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Farrukhabad News: तुलसीकृत रामचरितमानस के आध्यात्मिक रहस्य बताए
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फोटो-31, मानस सममेलन में प्रवचन करते डॉ. रामबाबू पाठक। स्रोत स्वयं
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फर्रुखाबाद। श्री पांडेश्वर नाथ मंदिर में 37वें मानस सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में आए विद्वानों ने गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के आध्यात्मिक, सामाजिक और दार्शनिक पक्षों पर अपने विचार रखे।
दतिया से आईं विदुषी संध्या दीक्षित ने जनकपुरी नगर दर्शन के प्रसंग में पुष्प वाटिका, गौरी पूजन और राम-सीता मिलन के बारे में बताया। कहा कि तुलसीदास ने मानस में विषम परिस्थितियों और चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत किया है।
झांसी से आईं आस्था शर्मा ने गुरु-शिष्य परंपरा की व्याख्या करते हुए बताया कि गुरु विश्वामित्र ने राक्षसों के आतंक से मुक्ति हेतु श्रीराम और लक्ष्मण को शस्त्र-शास्त्र की शिक्षा दी। कहा कि मानस में हर कदम पर माता-पिता की सेवा, धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश का संदेश मिलता है।
छत्तीसगढ़, दुर्ग से आए पंडित पीला राम ने तुलसीदास की ब्रज और अवधी भाषा की शैली को गूढ़ रहस्यों को उजागर करने वाला बताया। झांसी से आए रामायणी अरुण गोस्वामी ने रामकथा के चार प्रमुख स्थलों-अयोध्या, काशी, प्रयागराज और चित्रकूट की महिमा का वर्णन किया। सम्मेलन संयोजक डॉ. रामबाबू पाठक ने माता सुमित्रा को आध्यात्मिक शक्ति और माता कैकयी को ज्ञान की प्रतीक बताया।
संचालन पंडित रामेंद्र नाथ मिश्रा ने किया। प्रसाद वितरण की व्यवस्था सर्वेश अवस्थी, अशोक रस्तोगी, आलोक गौड़, सदानंद शुक्ला, रवि अवस्थी, विशेष पाठक ने संभाली।

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दतिया से आईं विदुषी संध्या दीक्षित ने जनकपुरी नगर दर्शन के प्रसंग में पुष्प वाटिका, गौरी पूजन और राम-सीता मिलन के बारे में बताया। कहा कि तुलसीदास ने मानस में विषम परिस्थितियों और चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत किया है।
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झांसी से आईं आस्था शर्मा ने गुरु-शिष्य परंपरा की व्याख्या करते हुए बताया कि गुरु विश्वामित्र ने राक्षसों के आतंक से मुक्ति हेतु श्रीराम और लक्ष्मण को शस्त्र-शास्त्र की शिक्षा दी। कहा कि मानस में हर कदम पर माता-पिता की सेवा, धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश का संदेश मिलता है।
छत्तीसगढ़, दुर्ग से आए पंडित पीला राम ने तुलसीदास की ब्रज और अवधी भाषा की शैली को गूढ़ रहस्यों को उजागर करने वाला बताया। झांसी से आए रामायणी अरुण गोस्वामी ने रामकथा के चार प्रमुख स्थलों-अयोध्या, काशी, प्रयागराज और चित्रकूट की महिमा का वर्णन किया। सम्मेलन संयोजक डॉ. रामबाबू पाठक ने माता सुमित्रा को आध्यात्मिक शक्ति और माता कैकयी को ज्ञान की प्रतीक बताया।
संचालन पंडित रामेंद्र नाथ मिश्रा ने किया। प्रसाद वितरण की व्यवस्था सर्वेश अवस्थी, अशोक रस्तोगी, आलोक गौड़, सदानंद शुक्ला, रवि अवस्थी, विशेष पाठक ने संभाली।