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भड़के शंकराचार्य: बोले- जब तक मोरारी बापू धर्ममर्यादा में नहीं आएंगे तब तक हम उनका चेहरा भी नहीं देखेंगे

अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: अमन विश्वकर्मा Updated Sat, 21 Jun 2025 09:09 PM IST
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सार

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य ने कथावाचक मोरारी बापू के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त की है। इसके पहले भी सूतक काल में बाबा विश्वनाथ के स्पर्श दर्शन को लेकर उनका विरोध हो रहा था।

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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कथावाचक मोरारी बापू के लिए ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य ने धर्मदंड घोषित किया है। शंकराचार्य ने शनिवार को धर्मदंड घोषित करते हुए कहा कि आज से मोरारी बापू का चेहरा देखना भी हम पाप समझेंगे और उन्हें भी जीवन में हमें देख पाने का अवसर तब तक के लिए समाप्त करते हैं जब तक कि वे शास्त्र मर्यादा में स्थित नहीं हो जाते हैं। 

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साथ ही उन्हें धर्म के मामले में अप्रमाण घोषित करते हुए सनातनी जनता को सूचित करते हैं कि उनके किसी भी आचरण और उपदेशों को प्रमाण न मानें और उसकी उपेक्षा करें।
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शनिवार को शंकराचार्य ने कहा कि जिन दंडों के लिए राजसत्ता ने कोई दंड विधान नहीं बनाया है, उनसे संबंधित मामलों में दंड देने का आचार्यों का आज भी अधिकार सुरक्षित है। सबसे बड़ा दंड जो आचार्य देते रहे हैं वह है समाज से तब तक के लिए बहिष्कार जब तक कि संबंधित व्यक्ति प्रायश्चित्त कर शुद्धि नहीं प्राप्त कर लेता है। 

मोरारी बापू समय-समय पर अपने आचरणों और वक्तव्यों से अशास्त्रीय कार्यों को प्रोत्साहन देते हुए दिखाई दिए हैं। चिता की अग्नि में विवाह संपन्न कराने जैसे जाने कितने इनके अशास्त्रीय कृत्य सुने जाते रहे हैं। वर्तमान में स्वयं की पत्नी के दिवंगत होने पर उसके उत्तर कृत्यों को नकारना और यहां तक कि उसका मरणाशौच भी न मानते हुए काशी जैसी धर्मनगरी में आकर विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में जाकर पूजा अर्चना करना और आसन पर बैठकर राम कथा श्रवण कराने जैसा अशास्त्रीय कार्य इनके द्वारा किया जा रहा है। 

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काशी में कथावाचक मोरारी बापू का विरोध। - फोटो : अमर उजाला

काशी और देशभर के अनेक नागरिकों, विद्वानों, पंडितों और धर्माचार्यों द्वारा इनके इन अपकृत्यों के बारे में प्रश्न उठाने और विरत होने की प्रार्थना भी की गई। तब इन्होंने क्षमा याचना की शब्दावली तो कही पर मंदिर शुद्धिकरण के बारे में कुछ नहीं किया और कथा भी स्थगित नहीं की। बल्कि यह कहा कि मैं निम्बार्की हिंदू हूं। मेरे पास भी शास्त्र हैं।

लेकिन एक सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जनता के समक्ष उन्होंने कोई शास्त्र वाक्य नहीं रखा। ऐसे में यह सिद्ध हो गया कि न तो उनके पास कोई शास्त्र है जिसे वे प्रदर्शित कर अपने कृत्य को औचित्य पूर्ण सिद्ध कर सकें और न ही उनमें शास्त्रों के प्रति श्रद्धा है कि शास्त्रों का ध्यान दिलाए जाने पर वे अपने अशास्त्रीय कार्य से विरत हो सकें। 

इसलिए हिंदू धर्मशास्त्रों में श्रद्धाहीनता और मिथ्या दंभ का प्रदर्शन करने के धार्मिक अपराध में संलिप्त पाए जाने पर उन्हें हम धर्म दंड देते हैं कि आज से मोरारी बापू का चेहरा देखना भी हम पाप समझेंगे और उन्हें भी जीवन में हमें देख पाने का अवसर तब तक के लिए समाप्त करते हैं जब तक कि वे शास्त्र मर्यादा में स्थित नहीं हो जाते हैं। साथ ही उन्हें धर्म के मामले में अप्रमाण’ घोषित करते हुए सनातनी जनता को सूचित करते हैं कि उनके किसी भी आचरण और उपदेशों को प्रमाण न मानें और उसकी उपेक्षा करें। 

हम निंबार्क संप्रदाय और उनकी सभा तथा उनके आचार्य का सम्मान करते हुए उनसे भी इस संदर्भ में जनता का मार्गदर्शन होने की अपेक्षा करते हैं। हम जनसामान्य को बताना चाहेंगे कि भजन करना,कथा सुनना धर्म है यह जिस शास्त्र ने बताया वही शास्त्र सूतक में इसे न करने को कहता है। तो शास्त्र की आधी बात मानना और आधी बात न मानना अनुचित है। 

यदि यह कहें कि भजन-पूजन से रोकने का मतलब पुण्य प्राप्त करने से रोकना है तो यह भी सही नहीं है। शास्त्र सूतक में हमें जिन कार्यों को करने से रोकता है, न करने पर भी उनका पुण्यफल हमें मिलता ही है। सवाल करने न करने का नहीं,सवाल शास्त्र आज्ञा को मानने का ही होता है। इसलिए सूतक में धर्मकार्य न करना ही धर्म है।

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