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UP: 26 दिन, छह अस्पताल… स्ट्रेचर पर दुष्कर्म पीड़िता लड़ रही जिंदगी की जंग; साढ़े तीन लाख उधार लेकर किए खर्च
अमर उजाला नेटवर्क, हमीरपुर
Published by: शाहरुख खान
Updated Tue, 25 Nov 2025 09:35 AM IST
सार
यूपी के हमीरपुर की सामूहिक पीड़िता दुष्कर्म पीड़िता 26 दिन से स्ट्रेचर पर जिंदगी की जंग लड़ रही है। पिता साढ़े तीन लाख उधार लेकर दुष्कर्म पीड़िता बेटी का इलाज करा रहा है। सरकार की ओर अब तक पीड़िता को कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है।
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दुष्कर्म पीड़िता लड़ रही जिंदगी के लिए जंग
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर के थाना जलालपुर इलाके की सामूहिक पीड़िता दुष्कर्म पीड़िता 28 अक्तूबर की रात से लेकर अब तक जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है। गले और आंत में तेजाब के गहरे जख्म, लगातार खून की उल्टी और तेज बुखार की हालत में वह अब लखनऊ में स्ट्रेचर पर पड़ी है।
पिता पिछले 26 दिन से हमीरपुर, झांसी, कानपुर से लेकर लखनऊ तक के छह अस्पतालों की सात बार चौखट नाप चुके हैं। इधर, बेटी की हालत नाजुक बनी हुई है, उधर पिता परिजनों व रिश्तेदारों से उधार लेकर करीब साढ़े तीन लाख रुपये उसके इलाज पर खर्च कर चुके हैं।
पीड़िता को अब तक न तो सरकारी योजना से कोई आर्थिक मदद मिली और न ही किसी जनप्रतिनिधि या अफसर ने ही हाथ बढ़ाया है। परिजनों के मुताबिक 28 अक्तूबर की रात 16 वर्षीय किशोरी घर में सो रही थी।
आरोप है कि गांव के एक नाबालिग समेत तीन युवक घर में घुसे, उसके साथ दुष्कर्म किया और तेजाब पिला दिया। परिजन पहले उसे सीएचसी सरीला ले गए, जहां से झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। झांसी में करीब 10 दिन इलाज चला।
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पिता पिछले 26 दिन से हमीरपुर, झांसी, कानपुर से लेकर लखनऊ तक के छह अस्पतालों की सात बार चौखट नाप चुके हैं। इधर, बेटी की हालत नाजुक बनी हुई है, उधर पिता परिजनों व रिश्तेदारों से उधार लेकर करीब साढ़े तीन लाख रुपये उसके इलाज पर खर्च कर चुके हैं।
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पीड़िता को अब तक न तो सरकारी योजना से कोई आर्थिक मदद मिली और न ही किसी जनप्रतिनिधि या अफसर ने ही हाथ बढ़ाया है। परिजनों के मुताबिक 28 अक्तूबर की रात 16 वर्षीय किशोरी घर में सो रही थी।
आरोप है कि गांव के एक नाबालिग समेत तीन युवक घर में घुसे, उसके साथ दुष्कर्म किया और तेजाब पिला दिया। परिजन पहले उसे सीएचसी सरीला ले गए, जहां से झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। झांसी में करीब 10 दिन इलाज चला।
फिर हालत बिगड़ने पर उसे पीजीआई रेफर कर किया गया। वहां से वह जिला अस्पताल आया और फिर हैलट अस्पताल भेजा गया, जहां पीड़िता करीब 15 दिन उपचार चला। इस बीच हैलेट में तीन बोतल खून चढ़ाया गया, लेकिन तबीयत में खास सुधार नहीं हुआ। रविवार दोपहर डॉक्टरों ने गले और आंत में तेजाब के असर व गैस्ट्रो सर्जरी की जरूरत बताते हुए पीड़िता को लखनऊ पीजीआई रेफर कर दिया।
15 घंटे से स्ट्रेचर पर पीड़िता
पिता ने बताया कि वे कानपुर से तीन हजार रुपये किराये की निजी एंबुलेंस से रात साढ़े नौ बजे के करीब लखनऊ पीजीआई अस्पताल पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने कहा कि सर्जरी के लिए दो लाख रुपये जमा करो, तभी भर्ती करेंगे। बताया, मैंने हाथ जोड़कर कहा कि किसी तरह 50,000 की व्यवस्था कर दूंगा, लेकिन डॉक्टरों ने मना कर दिया और मेडिकल कॉलेज जाने को कह दिया।
पिता ने बताया कि वे कानपुर से तीन हजार रुपये किराये की निजी एंबुलेंस से रात साढ़े नौ बजे के करीब लखनऊ पीजीआई अस्पताल पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने कहा कि सर्जरी के लिए दो लाख रुपये जमा करो, तभी भर्ती करेंगे। बताया, मैंने हाथ जोड़कर कहा कि किसी तरह 50,000 की व्यवस्था कर दूंगा, लेकिन डॉक्टरों ने मना कर दिया और मेडिकल कॉलेज जाने को कह दिया।
