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Gonda News: मानव जीवन की यात्रा में पथिक बनकर मिलते हैं सुख और दुख
संवाद न्यूज एजेंसी, गोंडा
Updated Fri, 19 Dec 2025 11:34 PM IST
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शहीदे आजम सरदार भगत सिंह इंटर कॉलेज में आयोजित कथा में आरती करते श्रद्धालु। स्रोत: सोशल मीडिया
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गोंडा। प्रभु श्रीराम का वन गमन जैसे एक यात्रा थी, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी एक सतत यात्रा है। इस यात्रा में सुख और दुख दोनों पथिक बनकर मिलते हैं। सुख हमें सीख देता है और दुख कटु अनुभव देकर मन को परिपक्व करता है। ये बातें उज्जैन के महामृत्युंजय पीठाधीश्वर स्वामी प्रणवपुरी महाराज ने शहीदे आजम सरदार भगत सिंह इंटर कॉलेज परिसर में बृहस्पतिवार रात श्रीराम वन गमन की कथा सुनाते हुए कहीं।
प्रवाचक ने कहा कि भगवान श्रीराम व लक्ष्मण के साथ वन पथ पर सीता से नगर की महिलाएं संवाद करती हैं। वह जिज्ञासावश पूछती हैं कि हे देवी, आपके साथ चलने वाले तेज सूर्य के समान, दृष्टि में करुणा और मर्यादा समाहित किए ये पुरुष कौन हैं? इस पर सीता तिरछे नैनों से राम की तरफ इशारा करते हुए मुस्कराकर कहती हैं कि वे अयोध्या के राजकुमार और मेरे स्वामी हैं। स्वामी प्रणवपुरी महाराज ने कहा कि यह संवाद दर्शाता है कि राम केवल सीता के पति ही नहीं, बल्कि संपूर्ण नारी समाज के लिए मर्यादा और सुरक्षा के प्रतीक हैं।
गंगा पार करने का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भगवान पहले भक्त को अनेक प्रकार के प्रलोभन देते हैं, किंतु जब भक्त उन प्रलोभनों का त्याग कर देता है, तब उसे सच्ची भक्ति की प्राप्ति होती है। गंगा पार करने के बाद भगवान राम ने पार्थिव पूजा की और देवी सीता ने गंगा माता का पूजन कर यह वरदान मांगा कि वनवास पूर्ण कर वह पति और देवर के साथ सकुशल लौटें और तब पुनः गंगा पूजन करेंगी। इसके बाद निषाद राज ने उन्हें प्रयागराज में भारद्वाज ऋषि के आश्रम तक पहुंचाया। वहां भगवान राम ने आगे जाने के लिए उचित मार्ग के बारे में पूछा। प्रवाचक ने कहा कि यह प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि गृहस्थ जीवन में संतों और ज्ञानी जनों से मार्गदर्शन लेना सदैव हितकारी होता है। कथा में जन्मेजय सिंह, एनएस भदौरिया, बृजमोहन शुक्ल, राम नारायण शुक्ल, राजीव रस्तोगी, अजय सिंह, राजेंद्र श्रीवास्तव आदि श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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प्रवाचक ने कहा कि भगवान श्रीराम व लक्ष्मण के साथ वन पथ पर सीता से नगर की महिलाएं संवाद करती हैं। वह जिज्ञासावश पूछती हैं कि हे देवी, आपके साथ चलने वाले तेज सूर्य के समान, दृष्टि में करुणा और मर्यादा समाहित किए ये पुरुष कौन हैं? इस पर सीता तिरछे नैनों से राम की तरफ इशारा करते हुए मुस्कराकर कहती हैं कि वे अयोध्या के राजकुमार और मेरे स्वामी हैं। स्वामी प्रणवपुरी महाराज ने कहा कि यह संवाद दर्शाता है कि राम केवल सीता के पति ही नहीं, बल्कि संपूर्ण नारी समाज के लिए मर्यादा और सुरक्षा के प्रतीक हैं।
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गंगा पार करने का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भगवान पहले भक्त को अनेक प्रकार के प्रलोभन देते हैं, किंतु जब भक्त उन प्रलोभनों का त्याग कर देता है, तब उसे सच्ची भक्ति की प्राप्ति होती है। गंगा पार करने के बाद भगवान राम ने पार्थिव पूजा की और देवी सीता ने गंगा माता का पूजन कर यह वरदान मांगा कि वनवास पूर्ण कर वह पति और देवर के साथ सकुशल लौटें और तब पुनः गंगा पूजन करेंगी। इसके बाद निषाद राज ने उन्हें प्रयागराज में भारद्वाज ऋषि के आश्रम तक पहुंचाया। वहां भगवान राम ने आगे जाने के लिए उचित मार्ग के बारे में पूछा। प्रवाचक ने कहा कि यह प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि गृहस्थ जीवन में संतों और ज्ञानी जनों से मार्गदर्शन लेना सदैव हितकारी होता है। कथा में जन्मेजय सिंह, एनएस भदौरिया, बृजमोहन शुक्ल, राम नारायण शुक्ल, राजीव रस्तोगी, अजय सिंह, राजेंद्र श्रीवास्तव आदि श्रद्धालु उपस्थित रहे।
