महाकुुंभ से पहले मेले के सेक्टर 22 में गंगा दुर्दशा का शिकार है। यहां के तीन घाटों पर स्नान तो दूर गंगाजल आचमन लायक नहीं है। झूंसी के दर्जन भर नालों के गंदे पानी को बगैर शोधन के सीधे गंगा में गिराया जा रहा है। यहां सैकड़ों कालोनियों और गांवों के हजारों घरों का झागयुक्त पानी गंगा में बहाया जा रहा है। ऐसे में गंगा के निर्मलीकरण को लेकर यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दावों पर पानी फिर रहा है।

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महाकुंभ को दिव्य और भव्य बनाने के लिए प्रदेश सरकार और उनके अफसर दिन-रात जुटे हैं। लेकिन कुछ सरकारी विभाग ऐसे हैं जो इस पर पानी फेरने में जुटे हैं। यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रयागराज में 84 नालों का पानी बायोरेमिडिएशन प्रक्रिया से होकर गंगा में गिराया जा रहा है। लेकिन 68 ऐसे नाले हैं, जिनका गंदा पानी बगैर शोधन के ही गंगा में गिराया जा रहा है।
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16 नाले ऐसे हैं, जिनका गंदा पानी एसटीपी से शोधित होने के बाद गंगा में डाला जा रहा है। बोर्ड के अफसरों का दावा है कि प्रत्येक एसटीपी से शोधित होने वाले नालों के पानी का हर सप्ताह नमूना लेकर सेंसर तकनीक से ऑनलाइन 24 घंटे मानीटरिंग की जाती है। बोर्ड की पिछले छह महीने की गंगा जल की जांच रिपोर्ट में पीएच, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड मानक से बेहद कम रही है। महाकुंभ केे लिए महज दो माह बचा है।

ठीक पहले गंगा के निर्मलीकरण को लेकर सवाल उठ रहे हैं। महाकुंभ के सेक्टर 22 (झूंसी) में विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों के शिविर लगेंगे। बावजूद छतनाग, ज्ञानगंगा और नागेश्वर गंगा घाट पर बगैर एसटीपी के बगैर शोधन के हजारों घरों का झागयुक्त गंदा पानी सीधे गंगा में गिराया जा रहा है। ऐसे में प्रदूषण के कारण छतनाग गंगा घाट पर पानी आचमन लायक भी नहीं बचा। इस संबंध मेंं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. सुरेशचंद्र शुक्ल से लगातार फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया लेकिन फोन कभी रिसीव नहीं हुआ।

इन्सेट-प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आरओ का नहीं उठता है फोन

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ.सुरेशचंद्र शुक्ल का फोन कभी नहीं उठता है। उनके इस रवैये को लेकर अधीनस्थ भी परेशान हैं। दफ्तर में ऐसा माहौल बना है कि उनकी मर्जी के बगैर कोई भी अधीनस्थ कुछ बता नहीं सकता। महाकुंभ शुरु होने में कुछ माह ही बचे हैं। गंगाजल की स्वच्छता को लेकर उनकी बेफिक्री और फोन न उठाने की वजह से परेशानी हो रही है।

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