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बेतिया स्टेट : ग्रामीणों को पूर्वजों की जमीन गंवाने की चिंता
संवाद न्यूज एजेंसी, महाराजगंज
Updated Fri, 19 Sep 2025 01:04 AM IST
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परतावल (महराजगंज)। परतावल क्षेत्र के पिपरिया गांव के ग्रामीण इन दिनों गहरी चिंता में हैं। जिन जमीनों पर वे पीढ़ियों से खेती करते आ रहे हैं, अचानक उसे बेतिया स्टेट की संपत्ति बताने से उनकी नींद उड़ गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यह जमीन उनके पूर्वजों की विरासत है और कई दशक से वे लोग इसी पर अनाज पैदा कर परिवार का भरण-पोषण करते आ रहे हैं।
पिपरिया निवासी आलमगीर, तबरेज, हकीकुल्लाह सहित कई किसानों ने बताया कि उनके पूर्वजों ने इस भूमि को मेहनत और लगन से उपजाऊ बनाया था। आज उनकी तीसरी-चौथी पीढ़ी इसी पर खेती कर परिवार चला रही है। लेकिन अब अचानक राजस्व विभाग की ओर से जमीन को बेतिया स्टेट की संपत्ति बताया जाना उनकी सबसे बड़ी चिंता का कारण है। उनका कहना है कि यदि यह जमीन उनसे छीनी जाती है तो उनके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो जाएगा।
ग्रामीणों ने बताया कि कुछ समय पहले राजस्व विभाग की एक टीम सत्यापन के लिए गांव पहुंची थी। ग्रामीणों ने जब अपने दस्तावेज और कागजात दिखाए, तो विवाद बढ़ने की आशंका से टीम को वापस लौटना पड़ा। लेकिन उसके बाद से ही गांव में बेचैनी का माहौल है। किसानों का कहना है कि उनके पास जमीन के पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं, फिर भी इसे बेतिया स्टेट की संपत्ति बताना उनके साथ अन्याय है।
इस मसले पर गांव के बुजुर्गों का कहना है कि आजादी से पहले बड़ी-बड़ी जागीरों और स्टेट की जमीनें हुआ करती थीं, जिनमें से कई बाद में जमींदारी उन्मूलन के समय किसानों के नाम दर्ज की गईं। संभव है कि रिकॉर्ड के अभाव में आज भी कुछ जमीनें बेतिया स्टेट के नाम दर्ज हों। लेकिन इस गलती का खामियाजा निर्दोष किसानों को नहीं भुगतना चाहिए। ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच कर वास्तविक मालिकाना हक स्पष्ट करे, ताकि अनावश्यक विवाद और भय की स्थिति समाप्त हो सके। उनका कहना है कि अगर सरकार इस मामले में ठोस कदम नहीं उठाती है तो वे सामूहिक रूप से आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

पिपरिया निवासी आलमगीर, तबरेज, हकीकुल्लाह सहित कई किसानों ने बताया कि उनके पूर्वजों ने इस भूमि को मेहनत और लगन से उपजाऊ बनाया था। आज उनकी तीसरी-चौथी पीढ़ी इसी पर खेती कर परिवार चला रही है। लेकिन अब अचानक राजस्व विभाग की ओर से जमीन को बेतिया स्टेट की संपत्ति बताया जाना उनकी सबसे बड़ी चिंता का कारण है। उनका कहना है कि यदि यह जमीन उनसे छीनी जाती है तो उनके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो जाएगा।
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ग्रामीणों ने बताया कि कुछ समय पहले राजस्व विभाग की एक टीम सत्यापन के लिए गांव पहुंची थी। ग्रामीणों ने जब अपने दस्तावेज और कागजात दिखाए, तो विवाद बढ़ने की आशंका से टीम को वापस लौटना पड़ा। लेकिन उसके बाद से ही गांव में बेचैनी का माहौल है। किसानों का कहना है कि उनके पास जमीन के पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं, फिर भी इसे बेतिया स्टेट की संपत्ति बताना उनके साथ अन्याय है।
इस मसले पर गांव के बुजुर्गों का कहना है कि आजादी से पहले बड़ी-बड़ी जागीरों और स्टेट की जमीनें हुआ करती थीं, जिनमें से कई बाद में जमींदारी उन्मूलन के समय किसानों के नाम दर्ज की गईं। संभव है कि रिकॉर्ड के अभाव में आज भी कुछ जमीनें बेतिया स्टेट के नाम दर्ज हों। लेकिन इस गलती का खामियाजा निर्दोष किसानों को नहीं भुगतना चाहिए। ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच कर वास्तविक मालिकाना हक स्पष्ट करे, ताकि अनावश्यक विवाद और भय की स्थिति समाप्त हो सके। उनका कहना है कि अगर सरकार इस मामले में ठोस कदम नहीं उठाती है तो वे सामूहिक रूप से आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।