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Bhadohi News: टैरिफ ने कालीन उद्योग से जुड़े दो लाख श्रमिकों का छीना रोजगार
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अमेरिकी टैरिफ का असर कालीन कारोबार पर दिखने लगा है। टैरिफ से जिले में कालीन उद्योग से जुड़े करीब दो लाख श्रमिकों का रोजगार प्रभावित हुआ है। इसमें बुनकर, धुलाई, कताई और अन्य लोग शामिल हैं। एकमा के मानद सचिव पीयूष बरनवाल ने बताया कि इस साल कालीन निर्यात में कम से कम 35 फीसदी की गिरावट हो सकती है। टैरिफ का सीधा असर सूक्ष्म कारोबारियों पर पड़ा है। उनकी कंपनियां बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामान के निर्यात पर 50 फीसदी टैरिफ थोप दिया है। इसके बाद से ही कालीन उद्योग में उथल-पुथल चल रहा है। टैरिफ लगाए जाने के बाद से ही निर्यातक उद्योग को लेकर चिंतित थे। इस बीच कई दौर की वार्ता के बाद अब तक कोई समाधान नहीं निकल सका है। कालीन पर टैरिफ लगे 7 से 8 महीने गुजर चुके हैं। इससे उद्योग अब संकट में पड़ता नजर आ रहा है। ऑल इंडिया कारपेट मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन (एकमा) के मानद सचिव पीयूष बरनवाल ने दावा किया कि टैरिफ के चलते भदोही में कालीन उद्योग से जुड़े दो लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। इसमें बुनाई करने वालों के साथ-साथ कताई, धुलाई और छंटाई, लेटेक्सिंग, डिजाइनिंग, डाईंग आदि करने वाले भी शामिल हैं। उद्योग पर पड़े असर के बीच महिलाओं के सामने भी संकट खड़ा हुआ है, जो महिलाएं घर का काम करने के बाद कताई, धुलाई या पेचाई जैसे काम करके अतिरिक्त आमदनी कर पाती थी। अब उनके पास कोई काम नहीं है। उन्होंने दावा किया कि टैरिफ कारण सूक्ष्म उद्यमियों ने कारोबार बंद कर दिया है। एक करोड़ तक सालाना कारोबार करने वाले 90 फीसदी कारोबारियों की कंपनियों में ताला लटक गया है। सूक्ष्म उद्यमी किसी तरह से बाजार में टिके हुए थे, लेकिन अचानक टैरिफ के झटके के कारण कई कंपनियां बंद हो चुकी है।
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अमेरिका के छोटे खरीदारों पर पड़ा प्रभाव
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के प्रशासनिक समिति के सदस्य पंकज बरनवाल ने बताया कि टैरिफ से अमेरिका के खरीदारों पर भी प्रभाव पड़ा है। अकेले अमेरिका के करीब 25 छोटे खरीदारों से कारोबार बंद हो चुका है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि बदले में उन्हें कुछ अच्छे और बड़े आयातक मिले हैं। बताया कि पिछले दिनों दो माह तक उनका करोड़ों का माल मुंबई पोर्ट पर डंप था। कोई खरीदार नहीं मिलने से अंततः उन्हें वहां से वापस मंगाकर भारी डिस्काउंट में बेचना पड़ा है। इससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। अमेरिका भारतीय कालीन कारोबार का करीब 60 फीसदी का हिस्सेदार है। पूंजी के अभाव में छोटे-छोटे भारतीय कारोबारी तो प्रभावित हैं ही, अमेरिका में भी छोटी कंपनियां जो भारतीय कालीन कंपनियों से हर साल हजारों करोड़ का कारोबार करती थी उनका कारोबार फिलहाल बंद हो चुका है।
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35 फीसदी निर्यात में कमी आने की संभावना :
एकमा मानद सचिव, पीयूष बरनवाल ने बताया कि 2024-25 वित्तीय वर्ष में भारतीय कालीन ने रिकाॅर्ड 17740 करोड़ का निर्यात किया था, लेकिन चालू वित्तीय वर्ष के प्रारंभ मे ही अमेरिकी टैरिफ के लागू हो जाने से निर्यात में करीब 35 फीसदी की कमी आने की संभावना है। बताया कि इस साल पहली तिमाही में केवल 512 करोड़ का निर्यात हो सका है। निर्यात घटने से सीधा असर उद्योग और उससे जुड़े लोगों पर पड़ेगा।
पेंचाई का काम करती हूं। इधर डेढ दो महीने से काम न होने के कारण घर बैठी हूं। कब तक ऐसा रहेगा। इसके बारे में कुछ पता नहीं है। - मोना, मोहल्ला गुलालतारा, भदोही।-- -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- -- -