दो बजे के करीब वे मेडिकल कॉलेज लखनऊ पहुंचे और रविवार रात से सोमवार शाम तक बेटी को स्ट्रेचर पर लिए इमरजेंसी से वार्ड तक भटकते रहे। इस बीच किशोरी के मुंह से ब्लड आता रहा, तेज बुखार बना रहा, लेकिन कोई ठोस इलाज शुरू नहीं हो सका।
साढ़े तीन लाख का कर्ज, ईंट-भट्ठे के साथ-साथ भाइयों तक से लिया उधार
पीड़िता के पिता ने बताया कि झांसी में करीब 10 दिन के इलाज पर लगभग 3 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। कानपुर में 15 दिन के दौरान करीब 20 हजार रुपये अलग से लग गए। लखनऊ की दौड़, जांच, दवाओं और एंबुलेंस पर भी हजारों रुपये खर्च हुए।
पीड़िता के पिता ने बताया कि झांसी में करीब 10 दिन के इलाज पर लगभग 3 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। कानपुर में 15 दिन के दौरान करीब 20 हजार रुपये अलग से लग गए। लखनऊ की दौड़, जांच, दवाओं और एंबुलेंस पर भी हजारों रुपये खर्च हुए।
बताया ईंट-भट्ठे के मालिक से पेशगी के लिए एक लाख रुपये उधार लिए थे। बाकी पैसा भाइयों और रिश्तेदारों से उधार लेकर जुटाकर अब तक साढ़े तीन लाख खर्च हो गए हैं। अब घर में कुछ नहीं बचा।
कहा, घटना को लगभग एक महीना होने को है लेकिन, न तो जिला प्रशासन ने संपर्क किया, न ही महिला कल्याण विभाग से कोई अधिकारी मिला और न ही किसी जनप्रतिनिधि ने हालचाल पूछा।
एफआईआर, बयान और कार्रवाई की रफ्तार पर भी सवाल
मामला सामने आने में ही करीब 10 दिन की देरी हुई। 7 नवंबर को झांसी अस्पताल पहुंचकर पुलिस ने पीड़िता का बयान दर्ज किया। मुख्य आरोपी नाबालिग बताया जा रहा है। एक युवक को जेल भेजा जा चुका है, जबकि अन्य की भूमिका की जांच चल रही है। वहीं, सहायता देने वाली योजनाओं की फाइलें अभी तक आगे क्यों नहीं बढ़ीं, और क्यों पीड़िता को बार-बार रेफर कर अलग-अलग अस्पतालों की चौखट पर भटकना पड़ रहा है।
मामला सामने आने में ही करीब 10 दिन की देरी हुई। 7 नवंबर को झांसी अस्पताल पहुंचकर पुलिस ने पीड़िता का बयान दर्ज किया। मुख्य आरोपी नाबालिग बताया जा रहा है। एक युवक को जेल भेजा जा चुका है, जबकि अन्य की भूमिका की जांच चल रही है। वहीं, सहायता देने वाली योजनाओं की फाइलें अभी तक आगे क्यों नहीं बढ़ीं, और क्यों पीड़िता को बार-बार रेफर कर अलग-अलग अस्पतालों की चौखट पर भटकना पड़ रहा है।
क्या कहते हैं जिला प्रोबेशन अधिकारी
जिला प्रोबेशन अधिकारी राजीव कुमार ने बताया कि दुष्कर्म व यौन अपराध पीड़िताओं को आर्थिक मदद एफआईआर, मेडिकल रिपोर्ट और दर्ज धाराओं के आधार पर दी जाती है। पीड़िताओं को एक लाख से लेकर दस लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता लक्ष्मीबाई सम्मान कोष व अन्य योजनाओं के तहत दी जाती है। वर्तमान में 25 केस पेंडिंग हैं, जिनकी मीटिंग हो चुकी है और इन्हें भी जल्द शासन को भेजा जाएगा।
जिला प्रोबेशन अधिकारी राजीव कुमार ने बताया कि दुष्कर्म व यौन अपराध पीड़िताओं को आर्थिक मदद एफआईआर, मेडिकल रिपोर्ट और दर्ज धाराओं के आधार पर दी जाती है। पीड़िताओं को एक लाख से लेकर दस लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता लक्ष्मीबाई सम्मान कोष व अन्य योजनाओं के तहत दी जाती है। वर्तमान में 25 केस पेंडिंग हैं, जिनकी मीटिंग हो चुकी है और इन्हें भी जल्द शासन को भेजा जाएगा।
जलालपुर थाना क्षेत्र की 16 वर्षीय पीड़िता का केस अभी तक हमारे पोर्टल में दर्ज होकर नहीं आया है। जब तक पुलिस मेडिकल व अन्य रिपोर्ट के साथ पोर्टल पर केस फीड नहीं करती, तब तक हमारे यहां से आर्थिक सहायता की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकती।-राजीव कुमार, जिला प्रोबेशन अधिकारी
उठ रहे कई सवाल
- लक्ष्मीबाई सम्मान कोष के तहत यौन अपराध पीड़िताओं को त्वरित आर्थिक सहायता देने का प्रावधान है, तो फिर घटना के करीब 25 दिन बाद भी इस पीड़िता को मदद क्यों नहीं मिली।
- जब पीड़िता को झांसी से कानपुर और फिर लखनऊ रेफर किया गया, तो सरकारी एंबुलेंस और परिवहन सुविधा की जानकारी या व्यवस्था परिजनों को क्यों नहीं दी गई।
- केस दर्ज होने, मेडिकल रिपोर्ट बन जाने और बयान हो जाने के बाद भी फाइलें पोर्टल तक क्यों नहीं पहुंचीं
- गंभीर स्थिति वाले मरीजों को सरकारी योजनाओं और मुफ्त सुविधाओं की जानकारी देना क्या अस्पताल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं। अगर हां, तो इस परिवार को समय रहते जानकारी क्यों नहीं दी गई?