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UP: बरेली के फर्नीचर को मिलेगी वैश्विक पहचान, कारोबार में आएगा बूम; सालाना सौ करोड़ से ज्यादा का है टर्नओवर

अमर उजाला ब्यूरो, बरेली Published by: मुकेश कुमार Updated Tue, 13 May 2025 12:48 PM IST
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सार

बरेली में बने फर्नीचर की देशभर में मांग है। शहर के सिकलापुर में करीब सौ वर्षों से फर्नीचर का कारोबार हो रहा है। इस उद्योग से करीब 12 हजार कामगर से जुड़े हुए हैं। 

Bareilly furniture industry will get global recognition business will boom
शोरूम में रखा फर्नीचर - फोटो : अमर उजाला
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एक जिला एक उत्पाद योजना में वुड प्रोडक्ट (फर्नीचर, प्लाईवुड) को शामिल किए जाने से बरेली के फर्नीचर को वैश्विक पहचान मिलेगी। उद्यमियों ने कुशल कामगारों की कमी, उत्पादन के सापेक्ष कच्चे माल की अनुपलब्धता सहित अन्य अड़चन दूर होने पर सालाना कारोबार सौ करोड़ से बढ़कर दो हजार करोड़ पहुंचने का अनुमान जताया है।

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बरेली की जरी-जरदोजी, बांस-बेत के उत्पादों की मांग दुनियाभर में हैं। यहां के वुडेन फर्नीचर की भी अलग पहचान है। सिकलापुर में करीब सौ वर्षों से फर्नीचर का कारोबार हो रहा है। कुमार टॉकिज, शाहदाना समेत जिले में बड़े पैमाने पर फर्नीचर का काम होता है। 
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शहर में ही करीब 12 हजार कामगार फर्नीचर तराश रहे हैं। समय के साथ डिजाइन, काम के तरीके में बदलाव आया है, पर आज भी करीब 80 फीसदी कार्य हाथों से होता है। यहां के कारीगर मनचाही डिजाइन में फर्नीचर बनाने में दक्ष हैं। दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात समेत अन्य राज्यों में बरेली के फर्नीचर की जबर्दस्त मांग है।  

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यहां के रॉकिंग चेयर की देशभर में मांग 
फर्नीचर कारोबारियों के मुताबिक, बरेली में तैयार रॉकिंग चेयर पर वर्ष 2007 में एक फिल्म स्वामी बन चुकी है। इसमें इस कुर्सी को खरीदने के लिए एक व्यक्ति का संघर्ष दर्शाया गया है। गौरव गर्ग के मुताबिक, शीशम से बनी कुर्सी का आकार आधे चांद जैसा होता है। हाथ की बारीक नक्काशी से इसे आकार मिलता है। यह देखने में भारी लगती है, पर होती हल्की है। यह कुर्सी घर में हो तो रईसी का अहसास कराती है।

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फर्नीचर बनाते कारीगर - फोटो : अमर उजाला
सस्ता और टिकाऊ होने की वजह से अलग पहचान
सिकलापुर के फर्नीचर कारोबारी गौरव गर्ग के मुताबिक ब्रिटिश शासनकाल से बरेली में लकड़ी का काम चल रहा है। यहां बने फर्नीचर की अपनी अलग पहचान है। उत्तराखंड के नजदीक होने की वजह से बरेली में साल, सागौन, शीशम की लकड़ी पर्याप्त मात्रा में मिलती है। महानगरों के मुकाबले बरेली का फर्नीचर सस्ता और टिकाऊ होता है। कीमत में करीब 40 फीसदी का फर्क होता है। इस वजह से इसकी अलग पहचान है। 

नहीं लगती प्लाई, न मिक्सिंग का खेल
सौ फुटा के फर्नीचर कारोबारी अमित अग्रवाल के मुताबिक, बरेली में तैयार फर्नीचर में प्लाई का इस्तेमाल नहीं होता। इससे डिजाइन का कोई भाग खुलकर अलग नहीं होता। एक ही तरह की लकड़ी का प्रयोग होता है। इसमें मिक्सिंग नहीं की जाती। तराई क्षेत्र होने से यहां की लकड़ी मजबूत होती है। घुन और दीमक भी कम लगते हैं। पीयू पॉलिश की चमक 15-20 वर्षों तक बरकरार रहती है।

देशभर में है प्लाईवुड की मांग
फरीदपुर औद्योगिक एसोसिएशन के अध्यक्ष प्लाईवुड कारोबारी गुरप्रीत सिंह के मुताबिक, ओडीओपी में फर्नीचर उद्योग शामिल होने से इसे वैश्विक पहचान मिलेगी। इससे किसानों को भी फायदा होगा। बरेली में तैयार प्लाईवुड की मांग भी देशभर में है। फिलहाल, करीब 500 लोग फर्नीचर का कारोबार कर रहे हैं। इनमें 50 बड़े कारोबारी हैं।

शहर में बनने वाले फर्नीचर और उनकी खासियत
  • नागफनी सोफा : इसकी कारीगरी हाथ से की जाती है। सिर्फ शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। 
  • डबल बेड : शीशम और सागौन की लकड़ी से बनाए जाते हैं। हाथ की कारीगरी होने से ये सालों-साल चलते हैं।
  • डाइनिंग टेबल : शीशम की लाल लकड़ी से तैयार नक्काशीदार डाइनिंग टेबल की मांग सर्वाधिक है।
  • ड्रेसिंग टेबल : सागौन की लकड़ी से करीब 40 डिजाइन में बनते हैं। धनुषाकार डिजाइन की मांग सर्वाधिक है।
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