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आठ साल, तीन जांच अधिकारी फिर भी नतीजा नहीं
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एटा। शीतलपुर ब्लॉक क्षेत्र की ग्राम पंचायत ककरावली में विकास कार्यों में गड़बड़ी की शिकायत पर जांच बैठाई गई। विभिन्न स्तर पर जांच चलते हुए आठ साल हो गए और इस बीच तीन जांच अधिकारी बदले गए, लेकिन अब तक की कवायद बेनतीजा है। जांच का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है।
वर्ष 2014 में गांव के ही निवासी सेवानिवृत्त पुलिस उपनिरीक्षक संतोष शर्मा ने ग्राम्य विकास आयुक्त उप्र शासन को शिकायत भेजी। इसमें बताया कि ग्राम पंचायत में 2005 से 2010 तक ककरावली आंबेडकर ग्राम योजना में चयनित था। योजना के तहत केवल कागजों में कार्य पूरे दिखा तत्कालीन ग्राम पंचायत सचिव संजय शर्मा ने पैसा निकाल लिया। 20 साल पहले बने शौचालयों के फोटो लगाए गए। यह भी आरोप है कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के मनरेगा के तहत फर्जी जॉबकार्ड बनाकर रकम निकाली गई।
उनकी कई शिकायतों के बाद 2017 में जांच शुरू हुई। तत्कालीन कृषि उपनिदेशक को जांच अधिकारी बनाया गया, जो जांच पूरी किए बिना सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद जांच ठप हो गई। फिर कई शिकायतें कीं तो 2020 में जांच की जिम्मेदारी उपायुक्त मनरेगा को सौंपी गई। 2021 में उन्होंने जांच की जिम्मेदारी खंड विकास अधिकारी शीतलपुर को सौंप दी। संतोष का कहना है कि जब आईजीआरएस पर शिकायत डाली तो रिपोर्ट दी गई कि मनरेगा उपायुक्त ने गांव में शिकायतकर्ता की मौजूदगी में जांच की और कोई अनियमितता नहीं मिली। जबकि इस तरह की किसी जांच के दौरान उन्हें बुलाया तक नहीं गया।
आदेश के बाद सचिव पर दर्ज नहीं हुई रिपोर्ट
संतोष शर्मा ने बताया कि जांच के दौरान सचिव द्वारा अभिलेख उपलब्ध न कराने पर तत्कालीन डीपीआरओ ने एडीओ पंचायत को आदेश जारी किया। इसमें हिदायत दी कि रिपोर्ट दर्ज न कराने पर उनके विरुद्ध भी कार्रवाई कर दी जाएगी, लेकिन न तो सचिव पर रिपोर्ट दर्ज कराई गई और न ही एडीओ के विरुद्ध कोई कार्रवाई हुई।
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वर्ष 2014 में गांव के ही निवासी सेवानिवृत्त पुलिस उपनिरीक्षक संतोष शर्मा ने ग्राम्य विकास आयुक्त उप्र शासन को शिकायत भेजी। इसमें बताया कि ग्राम पंचायत में 2005 से 2010 तक ककरावली आंबेडकर ग्राम योजना में चयनित था। योजना के तहत केवल कागजों में कार्य पूरे दिखा तत्कालीन ग्राम पंचायत सचिव संजय शर्मा ने पैसा निकाल लिया। 20 साल पहले बने शौचालयों के फोटो लगाए गए। यह भी आरोप है कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के मनरेगा के तहत फर्जी जॉबकार्ड बनाकर रकम निकाली गई।
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उनकी कई शिकायतों के बाद 2017 में जांच शुरू हुई। तत्कालीन कृषि उपनिदेशक को जांच अधिकारी बनाया गया, जो जांच पूरी किए बिना सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद जांच ठप हो गई। फिर कई शिकायतें कीं तो 2020 में जांच की जिम्मेदारी उपायुक्त मनरेगा को सौंपी गई। 2021 में उन्होंने जांच की जिम्मेदारी खंड विकास अधिकारी शीतलपुर को सौंप दी। संतोष का कहना है कि जब आईजीआरएस पर शिकायत डाली तो रिपोर्ट दी गई कि मनरेगा उपायुक्त ने गांव में शिकायतकर्ता की मौजूदगी में जांच की और कोई अनियमितता नहीं मिली। जबकि इस तरह की किसी जांच के दौरान उन्हें बुलाया तक नहीं गया।
आदेश के बाद सचिव पर दर्ज नहीं हुई रिपोर्ट
संतोष शर्मा ने बताया कि जांच के दौरान सचिव द्वारा अभिलेख उपलब्ध न कराने पर तत्कालीन डीपीआरओ ने एडीओ पंचायत को आदेश जारी किया। इसमें हिदायत दी कि रिपोर्ट दर्ज न कराने पर उनके विरुद्ध भी कार्रवाई कर दी जाएगी, लेकिन न तो सचिव पर रिपोर्ट दर्ज कराई गई और न ही एडीओ के विरुद्ध कोई कार्रवाई हुई।