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Farrukhabad News: मानक ताक पर रख दौड़ रहीं 100 स्लीपर बसें, 42 ही पंजीकृत
संवाद न्यूज एजेंसी, फर्रूखाबाद
Updated Thu, 30 Oct 2025 12:48 AM IST
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फोटो- 10 स्लीपर बस के केबिन से नदारद फायर एक्सटिंग्विशर। संवाद
- फोटो : भेंटुआ सीएचसी में टीकाकरण की जानकारी करती जेनेवा और न्यूयार्क से आई टीम।
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फर्रुखाबाद। पिछले 15 दिन में स्लीपर बसों में हुए कई हादसों के बावजूद पुलिस और परिवहन विभाग सबक नहीं ले रहा।
एआईरटीओ में भले ही 42 स्लीपर बसों का पंजीकरण हों, मगर संचालक सेटिंग करके सुरक्षा मानकों को ताख पर रखकर 100 से अधिक बसें सड़कों पर दौड़ा रहे हैं।
परिवहन विभाग के मानकों के विपरीत स्लीपर बसों में हादसे होने के बावजूद सबक नहीं ले रहा है। विभागीय रिकॉर्ड में सिर्फ 42 बसें ही दर्ज हैं, जबकि दिल्ली के लिए 40, जयपुर के लिए 32, पानीपत और अंबाला के लिए चार-चार बसें चल रही हैं।
इसके अलावा 20 से अधिक पड़ोसी जिलों से रवाना होने वाली बसें भी शहर से सवारियां भरकर चलती हैं। इन बसों में न तो गैलरी मानक के अनुरूप है और न ही सीटों की दूरी। हादसे के दौरान स्लीपर सीटों से यात्रियों का आसानी से निकलना असंभव है। यही नहीं आग बुझाने के उपकरण भी उपलब्ध नहीं हैं। इससे यात्रियों के जीवन को खतरा बना हुआ है।
वहीं, एआरटीओ प्रवर्तन सुभाष राजपूत ने बताया कि समय-समय पर अभियान चलाकर स्लीपर बसों की जांच की जाती है। मानक में कमी पाए जाने पर चालान किए जाते हैं।
एआरटीओ प्रशासन वीएन चौधरी ने बताया कि विभागीय मानक के अनुरूप बस न होने पर उनकी फिटनेस नहीं की जाती। रिफ्लेक्टर या इमरजेंसी विंडो बंद होने की दशा में बस को फिटनेस सर्टिफिकेट जारी नहीं होगा। फिटनेस जांच में मोटर व्हीकल एक्ट के सभी मानक देखे जा रहे हैं।
आग से 10 लोग जिंदा जल गए थे
वर्ष 2020 में कन्नौज जिले के छिबरामऊ के पास जिले के एक निजी बस संचालक की स्लीपर बस में आग लगी थी। इसमें 10 लोग जिंदा जल गए थे। कई झुलसे और लापता भी थे। कुछ दिन अंकुश के बाद फिर विभागीय सेटिंग से बसें दौड़ने लगीं।
संवाद न्यूज एजेंसी ने आठ बसों की पड़ताल की। इनमें केवल एक बस में ही दो किलो का फायर एक्सटिंग्विशर मिला। अन्य बसों में सुरक्षा उपकरणों का कोई इंतजाम नहीं था। यही नहीं कई बसों के पीछे शीशे के स्थान पर टिन से बंद किया गया है। हादसे के बाद इससे निकलना नामुमकिन हो जाता है। इन कमियों पर परिवहन विभाग की नजर नहीं है।
मानक से ऊंची बॉडी, बंद इमरजेंसी डोर
ऐसी बसों में स्लीपर बनाने के लिए बॉडी को जरूरत से ज्यादा ऊंचा कर दिया जाता है। कई बार इमरजेंसी विंडो भी बंद कर दी जाती है, ताकि स्लीपर की संख्या अधिक रखी जा सके। संकरी गलियों और छोटी खिड़कियों के चलते आपात स्थिति में यात्री निकल नहीं पाते।
फायर सेफ्टी और फर्स्ट एड किट का अभाव इन बसों को और खतरनाक बना देता है। वहीं, बस संचालक पुरानी साधारण बसें खरीद लेते हैं। इसके बाद उसी पर स्लीपर की बॉडी बनवा देते हैं।
इनमें सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने की बजाय अधिक कमाई के हिसाब से सवारियों की सीटें बनाई जाती हैं। यही वजह है कि चिंगारी के दौरान चंद मिनट में बसें आग के गोले में तब्दील हो जाती हैं।
शादी-पार्टी के नाम पर मिलते अस्थायी परमिट
नियमों के अनुसार, स्लीपर बसों को राष्ट्रीयकृत मार्गों पर चलाने की अनुमति नहीं होती। लेकिन शादी या पार्टी की बुकिंग के नाम पर अस्थायी परमिट लेकर बस माफिया इन्हें दिल्ली, जयपुर और हरियाणा तक दौड़ा रहे हैं।
स्लीपर बसों की खामियां
- केवल एक दरवाजा, इमरजेंसी निकास का अभाव।
- संकरी गलरी, ऊपर की स्लीपर से निकलना मुश्किल।
- फायर सेफ्टी, फर्स्ट एड किट और रिफ्लेक्टर की कमी।
90 हजार टैक्स देकर तीन माह दौड़ती हैं
