{"_id":"36-152411","slug":"Fatehpur-152411-36","type":"story","status":"publish","title_hn":"खतरे में है पौने तीन लाख बच्चों की सेहत ","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
खतरे में है पौने तीन लाख बच्चों की सेहत
Fatehpur
Updated Wed, 25 Sep 2013 05:38 AM IST
विज्ञापन
विज्ञापन
फतेहपुर। परिषदीय विद्यालयों में मिडडे मील पकाने में बच्चों की सेहत पर कतई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। शासनादेश है कि भोजन पकाने के लिए रसोइयों का चयन स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद ही किया जाए। पर इसकी पूरी तरह अनदेखी हो रही है। जानकारी मिली है कि जिले में कार्यरत 63 सौ रसोइयों में एक का भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं कराया गया है और मानक के विपरीत ग्राम शिक्षा समितियों ने चयन कर रखा है। इसके चलते जिले के परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले पौने तीन लाख नौनिहालों के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। बिना स्वास्थ्य परीक्षण कराए किए गए रसोइयों के चयन के कारण स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर कभी भी संक्रमण फैल सकता है।
जिले में 2346 परिषदीय विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक करीब पौने तीन लाख बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। वर्ष 2004 से इन सभी विद्यालयों में मिडडे मील योजना के तहत दोपहर का भोजन परोसने की व्यवस्था है। हर विद्यालय में भोजन पकाने के लिए एक हजार रुपये माहवार के मानदेय पर रसोइयों को रखने का प्रावधान है। इसके लिए बाकायदा शासनादेश है कि रसोइयों के चयन के लिए उनका स्वास्थ्य परीक्षण जरूर किया जाए, ताकि बच्चों में किसी तरह का संक्रमण न फैलने पाए। लेकिन रसोइयों के स्वास्थ्य परीक्षण के नियम की पूरी तरह अनदेखी हो रही है। सूत्रों की माने तो जिले में कार्यरत 63 सौ रसोइयों में से एक का भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं कराया गया है और मानक के विपरीत ग्राम शिक्षा समितियों ने इनका चयन कर रखा है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि रखी गईं सभी महिला रसोइयें गरीब परिवारों की हैं, जिनके पास दो वक्त के खाने तक की व्यवस्था नहीं है। धनाभाव के कारण यह महिलाएं तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं। ऐसी हालत में इन महिलाओं के हाथ का पकाया खाना खाने वाले इन स्कूलों के बच्चों पर भी संक्रमण फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
उधर, इस संबंध में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेंद्र प्रसाद यादव का कहना है कि रसोइयों के चयन का काम ग्राम शिक्षा समितियों का है। रसोइयों के चयन के पहले उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराने का प्रावधान है, लेकिन चयन के पहले उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया है या नहीं इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को चयनित रसोइयों का स्वास्थ्य परीक्षण कराने के लिए पत्र जारी किया जा रहा है।
Trending Videos
जिले में 2346 परिषदीय विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक करीब पौने तीन लाख बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। वर्ष 2004 से इन सभी विद्यालयों में मिडडे मील योजना के तहत दोपहर का भोजन परोसने की व्यवस्था है। हर विद्यालय में भोजन पकाने के लिए एक हजार रुपये माहवार के मानदेय पर रसोइयों को रखने का प्रावधान है। इसके लिए बाकायदा शासनादेश है कि रसोइयों के चयन के लिए उनका स्वास्थ्य परीक्षण जरूर किया जाए, ताकि बच्चों में किसी तरह का संक्रमण न फैलने पाए। लेकिन रसोइयों के स्वास्थ्य परीक्षण के नियम की पूरी तरह अनदेखी हो रही है। सूत्रों की माने तो जिले में कार्यरत 63 सौ रसोइयों में से एक का भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं कराया गया है और मानक के विपरीत ग्राम शिक्षा समितियों ने इनका चयन कर रखा है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि रखी गईं सभी महिला रसोइयें गरीब परिवारों की हैं, जिनके पास दो वक्त के खाने तक की व्यवस्था नहीं है। धनाभाव के कारण यह महिलाएं तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं। ऐसी हालत में इन महिलाओं के हाथ का पकाया खाना खाने वाले इन स्कूलों के बच्चों पर भी संक्रमण फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
विज्ञापन
विज्ञापन
उधर, इस संबंध में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेंद्र प्रसाद यादव का कहना है कि रसोइयों के चयन का काम ग्राम शिक्षा समितियों का है। रसोइयों के चयन के पहले उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराने का प्रावधान है, लेकिन चयन के पहले उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया है या नहीं इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को चयनित रसोइयों का स्वास्थ्य परीक्षण कराने के लिए पत्र जारी किया जा रहा है।