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Unnao News: जरदोजी से बदली सरोजनी की किस्मत, तीन साल में ही बन गई पहचान
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फोटो-1-मियागंज में महिलाओं को साड़ी में कढ़ाई का प्रशिक्षण देतीं सरोजनी। स्रोत: स्वयं।
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उन्नाव। मियागंज गांव की सरोजनी मेहनत व लगन से विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल करते हुए जरदोजी में नई ऊंचाइयां छू रही हैं। मात्र तीन साल में ही सरोजनी ने जरदोजी में अच्छी पहचान बना ली है। इसी कारण कई जिलों में जाकर जरदोजी के कपड़ों का स्टॉल लगा चुकी हैं। यही नहीं उपमुख्यमंत्री से सम्मानित भी हो चुकी हैं।
जरदोजी की कढ़ाई ने मियागंज गांव की रहने वाली सरोजनी के जिंदगी में खुशहाली के रंग भर दिए हैं। पति विद्यासागर के पास मात्र दो बीघे कृषि योग्य भूमि है। परिवार में पत्नी सरोजनी व दो बेटे विकास और राज हैं। खेती से परिवार का भरणपोषण न होने पर विद्यासागर मजदूरी भी करने लगे थे। इसके बाद भी परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो रही थी। आर्थिक तंगी से न तो पत्नी के सपने पूरे हो पा रहे थे और न ही बच्चों के।
इसी बीच उनकी पत्नी सरोजनी को जरदोजी के काम के बारे में पता चला। वह तीन साल पहले एक समूह से जुड़ीं। सरोजनी ने बताया कि उनके पास काम शुरू करने के पैसे नहीं थे । राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के सहयोग से 3500 रुपये ऋण लेकर लखनऊ से साड़ियां लाकर कढ़ाई शुरू की। दिन-रात की मेहनत और लगन से काम चल निकला।
इंसेट-1
खुद का बनाया समूह, प्रतिमाह की हो रही 30 हजार की कमाई
सरोजनी ने खुद का नवदुर्गा नाम से स्वयं सहायता समूह बनाया। इसमें गांव की 10 से अधिक महिलाओं को भी काम दिया। सरोजनी के मुताबिक, पहले पाई-पाई को मोहताज होना पड़ता था। अब महीने में अच्छी कमाई हो जाती है। सरोजनी मात्र आठवीं पास हैं। वह देश के दूसरे प्रांतों में लगने वाले मेलों में जाकर अपना हुनर दिखा रही हैं। लखनऊ में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य पुरस्कृत भी कर चुके हैं।
इंसेट-2
समूह से जुड़कर आत्मनिर्भर बन सकती हैं महिलाएं
सरोजनी का कहना है कि जो भी महिलाएं आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, वह सबसे पहले गांव या क्षेत्र में चल रहे समूह से जुड़ें। इसके बाद रुचि के अनुसार जरदोजी, सिलाई, बागवानी आदि का प्रशिक्षण लेकर काम शुरू करें। समूह से इसके लिए सहायता मिल जाती है।
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जरदोजी की कढ़ाई ने मियागंज गांव की रहने वाली सरोजनी के जिंदगी में खुशहाली के रंग भर दिए हैं। पति विद्यासागर के पास मात्र दो बीघे कृषि योग्य भूमि है। परिवार में पत्नी सरोजनी व दो बेटे विकास और राज हैं। खेती से परिवार का भरणपोषण न होने पर विद्यासागर मजदूरी भी करने लगे थे। इसके बाद भी परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो रही थी। आर्थिक तंगी से न तो पत्नी के सपने पूरे हो पा रहे थे और न ही बच्चों के।
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इसी बीच उनकी पत्नी सरोजनी को जरदोजी के काम के बारे में पता चला। वह तीन साल पहले एक समूह से जुड़ीं। सरोजनी ने बताया कि उनके पास काम शुरू करने के पैसे नहीं थे । राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के सहयोग से 3500 रुपये ऋण लेकर लखनऊ से साड़ियां लाकर कढ़ाई शुरू की। दिन-रात की मेहनत और लगन से काम चल निकला।
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खुद का बनाया समूह, प्रतिमाह की हो रही 30 हजार की कमाई
सरोजनी ने खुद का नवदुर्गा नाम से स्वयं सहायता समूह बनाया। इसमें गांव की 10 से अधिक महिलाओं को भी काम दिया। सरोजनी के मुताबिक, पहले पाई-पाई को मोहताज होना पड़ता था। अब महीने में अच्छी कमाई हो जाती है। सरोजनी मात्र आठवीं पास हैं। वह देश के दूसरे प्रांतों में लगने वाले मेलों में जाकर अपना हुनर दिखा रही हैं। लखनऊ में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य पुरस्कृत भी कर चुके हैं।
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समूह से जुड़कर आत्मनिर्भर बन सकती हैं महिलाएं
सरोजनी का कहना है कि जो भी महिलाएं आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, वह सबसे पहले गांव या क्षेत्र में चल रहे समूह से जुड़ें। इसके बाद रुचि के अनुसार जरदोजी, सिलाई, बागवानी आदि का प्रशिक्षण लेकर काम शुरू करें। समूह से इसके लिए सहायता मिल जाती है।