कोविड के बाद अन्य प्रदेशों में जाने वाली बसों को बार-बार टैक्स जमा करने की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार ने तीन लाख में एक साल और 90 हजार रुपये जमा करके तीन महीने तक किसी भी प्रदेश में स्लीपर बस ले जाने की छूट दे दी है। यहां की स्लीपर बसें भी इस योजना का लाभ उठाकर सवारियां ले जाती हैं।
एआईरटीओ में भले ही 42 स्लीपर बसों का पंजीकरण हों, मगर संचालक सेटिंग करके सुरक्षा मानकों को ताख पर रखकर 100 से अधिक बसें सड़कों पर दौड़ा रहे हैं।
परिवहन विभाग के मानकों के विपरीत स्लीपर बसों में हादसे होने के बावजूद सबक नहीं ले रहा है। विभागीय रिकॉर्ड में सिर्फ 42 बसें ही दर्ज हैं, जबकि दिल्ली के लिए 40, जयपुर के लिए 32, पानीपत और अंबाला के लिए चार-चार बसें चल रही हैं।
इसके अलावा 20 से अधिक पड़ोसी जिलों से रवाना होने वाली बसें भी शहर से सवारियां भरकर चलती हैं। इन बसों में न तो गैलरी मानक के अनुरूप है और न ही सीटों की दूरी। हादसे के दौरान स्लीपर सीटों से यात्रियों का आसानी से निकलना असंभव है। यही नहीं आग बुझाने के उपकरण भी उपलब्ध नहीं हैं। इससे यात्रियों के जीवन को खतरा बना हुआ है।
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वहीं, एआरटीओ प्रवर्तन सुभाष राजपूत ने बताया कि समय-समय पर अभियान चलाकर स्लीपर बसों की जांच की जाती है। मानक में कमी पाए जाने पर चालान किए जाते हैं।
एआरटीओ प्रशासन वीएन चौधरी ने बताया कि विभागीय मानक के अनुरूप बस न होने पर उनकी फिटनेस नहीं की जाती। रिफ्लेक्टर या इमरजेंसी विंडो बंद होने की दशा में बस को फिटनेस सर्टिफिकेट जारी नहीं होगा। फिटनेस जांच में मोटर व्हीकल एक्ट के सभी मानक देखे जा रहे हैं।
आग से 10 लोग जिंदा जल गए थे
वर्ष 2020 में कन्नौज जिले के छिबरामऊ के पास जिले के एक निजी बस संचालक की स्लीपर बस में आग लगी थी। इसमें 10 लोग जिंदा जल गए थे। कई झुलसे और लापता भी थे। कुछ दिन अंकुश के बाद फिर विभागीय सेटिंग से बसें दौड़ने लगीं।
संवाद न्यूज एजेंसी ने आठ बसों की पड़ताल की। इनमें केवल एक बस में ही दो किलो का फायर एक्सटिंग्विशर मिला। अन्य बसों में सुरक्षा उपकरणों का कोई इंतजाम नहीं था। यही नहीं कई बसों के पीछे शीशे के स्थान पर टिन से बंद किया गया है। हादसे के बाद इससे निकलना नामुमकिन हो जाता है। इन कमियों पर परिवहन विभाग की नजर नहीं है।
मानक से ऊंची बॉडी, बंद इमरजेंसी डोर
ऐसी बसों में स्लीपर बनाने के लिए बॉडी को जरूरत से ज्यादा ऊंचा कर दिया जाता है। कई बार इमरजेंसी विंडो भी बंद कर दी जाती है, ताकि स्लीपर की संख्या अधिक रखी जा सके। संकरी गलियों और छोटी खिड़कियों के चलते आपात स्थिति में यात्री निकल नहीं पाते।
फायर सेफ्टी और फर्स्ट एड किट का अभाव इन बसों को और खतरनाक बना देता है। वहीं, बस संचालक पुरानी साधारण बसें खरीद लेते हैं। इसके बाद उसी पर स्लीपर की बॉडी बनवा देते हैं।
इनमें सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने की बजाय अधिक कमाई के हिसाब से सवारियों की सीटें बनाई जाती हैं। यही वजह है कि चिंगारी के दौरान चंद मिनट में बसें आग के गोले में तब्दील हो जाती हैं।
शादी-पार्टी के नाम पर मिलते अस्थायी परमिट
नियमों के अनुसार, स्लीपर बसों को राष्ट्रीयकृत मार्गों पर चलाने की अनुमति नहीं होती। लेकिन शादी या पार्टी की बुकिंग के नाम पर अस्थायी परमिट लेकर बस माफिया इन्हें दिल्ली, जयपुर और हरियाणा तक दौड़ा रहे हैं।
स्लीपर बसों की खामियां
- केवल एक दरवाजा, इमरजेंसी निकास का अभाव।
- संकरी गलरी, ऊपर की स्लीपर से निकलना मुश्किल।
- फायर सेफ्टी, फर्स्ट एड किट और रिफ्लेक्टर की कमी।
90 हजार टैक्स देकर तीन माह दौड़ती हैं
कोविड के बाद अन्य प्रदेशों में जाने वाली बसों को बार-बार टैक्स जमा करने की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार ने तीन लाख में एक साल और 90 हजार रुपये जमा करके तीन महीने तक किसी भी प्रदेश में स्लीपर बस ले जाने की छूट दे दी है। यहां की स्लीपर बसें भी इस योजना का लाभ उठाकर सवारियां ले जाती हैं।

फोटो- 10 स्लीपर बस के केबिन से नदारद फायर एक्सटिंग्विशर। संवाद- फोटो : भेंटुआ सीएचसी में टीकाकरण की जानकारी करती जेनेवा और न्यूयार्क से आई टीम।