हस्तिनापुर (मेरठ)। प्रकृति के रहस्यों को सुलझाना आज भी मानव के लिए असंभव है। कभी प्रलय बनकर तबाही मचाती है तो कभी अपने अनोखे चमत्कारों से सबको चौंका देती है। हस्तिनापुर व परीक्षितगढ़ की सीमा पर एक ऐसा नजारा सामने आया है जिसने इतिहास, आस्था और विज्ञान तीनों को जीवंत कर दिया। यह दृश्य मां बूढ़ी गंगा और गंगा के संगम का है।
क्षेत्र में वर्षों के बाद एक बार फिर गंगा नदी और बूढ़ी गंगा नदी का पानी आपस में मिलन हो गया है। इसे यहां के लोग एक अद्भुत संयोग मान रहे हैं। महाभारत काल से गंगा का हस्तिनापुर से विशेष संबंध रहा है। राजा शांतनु और गंगा का विवाह हो या कुरुवंश के अंतिम राजा निचक्षु के समय आई प्रलयंकारी बाढ़ में गंगा ने हस्तिनापुर की भौगोलिक स्थिति को हमेशा प्रभावित किया। बाढ़ के बाद गंगा का मुख्य प्रवाह बदल गया, लेकिन एक धारा पीछे छूट गई, जिसे आज हम बूढ़ी गंगा के नाम से जानते हैं। एक माह से गंगा की बाढ़ ने क्षेत्र में तबाही मचाई हुई है, लेकिन इसी दौरान गंगा और बूढ़ी गंगा का संगम हस्तिनापुर में होना लोगों के लिए किसी अलौकिक घटना से कम नहीं।
दोनों नदियों के बीच लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी थी, जहां लोग खेती करते थे। मगर इस बार बाढ़ ने दोनों को जोड़ दिया। इससे स्थानीय लोगों में उत्साह और आस्था दोनों का संचार हुआ। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह पुनर्मिलन शुभ संकेत है।
शोध और हाइड्रोलॉजिकल महत्व
बूढ़ी गंगा के ऐतिहासिक भूगर्भीय अध्ययन पर शोधरत प्रियंका भारती बताते हैं कि यह मिलन केवल आस्था नहीं बल्कि हाइड्रोलॉजिकल दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। गंगा और बूढ़ी गंगा का संगम लैटरल कनेक्टिविटी को दर्शाता है, जिससे बाढ़ के समय अतिरिक्त जल बूढ़ी गंगा में प्रवाहित होता है और मुख्य धारा का दबाव कम होता है। उनका कहना है कि गंगा ने कभी बूढ़ी गंगा का साथ नहीं छोड़ा। यह संगम इस बात का प्रमाण है कि दोनों नदियों के बीच सदियों से जल वैज्ञानिक संबंध बना हुआ है।