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UP: काशी के महेश को मिली चांद की 60 मिलीग्राम मिट्टी, BHU के पूर्व छात्र ने की थी पानी की खोज; जानें खास

हिमांशु अस्थाना, अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: अमन विश्वकर्मा Updated Thu, 15 May 2025 01:06 PM IST
सार

चांद की मिट्टी से कई सवालों के उत्तर मिलेंगे। प्रो. महेश आनंद ने 1995 में बीएचयू के जियोलॉजी विभाग से बीएससी किया। वे इस वक्त यूके में हैं। अमर उजाला ने उन्होंने खास बातचीत की।

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Mahesh of Kashi found 60 milligrams of moon soil BHU alumnus discovered water
चांद पर पानी खोजने वाले वैज्ञानिकों में शामिल हैं महेश। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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काशी के महेश चांद की मिट्टी से पृथ्वी और चंद्रमा की उत्पत्ति का राज बताएंगे। क्या चंद्रमा पृथ्वी से टूटकर बना है? चंद्रमा और धरती के बीच कितने गहरे संबंध हैं। धरती की उत्पत्ति हाइड्रोजन, कार्बन और नाइट्रोजन जैसे तत्वों से हुई और चांद की मिट्टी में भी इनकी मौजूदगी है या नहीं, इसका पता लगाएंगे।

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उनका निवास टिकरी गांव में है। कक्षा से 6 से 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने सीएचएस से की। 1995 में बीएचयू के जियोलॉजी विभाग से बीएससी किया। वे यूके की ओपन यूनिवर्सिटी में चंद्रमा की मिट्टी पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्हें एक ग्लोबल प्रतिस्पर्धा में चीन से चंद्रमा की 60 मिग्रा मिट्टी लोन पर मिली है। प्रो. महेश आनंद ने यूके से ही फोन पर अमर उजाला से खास बातचीत की। 
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चांद की मिट्टी कैसे और कितनी मिली?
चीन ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों की प्रोफाइल का अध्ययन करने के बाद मुझे चांद की मिट्टी लोन पर दी। इसके लिए आवेदन मांगे गए थे। चीन को मेरी प्रोफाइल पसंद आई। मांग के अनुसार 20-20 मिलीग्राम के तीन सैंपल कुल 60 मिलीग्राम मिले हैं। इन्हें चंद्रमा की सतह के तीन लेयर से निकाला गया था ताकि पता चल सके कि चंद्रमा में गहराई बदलते बदलते केमिकल कंपोजिशन में क्या फर्क आ रहा है। अब यूके की ओपन यूनिवर्सिटी में चांद की मिट्टी पर एक साल तक रिसर्च चलेगा।

Mahesh of Kashi found 60 milligrams of moon soil BHU alumnus discovered water
कई मायने में खास है यह टुकड़ा। - फोटो : अमर उजाला

चंद्रमा से मिट्टी कैसे ली गई? 
चंद्रमा पर सारा रिकॉर्ड सुरक्षित है। वहां कोई नुकसान नहीं हुआ है। चीन ने 2020 में एक मानव रहित मिशन के दौरान ये मिट्टी हासिल की थी। हमने चीन से जो मिट्टी ली है उसे दो तरह से इकट्ठा किया गया है। पहला स्कूप और दूसरा ड्रिलिंग। स्कूप में चम्मच के सहारे रोबोट द्वारा सतह से मिट्टी ली गई। वहीं, दूसरे में चंद्रमा की सतह और उसके एक मीटर नीचे के दो सैंपल लिए गए। इन सैंपल के रासायनिक तत्वों की जांच की जा रही है। चंद्रमा और पृथ्वी के तत्व एक दूसरे में कैसे समाहित है, इसका पता लगाया जाएगा।

चांद पर खोज करने की प्रेरणा कैसे मिली? 
बनारस से यूके आया तो लंदन स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में उल्का पिंड के संग्रह पर अध्ययन किया। यहां देखा कि पूरी दुनिया में मिले उल्का पिंड और खगोलीय पत्थरों का बड़ा सैंपल था। इसमें से कई सैंपल के नाम यूपी के शहरों पर थे। इसमें से एक बनारस नाम से भी पिंड था। 

1798 में बनारस में उल्का पिंड का टुकड़ा गिरा था। अंग्रेज उसे ब्रिटेन ले आए और म्यूजियम में संरक्षित कर दिया। 200 साल बाद बनारस नाम के पिंड देखने के बाद मन उत्साहित हुआ और पूरा फोकस चंद्रमा के रहस्यों को उजागर करने पर केंद्रित हो गया। रूस और अमेरिका में रखे चंद्रमा के पत्थरों पर रिसर्च शुरू किया। पहले अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्राॅन्ग समेत कई अंतरिक्ष मिशन के दाैरान लाए गए सैंपल पर रिसर्च किया। नासा के साथ काम किया।

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कई मायने में खास है यह टुकड़ा। - फोटो : अमर उजाला

आपने चांद पर पानी कैसे खोजा? 
अपोलो मिशन के बाद चंद्रमा से कुछ पत्थर आए थे। अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों की टीम ने पानी का पता लगाया, जिसमें मैं भी शामिल रहा। ये पानी बूंद में नहीं था। बल्कि दो हाइड्रोजन और एक ऑक्सीजन के रूप में था। फिर केमिकल टेस्ट कर ये पता लगाया कि ब्रह्मांड में पानी कहां से आया। पानी क्षुद्रग्रहों से आया। हालांकि, भारी मात्रा में हाइड्रोजन सूर्य से मिला।

बीएचयू और बनारस से आपका कितना लगाव है। क्या बीएचयू के साथ इस क्षेत्र में कभी कोई समझौता करेंगे? 
मैं चाहता हूं कि भारत और खासकर बनारस के युवाओं का वैज्ञानिक रुझान बढ़ाया जाए। उन्हें अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों के साथ काम करता देखूं और वे भारत को नई ऊंचाइयां दें। पिछले 25 वर्षों में मैं कई बार बीएचयू आया। 

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