पंचायत चुनाव: दोहरे नामों ने बढ़ाई दावेदारों की टेंशन, मेरठ में एसआईआर प्रक्रिया ने बिगाड़ा चुनावी गणित
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई एसआईआर प्रक्रिया में डुप्लीकेट मतदाताओं की पहचान से पंचायत चुनाव दावेदारों के समीकरण बिगड़ गए हैं। दोहरे नाम हटने से कई प्रत्याशी जिन वोटों पर निर्भर थे, वे अब सूची से बाहर हो गए। वोटरों को गांव तक लाना भी चुनौती बन गया है।
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राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई एसआईआर (विशेष प्रगाण पुनरीक्षण) प्रक्रिया ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के समीकरणों को बिगाड़ दिया है। मेरठ के हस्तिनापुर में इस प्रक्रिया के तहत डुप्लीकेट मतदाताओं की पहचान से फर्जी वोट नहीं डाल सकते। ऐसे में जो प्रत्याशी अपनी जीत के लिए ऐसे मतदाताओं के वोटों पर निर्भर थे, उनकी चुनाव से पहले ही मुश्किलें बढ़ गईं हैं।
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पंचायत चुनावों की घोषणा के साथ ही संभावित प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी पेश कर दी थी और मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की जुगत में लग गए थे। इसके बाद वे अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए गणित लगाने लगे थे। हालांकि, राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा डुप्लीकेट मतदाताओं को खोजने के लिए चलाए गए एसआईआर अभियान ने उनके इस गणित को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है। जिन मतदाताओं को वे अपने पक्ष में मानकर चल रहे थे, वही अब डुप्लीकेट निकल रहे हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग आगामी पंचायत चुनावों को लेकर योग्य और उचित मतदाताओं की पहचान करने तथा नए मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल करने की प्रक्रिया को पूरा करा रहा है। इसी क्रम में, डुप्लीकेट मतदाताओं की पहचान और उन्हें सूची से हटाने की कार्रवाई से प्रत्याशियों का चुनावी गणित बिगड़ रहा है।
मतदाताओं को गांव तक लाना बना चुनौती
विकासखंड की 46 ग्राम पंचायतों में लगभग एक लाख मतदाता हैं। प्रत्येक ग्राम पंचायत में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो सरकारी या प्राइवेट नौकरी के लिए दूसरे शहरों में शिफ्ट हो गए हैं और उन्होंने वहां वोट बनवा लिए हैं।
उनके वोट आज भी गांव में चल रहे हैं। नए नियमों के तहत ऐसे मतदाताओं को अब गांव के चुनाव में वोट डालने के लिए लाना संभव नहीं होगा।कई मतदाता रिश्तेदारी या अन्य कारणों से गांव में वोट डालने आ जाते थे। वे अब दोहरे नामों के नियम के कारण मतदान से वंचित हो सकते हैं।
निकाय सूची में नाम होने पर पंचायत चुनाव में भागीदारी का नियम
पंचायती राज अधिनियम के अनुसार जिन मतदाताओं के नाम पहले से ही निकायों की मतदाता सूची में शामिल हैं। उन्हें पंचायत की मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है। इसी नियम के लागू होने से प्रत्याशियों का चुनावी गणित बिगड़ रहा है।