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धांधली: मिड डे मील में हाइजीन बजट हजम, रसोइयां बिना सुरक्षा किट के बनाती हैं खाना
प्रिया चतुर्वेदी, अमर उजाला, कानपुर
Published by: शिखा पांडेय
Updated Mon, 15 Sep 2025 02:46 PM IST
सार
हर विद्यालय को हर साल कैप, ग्लब्स और एप्रन के लिए 700 रुपये मिलते हैं। 1943 स्कूलों को हर साल मिलने वाले 13.60 लाख रुपये का किसी को अता-पता नहीं है।
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भोजन पकाती रसोइयां
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
परिषदीय स्कूलों के बच्चों को साफ सुथरा मिड डे मील देने के लिए सरकार रसोइयों के लिए सुरक्षा किट मुहैया कराने का बजट हर साल देती है। रसोइयों को एप्रन, कैप और ग्लब्स देने के लिए सालाना 700 रुपये दिए जाते हैं पर अधिकतर स्कूलों में बिना किट पहने रसोइयां खाना बनाती हैं। 700 रुपये के हिसाब से शहर के 1943 स्कूलों पर हर साल लगभग 13.60 लाख रुपये खर्च किए जाते हैं फिर भी बच्चों की थाली असुरक्षित क्यों है।
सरकार हर साल परिषदीय स्कूलों में बच्चों को साफ-सुथरा और पौष्टिक मिड डे मील देने के लिए लाखों रुपये खर्च करती है। इसी क्रम में कोविड से पहले से ही रसोइयों को एप्रन, कैप और ग्लब्स देने का आदेश जारी किया गया था। स्कूलों की लाइव पड़ताल में सामने आया कि कई शिक्षकों को यह तक नहीं पता कि आखिरी बार पैसे कब आए थे। कुल 1943 स्कूलों में मिड डे मील योजना चल रही है। इनमें 1706 परिषदीय विद्यालयों में रसोइये खाना बनाती हैं। 1543 स्कूलों में पंचायती राज विभाग की ओर से मिड डे मील बनाने की सामग्री दी जाती है। 354 स्कूलों में सामग्री एनजीओ और 46 स्कूलों में सामग्री प्रबंधन समिति पहुंचाती है। मिड डे मील के जिला समन्वयक सौरभ पांडेय ने बताया कि हर स्कूल को 700 रुपये हर साल दिए जाते हैं। सभी रसोइयों को एप्रन, कैप और ग्लब्स पहनना जरूरी है।
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सरकार हर साल परिषदीय स्कूलों में बच्चों को साफ-सुथरा और पौष्टिक मिड डे मील देने के लिए लाखों रुपये खर्च करती है। इसी क्रम में कोविड से पहले से ही रसोइयों को एप्रन, कैप और ग्लब्स देने का आदेश जारी किया गया था। स्कूलों की लाइव पड़ताल में सामने आया कि कई शिक्षकों को यह तक नहीं पता कि आखिरी बार पैसे कब आए थे। कुल 1943 स्कूलों में मिड डे मील योजना चल रही है। इनमें 1706 परिषदीय विद्यालयों में रसोइये खाना बनाती हैं। 1543 स्कूलों में पंचायती राज विभाग की ओर से मिड डे मील बनाने की सामग्री दी जाती है। 354 स्कूलों में सामग्री एनजीओ और 46 स्कूलों में सामग्री प्रबंधन समिति पहुंचाती है। मिड डे मील के जिला समन्वयक सौरभ पांडेय ने बताया कि हर स्कूल को 700 रुपये हर साल दिए जाते हैं। सभी रसोइयों को एप्रन, कैप और ग्लब्स पहनना जरूरी है।
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भोजन पकाती रसोइयां
- फोटो : अमर उजाला
केस 1
घाटमपुर क्षेत्र के सरगांव स्थित कंपोजिट विद्यालय में रसोइया गीता शुक्ला और रन्नो देवी बिना कैप, ग्लब्स और एप्रन के ही खाना बनाती हैं। उनका कहना था कि उन्हें ये सामान दो साल पहले आखिरी बार मिला था। सहायक अध्यापिका रजनी तिवारी ने बताया कि 2022 में 700 रुपये आए थे। फिर कोई धनराशि नहीं आई। विद्यालय में इस समय 71 बच्चे नामांकित हैं।
केस 2
ककवन विकासखंड के औरोंताहरपुर स्थित पीएम श्री (कंपोजिट) विद्यालय में 289 बच्चे पढ़ते हैं। चार रसोइय बिना सुरक्षा किट के खाना बनाती हैं। सहायक अध्यापक अनुराग पांडेय का कहना है कि एप्रन और ग्लब्स के लिए धनराशि हर साल नहीं बल्कि परियोजना की ओर से बीच-बीच में भेजी जाती है।
घाटमपुर क्षेत्र के सरगांव स्थित कंपोजिट विद्यालय में रसोइया गीता शुक्ला और रन्नो देवी बिना कैप, ग्लब्स और एप्रन के ही खाना बनाती हैं। उनका कहना था कि उन्हें ये सामान दो साल पहले आखिरी बार मिला था। सहायक अध्यापिका रजनी तिवारी ने बताया कि 2022 में 700 रुपये आए थे। फिर कोई धनराशि नहीं आई। विद्यालय में इस समय 71 बच्चे नामांकित हैं।
केस 2
ककवन विकासखंड के औरोंताहरपुर स्थित पीएम श्री (कंपोजिट) विद्यालय में 289 बच्चे पढ़ते हैं। चार रसोइय बिना सुरक्षा किट के खाना बनाती हैं। सहायक अध्यापक अनुराग पांडेय का कहना है कि एप्रन और ग्लब्स के लिए धनराशि हर साल नहीं बल्कि परियोजना की ओर से बीच-बीच में भेजी जाती है।
चावल साफ करती रसोइया
- फोटो : अमर उजाला
केस 3
शिवराजपुर के बिलहन के पीएस प्राइमरी स्कूल में 39 बच्चे, तीन शिक्षक और दो रसोइये हैं। दोनों रसोइये बिना कैप, ग्लब्स और एप्रन के ही खाना बनाती हैं। प्रधानाध्यापक अंजना ने बताया कि 700 रुपये हर साल नहीं आते बल्कि बीच-बीच में मिलते हैं। किस मद में पैसा आया इसकी जानकारी उन्हें ग्रुप में मैसेज से दी जाती है। उसी हिसाब से सामान खरीदा जाता है।
शिवराजपुर के बिलहन के पीएस प्राइमरी स्कूल में 39 बच्चे, तीन शिक्षक और दो रसोइये हैं। दोनों रसोइये बिना कैप, ग्लब्स और एप्रन के ही खाना बनाती हैं। प्रधानाध्यापक अंजना ने बताया कि 700 रुपये हर साल नहीं आते बल्कि बीच-बीच में मिलते हैं। किस मद में पैसा आया इसकी जानकारी उन्हें ग्रुप में मैसेज से दी जाती है। उसी हिसाब से सामान खरीदा जाता है।
जिले के सभी स्कूलों में मिड डे मील बनाने वालीं रसोइयों की हाइजीन के लिए 700 रुपये की राशि सालाना स्कूल के खाते में भेजी जाती है। यदि किसी विद्यालय में यह राशि नहीं पहुंची या प्रधानाचार्य को इसकी जानकारी नहीं है तो तत्काल जांच कर कार्रवाई की जाएगी। - सुरजीत कुमार सिंह, बेसिक शिक्षा अधिकारी