BHU के जीन वैज्ञानिकों की रिसर्च: मॉरीशस की बसावट में आधे पूर्वांचली, बोली ही नहीं, DNA का भी रिश्ता
मॉरीशस के न्यूरो साइंटिस्ट ने माॅरिशस और पूर्वांचल के रिश्ते के काफी साक्ष्य दिए। उन्होंने कहा कि मैं खुद पूर्वांचली ब्राह्मण है, जिसकी डीएनए रिपोर्ट मेरे पास है। जीन वैज्ञानिकों की रिसर्च में चाैंकाने वाले तथ्य सामने आए।
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मॉरीशस के पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम 10-11 सितंबर को बनारस आने वाले हैं। इससे पहले मॉरीशस के न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. प्राणनाथ मूलचंद ने खुद को पूर्वांचली ब्राह्मण बताया है। उनके पास इसकी डीएनए रिपोर्ट है। उनके पूर्वज बिहार के बक्सर स्थित गजराजगंज से 1869 में मॉरीशस पहुंचे थे। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार स्थित जगदीशपुर के कुंवर सिंह की सेना में शामिल थे। युद्ध के बाद वे लोग मॉरीशस में आ गए।
डॉ. मूलचंद कहते हैं कि मॉरीशस के लोग पूरे पूर्वांचल को काशी क्षेत्र के नाम से जानते हैं। इसमें सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि बिहार के बक्सर, आरा, भभुआ, सासाराम और भोजपुर आदि जिले भी आते हैं। खुद को पूर्वांचली साबित करने के लिए उन्होंने बीएचयू में अपना डीएनए टेस्ट भी कराया, जो कि पूर्वांचलियों के साथ मैच भी हुआ था।
पूर्वांचल के लोगों को मॉरीशस में कहते हैं काशी क्षेत्र का वासी
इससे साबित होता है कि मॉरीशस और पूर्वांचल में सिर्फ भोजपुरी बोली का ही नहीं बल्कि डीएनए का भी रिश्ता है। 300 साल पहले नीदरलैंड के डच लोगों के द्वारा बसाए अफ्रीकी मजदूर जब मलेरिया और कालरा से बीमार होकर मरने लगे तो अंग्रेजों ने काफी अध्ययन और शोध के बाद बेहतर प्रतिरोधक क्षमता वाले भारतीयों को बसाना शुरू किया।
दक्षिण भारत के द्रविड़ जाति और उत्तर भारत की अनुसूचित जातियों को सपरिवार मॉरीशस भेजा जाने लगा। क्योंकि मेहनत और मजदूरी में तो दुनिया भर में इनका कोई सानी नहीं था और ये बीमारियों से भी लड़ने की क्षमता रखते थे। 1810 में 13 फीसदी भारतीय, 1846 में 45 फीसदी और 1971 तक 70 फीसदी भारतीय हो गए।
बीमारी से मर रहे अफ्रीकी मजदूरों को हटाकर पूर्वांचल के लोगों को बसाया
बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग में चल रहे एक शोध में शुरुआती तौर पर यह पता चला है कि ये अनुसूचित जातियां मूल तौर पर पूर्वांचल से ही प्रवास कीं और अब मॉरीशस की बसाहट में दो तिहाई जनसंख्या इन लोगों की हो गई और ये ही लोग हैं कि भोजपुरी बोली की परंपरा को संभाल कर रखे हुए हैं।
बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और उनके शोध छात्र शैलेश ने मॉरीशस के लोगों की सैंपलिंग की है। अध्ययन में पाया कि मॉरीशस की आबादी में सबसे ज्यादा उत्तर भारत के एससी 50 फीसदी, द्रविड़ 41 फीसदी, पाकिस्तानी क्षेत्र के पांच फीसदी और ब्राह्मणों की आबादी तीन फीसदी है।
वहीं, जनजातियों, क्षत्रियों समेत कई जातियों का या तो अस्तित्व समाप्त हो चुका है या फिर वहां हैं ही नहीं। शोधार्थी शैलेश ने बताया कि अनुसूचित जातियों का मूल स्थान पूर्वांचल ही रहा। यहीं से वो लोग देशभर में फैले और मॉरीशस में गिरिमिटिया मजदूर बनकर फिजी तक पहुंचे।
ऐसे बसता गया मॉरीशस
सन 1510 में मॉरीशस पर सबसे पहले पुर्तगालियों का कब्जा हुआ। लेकिन, अफ्रीका से श्रमिकों को मॉरीशस में बसाने की शुरुआत 1670 में नीदरलैंड के डच लोगों ने की। 1810 में कालरा और मलेरिया बीमारी फैलने लगी। इम्युनिटी कम होने के चलते ये बीमार होने लगे। अफ्रीकी सरवाइव नहीं कर पाए। 28 साल के बाद फ्रांस ने कब्जा किया तो उन्हीं मजदूरों से काम कराया।
1810 में ब्रिटिश सरकार ने मॉरिशस पर अधिकार जमाया। क्योंकि, ब्रिटेन की संसद में एंटी स्लेवरी कानून पारित किया गया था, जिससे वहां पर गिरिमिटिया मजदूरों से काम लेना बंद कर दिया गया, लेकिन ब्रिटिश उपनिवेश में ये कानून लागू नहीं होता। उस वक्त ब्रिटिश यहां आए और यहां से ले जाकर श्रमिकों को मॉरीशस में बसाना शुरू कर दिया।