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Auraiya News: सियासी उठापटक के बीच जिले ने अस्तित्व बचाने के लिए लड़ी लंबी लड़ाई

संवाद न्यूज एजेंसी, औरैया Updated Tue, 16 Sep 2025 11:19 PM IST
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Amidst political upheaval, the district fought a long battle to save its existence.
फोटो-16एयूआरपी 02- शुरुआती दौर का कलक्ट्रेट परिसर जहां आज बना है आबकारी कार्यालय। संवाद
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औरैया। 17 सितंबर 1997 का वो दिन जब औरैया जिले का जन्म हुआ। जिसने नए जिले की घोषणा की खबर सुनीं, वो या तो दंग रह गया या फिर खुशी में उछल पड़ा। इस नवजात जिले को पालने-पोसने के लिए राजपथ से टीम नियु्क्त कर दी गई। तब जिले की सरकार चलाने को पुराने मिडिल स्कूल में कलेक्ट्रेट की स्थापना हुई। लेकिन जिला विकास के रथ पर दौड़ता, उससे पहले ही अगस्त 2003 में सत्ता बदल गई। नए सीएम ने औरैया समेत नौ जिला खत्म करने की घोषणा कर दी लेकिन आंदोलन व कोर्ट में पैरवी रंग लाई और छह माह बाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से दोबारा जिले की पहचान कायम हुई।
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दरअसल, वर्ष 1997 से पहले औरैया इटावा जिले का हिस्सा था। राजनीतिक रूप से यह क्षेत्र मरहूम मुलायम सिंह यादव की कर्मस्थली था। एक दो चुनावों को छोड़ कर हर चुनाव में मुलायम के लोग ही सांसद व विधायक बनते थे लेकिन बसपा के उदय व मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद पनपी माया-मुलायम की कड़वाहट ने औरैया को जिला बनने का रास्ता दिखा दिया। इस दौरान मायावती ने गौतमबुद्ध नगर समेत दो जिलों की घोषणा कर दी। तब नगर के कुछ संभ्रांत लोगों ने मायावती को पोस्टकार्ड व अंतरदेशीय पत्र भेजने का सिलसिला शुरू किया। इसमें औरैया को जिला बनाने की मांग की गई। यह बात मायावती के मन में बैठ गई और उन्होंने मुलायम को झटका देने के लिए 17 सितंबर 1997 को कन्नौज व सात अन्य तहसीलों समेत औरैया को भी जिला बनाने की घोषणा कर दी हालांकि इसका गजट 18 सितंबर को जारी किया गया।
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पहले डीएम छक्कीलाल ने नहीं लिया था चार्ज
शासन ने छक्कीलाल को पहला डीएम नियुक्त किया लेकिन उन्होंने चार्ज लेने से इन्कार कर दिया। इसके बाद जेके सिंघल को डीएम व संजय सिंघल को एसपी नियुक्त किया गया। एसपी तो इटावा से अपने हिस्से का पुलिस फोर्स व फाइलें मांग लाए लेकिन जेके सिंघल संसाधनों के अभाव में लंबी छुट्टी पर चले गए। इस बीच सत्ता बदली और भाजपा के रामप्रकाश गुप्ता सीएम बने। तब मंत्री रामचंद्र वाल्मीकि को जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया। जिले के दौरे पर आए प्रभारी मंत्री से वकीलों, व्यापारियों व पत्रकारों ने जेके सिंघल व एडीएम दिनेश सक्सेना के छुट्टी पर चले जाने की शिकायत की। प्रभारी मंत्री के लखनऊ पहुंचते ही सुरेश चंद्र शर्मा को डीएम बनाया गया। एडीएम दिनेश सक्सेना ने भी चार्ज संभाल लिया। बस, यहीं से जिले के विकास की रफ्तार शुरू हुई।
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13 जनवरी 2004 को जिला खत्म करने की घोषणा
सूबे में अस्थिर सरकारों के दौर के बीच फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। दो अगस्त 2003 को मुलायम सिंह यादव सीएम बने। 5 सितंबर को डीएम व 7 सितंबर को एसपी को हटा दिया गया। इन दोनों का चार्ज इटावा के डीएम व एसएसपी को दे दिया गया। बस, यहीं से जिला खत्म करने की प्रक्रिया शुरु हो गई और 13 जनवरी 2004 को नवसृजित 8 अन्य जिलों व चार मंडलों समेत औरैया जिला खत्म कर दिया गया।
