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छह माह पहले लिखी गई थी राजभर की विदाई की पटकथा, डैमेज कंट्रोल के लिए तीन नेताओं को किया आगे
टीपी शाही, अमर उजाला, गोरखपुर
Published by: देव कश्यप
Updated Tue, 21 May 2019 04:13 AM IST
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OP Rajbhar (File Photo)
- फोटो : ANI
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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी की सिफारिश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को भले की हो, पर इसकी पटकथा छह माह पहले ही लिखनी शुरू हो गई थी। बीते साल दिसंबर में गाजीपुर में महाराज सुहेलदेव पर एक डाक टिकट जारी करने के लिए कार्यक्रम हुआ था। उसके मुख्य अतिथि पीएम थे। पर, ओमप्रकाश राजभर नहीं पहुंचे। उसी दिन से इनकी विदाई की पटकथा लिखनी शुरू हो गई थी।
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पार्टी सूत्रों के मुताबिक जब राजभर पीएम की सभा में गाजीपुर नहीं गए तो भाजपा ने अपने कैडर के सकलदीप राजभर को राज्यसभा में भेजकर यह संदेश दिया कि भाजपा ही राजभर समाज की सच्ची हितैषी है। अब तक सुहेलदेव के नाम पर किसी ने कोई बड़ा आयोजन किया न ही टिकट जारी किया। प्रधानमंत्री ने ऐसा करके राजभर समाज का नाम बढ़ाया। दूसरी तरफ अपने राज्यमंत्री अनिल राजभर का भी कद बढ़ा दिया। तीसरे घोसी के सांसद हरिनारायण राजभर को दुबारा टिकट देकर ओमप्रकाश को उनके ही गढ़ में घेर लिया। चर्चा है कि ओमप्रकाश की असली पीड़ा यह थी कि वह अपने बेटे को लोकसभा में पहुंचाने के लिए अपनी मर्जी की सीट चाह रहे थे, जिसे बीजेपी ने नहीं माना।
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ओमप्रकाश राजभर का सियासी सफर बसपा से शुरू हुआ था। हठधर्मी स्वभाव की वजह से ही उन्हें बसपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। उसके बाद खुद की पार्टी बनाई। करीब 20 साल से हर चुनाव में भासपा अपना प्रत्याशी मैदान में उतारती रही, पर कोई भी प्रत्याशी नहीं जीता। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ भासपा का गठबंधन हुआ। उनके हिस्से में 8 सीटें आईं। इसमें राजभर की पार्टी के चार विधायक चुनाव जीत गए।
ओमप्रकाश कहते थे कि वह कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन विधानसभा चुनाव जीत कर मंत्री भी बन गए। मंत्री बनने के थोड़े दिन बाद से ही सरकार पर हमलावर हो गए। रही सही कसर लोकसभा चुनाव में पूरी हो गई। 37 प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। अब चुनाव खत्म होते ही बर्खास्त करके उनकी विदाई का संदेश सीएम ने दे दिया।