बुनाई का काम करती हूं। आठ महीने पहले तक पूरे सप्ताह काम की कोई कमी नहीं थी, लेकिन अब मुश्किल से तीन से चार दिन काम मिल पाता है। इसका असर परिवार पर भी पड़ा है। - प्रेमा देवी, रजईपुर गोहीलावं।
कालीन सफाई का काम करती हूं। इन दिनों काम की कमी हुई है। परिवार में हर सदस्य काम करता है तो किसी तरह परिवार चलता है। इन दिनों काम न होने से परेशानी हो रही है। - सैरुन निशा, घोसिया।
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामान के निर्यात पर 50 फीसदी टैरिफ थोप दिया है। इसके बाद से ही कालीन उद्योग में उथल-पुथल चल रहा है। टैरिफ लगाए जाने के बाद से ही निर्यातक उद्योग को लेकर चिंतित थे। इस बीच कई दौर की वार्ता के बाद अब तक कोई समाधान नहीं निकल सका है। कालीन पर टैरिफ लगे 7 से 8 महीने गुजर चुके हैं। इससे उद्योग अब संकट में पड़ता नजर आ रहा है। ऑल इंडिया कारपेट मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन (एकमा) के मानद सचिव पीयूष बरनवाल ने दावा किया कि टैरिफ के चलते भदोही में कालीन उद्योग से जुड़े दो लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। इसमें बुनाई करने वालों के साथ-साथ कताई, धुलाई और छंटाई, लेटेक्सिंग, डिजाइनिंग, डाईंग आदि करने वाले भी शामिल हैं। उद्योग पर पड़े असर के बीच महिलाओं के सामने भी संकट खड़ा हुआ है, जो महिलाएं घर का काम करने के बाद कताई, धुलाई या पेचाई जैसे काम करके अतिरिक्त आमदनी कर पाती थी। अब उनके पास कोई काम नहीं है। उन्होंने दावा किया कि टैरिफ कारण सूक्ष्म उद्यमियों ने कारोबार बंद कर दिया है। एक करोड़ तक सालाना कारोबार करने वाले 90 फीसदी कारोबारियों की कंपनियों में ताला लटक गया है। सूक्ष्म उद्यमी किसी तरह से बाजार में टिके हुए थे, लेकिन अचानक टैरिफ के झटके के कारण कई कंपनियां बंद हो चुकी है।
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अमेरिका के छोटे खरीदारों पर पड़ा प्रभाव
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के प्रशासनिक समिति के सदस्य पंकज बरनवाल ने बताया कि टैरिफ से अमेरिका के खरीदारों पर भी प्रभाव पड़ा है। अकेले अमेरिका के करीब 25 छोटे खरीदारों से कारोबार बंद हो चुका है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि बदले में उन्हें कुछ अच्छे और बड़े आयातक मिले हैं। बताया कि पिछले दिनों दो माह तक उनका करोड़ों का माल मुंबई पोर्ट पर डंप था। कोई खरीदार नहीं मिलने से अंततः उन्हें वहां से वापस मंगाकर भारी डिस्काउंट में बेचना पड़ा है। इससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। अमेरिका भारतीय कालीन कारोबार का करीब 60 फीसदी का हिस्सेदार है। पूंजी के अभाव में छोटे-छोटे भारतीय कारोबारी तो प्रभावित हैं ही, अमेरिका में भी छोटी कंपनियां जो भारतीय कालीन कंपनियों से हर साल हजारों करोड़ का कारोबार करती थी उनका कारोबार फिलहाल बंद हो चुका है।
35 फीसदी निर्यात में कमी आने की संभावना :
एकमा मानद सचिव, पीयूष बरनवाल ने बताया कि 2024-25 वित्तीय वर्ष में भारतीय कालीन ने रिकाॅर्ड 17740 करोड़ का निर्यात किया था, लेकिन चालू वित्तीय वर्ष के प्रारंभ मे ही अमेरिकी टैरिफ के लागू हो जाने से निर्यात में करीब 35 फीसदी की कमी आने की संभावना है। बताया कि इस साल पहली तिमाही में केवल 512 करोड़ का निर्यात हो सका है। निर्यात घटने से सीधा असर उद्योग और उससे जुड़े लोगों पर पड़ेगा।
पेंचाई का काम करती हूं। इधर डेढ दो महीने से काम न होने के कारण घर बैठी हूं। कब तक ऐसा रहेगा। इसके बारे में कुछ पता नहीं है। - मोना, मोहल्ला गुलालतारा, भदोही।
बुनाई का काम करती हूं। आठ महीने पहले तक पूरे सप्ताह काम की कोई कमी नहीं थी, लेकिन अब मुश्किल से तीन से चार दिन काम मिल पाता है। इसका असर परिवार पर भी पड़ा है। - प्रेमा देवी, रजईपुर गोहीलावं।
कालीन सफाई का काम करती हूं। इन दिनों काम की कमी हुई है। परिवार में हर सदस्य काम करता है तो किसी तरह परिवार चलता है। इन दिनों काम न होने से परेशानी हो रही है। - सैरुन निशा, घोसिया।