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14 जनवरी से शुरू हुआ जबरदस्त विरोध
जिला खत्म करने की घोषणा होते ही जिले में उबाल आ गया। 14 जनवरी को जिला बार एसोशिएसन, व्यापार मंडल समेत सामाजिक संगठनों द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर में धरना शुरू हो गया। बाजार बंदी व जुलूस निकलने लगे। पूरा शहर आंदोलन के रंग में रंग गया। छात्र, नौजवान, महिलाएं तक आंदोलन में कूद पड़ीं। इस दौरान वकीलों व व्यापारियों ने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी।
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कमलेश पाठक ने संभाली थी आंदोलन की कमान
जिला खत्म करने पर मुलायम के अति करीबी व जनता दल सरकार में मिनी मुख्यमंत्री के रूप में चर्चित हुए कमलेश पाठक ने कड़ा विरोध किया और आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले ली। कानपुर देहात की डेरापुर सीट से सपा विधायक होने के बावजूद उन्होंने मुलायम का जमकर विरोध किया। विधानसभा में जिला खत्म करने को लेकर सदन में हंगामा किया और सदन नहीं चलने दिया। कमलेश पाठक ने औरैया के सुभाष चौक पर लंगोट लहराते हुए घोषणा की थी कि दोस्ती व दल अपनी जगह है। यह मेरी मातृभूमि का सवाल है। वह जिला बरकरार रखने को कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं। बस, इसके बाद आंदोलन ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि डेढ़ माह तक यह शहर आंदोलन का गढ़ बन गया। ऐसे में हाईकोर्ट ने राहत दी और जून 2004 को जिला खत्म करने के आदेश को रद कर बहाली का आदेश दिया। लगभग छह माह के संघर्ष और पैरवी के बाद आज यह जिला विकास के नए आयाम स्थापित कर रहा है।
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मुलायम की सभा में छोड़े गए थे सांप, लहराए थे काले झंडे
जिला बचाओ आंदोलन में अग्रणी रहे बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र शुक्ला, रमेश चौरसिया व राजेश वाजपेई के मुताबिक आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह ने मई 2004 में मंडी समिति में सभा करने की घोषणा की थी। इसका कमलेश पाठक समेत पूरी संघर्ष समिति ने विरोध किया और सभा असफल कराने की घोषणा की थी। तब इस सभा में औरैया से गिनेचुने लोग ही पहुंचे थे जबकि इटावा के कार्यकर्ता यहां लाए गए थे। इस बीच मुलायम का विरोध करने को पूरे शहर के घरों के ऊपर काले झंडे लगाए गए थे। तब यह खबर भी फैली थी कि मुलायम की सभा के दौरान सभास्थल पर सांप छोड़े गए थे। इस दौरान शहर को छावनी बना दिया गया था। संघर्ष समिति के लोगों को गिरफ्तार किया गया। कमलेश पाठक की गिरफ्तारी के लिए पीएसी लगा दी गई। उनके घर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। पुलिस ने लाठियां चलाकर कईयों को पीटा था। इस दौरान जवाब देते हुए आंदोलनकारियों ने भी पथराव किया और तबके विधानसभा अध्यक्ष मरहूम धनीराम वर्मा के पैर में पत्थर लगा था।
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डीएम, एसपी से चार्ज छिनते ही शुरू हो गया था आंदोलन
5 सितंबर व 7 सितंबर 2003 को डीएम व एसपी को हटाने से जिला खत्म करने की आशंका शुरू हो गई थी। तब वकीलों व व्यापारियों द्वारा तहसील में क्रमिक अनशन शुरू कर दिया गया था। व्यापार मंडल अध्यक्ष राजेश बाजपेई व पत्रकार आनंद कुशवाहा के मुताबिक तब रमेश चौरसिया, सुरेंद्र शुक्ला, सतीश राजपूत, धर्मेश दुबे, रमेश पुरवार, शेखर मिश्रा, ओंकार नाथ चतुर्वेदी समेत तमाम लोगों ने इस आंदोलन की अगुवाई की थी।

फोटो-16एयूआरपी 02- शुरुआती दौर का कलक्ट्रेट परिसर जहां आज बना है आबकारी कार्यालय। संवाद

फोटो-16एयूआरपी 02- शुरुआती दौर का कलक्ट्रेट परिसर जहां आज बना है आबकारी कार्यालय। संवाद

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