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Greater Noida News: भ्रष्टाचार के आरोप में एडीएम न्यायिक, पूर्व एडीएम और पेशकार पर एफआईआर
नोएडा ब्यूरो
Updated Thu, 09 Oct 2025 10:27 PM IST
चकबंदी विभाग में भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। गांव ढाकावाला दनकौर निवासी ने मेरठ की विशेष अदालत (भ्रष्टाचार निवारण द्वितीय) में तीन अधिकारियों के खिलाफ शिकायत की है। आरोप है कि गौतमबुद्धनगर में चल रहे एक भूमि विवाद प्रकरण में संबंधित चकबंदी अधिकारियों द्वारा अवैध धन लेकर न्यायिक आदेशों में हेराफेरी की गई। बाद में दो लाख रुपये की रिश्वत मांगकर दबाव बनाया गया। सूरजपुर कोतवाली पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर उपसंचालक अधिकारी चकबंदी व जिले में एडीएम न्यायिक के पद पर तैनात भैरपाल सिंह, पूर्व उपसंचालक अधिकारी व जिले में तैनात रहे पूर्व एडीएम (प्रशासन) दिवाकर सिंह और पेशकार शीशपाल के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं में केस दर्ज कर जांच शुरू की है। शिकायतकर्ता देवराज नागर ने बताया कि मामला मूल रूप से उनके गांव ढाकावाला की भूमि से संबंधित है। मामला वर्ष 2017-18 के रूप में उपसंचालक अधिकारी चकबंदी गौतमबुद्धनगर की न्यायालय में विचाराधीन था। विपक्षी पक्ष में सविता देवी, स्नेहलता और सुरेश देवी थीं। जिन्होंने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से आपत्ति दाखिल की थी। मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन पीठासीन अधिकारी दिवाकर सिंह ने 10 नवंबर 2020 को बंदोबस्त अधिकारी द्वारा पारित एकतरफा आदेश (दिनांक 22 अगस्त 2016) को निरस्त करते हुए पुनः सुनवाई के लिए चकबंदी अधिकारी के पास भेजा था। साथ ही देरी के लिए देवराज नागर पर 10 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया गया था। देवराज नागर के अनुसार यह राशि 17 नवंबर 2020 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सूरजपुर कलेक्ट्रेट में पेशकार शीशपाल के माध्यम से जमा कराई गई और रसीद न्यायालय में प्रस्तुत कर दी गई थी। आरोप है कि इसी बीच 13 नवंबर 2020 को विपक्षी पक्ष के सेलकराम नामक व्यक्ति ने स्नेहलता के नाम से एक रेस्टोरेशन (पुनर्स्थापन) प्रार्थना पत्र दाखिल किया। आरोप है कि तत्कालीन उपसंचालक अधिकारी दिवाकर सिंह और पेशकार शीशपाल ने मिलकर साजिश के तहत यह आवेदन स्वीकार कर लिया और पहले से पारित आदेश (10 नवंबर 2020) का क्रियान्वयन स्थगित कर दिया। लेकिन इसे दस्तावेज से जानबूझकर अलग रख दिया गया। उन्हें धोखे में रखकर 10 हजार रुपये की राशि सरकारी खाते में जमा कराई गई। जबकि आदेश पहले ही रोक दिया गया था। जब इस पुनर्स्थापन की जानकारी उन्हें मिली, तो उन्होंने 15 दिसंबर 2020 को अपना जवाब दाखिल किया। इसके बाद 27 नवंबर 2024 को पीठासीन अधिकारी भैरपाल और पेशकार दीपक ने रेस्टोरेशन प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की। उन्होंने अदालत में दस्तावेज के सभी तथ्यों और प्रमाणों का हवाला देते हुए लिखित बहस भी दाखिल की थी। आरोप है कि 13 दिसंबर 2024 को जब वह अपने साथियों प्रमोद, मोहित और आकाश के साथ अदालत पहुंचे, तो पीठासीन अधिकारी भैरपाल ने अपने केबिन में दो लाख रुपये की अवैध मांग की। उन्होंने कहा कि यदि यह रकम दी जाती है, तो आदेश देवराज नागर के पक्ष में पारित कर दिया जाएगा और पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया जाएगा। अन्यथा आदेश विपक्षी पक्ष के पक्ष में जाएगा। 18 दिसंबर 2024 को आदेश के लिए निर्धारित तिथि थी। जब उन्होंने दस्तावेज की जानकारी मांगी, तो बताया गया कि यह पीठासीन अधिकारी के पास है। शाम 5 बजे तक कोई आदेश सुनाया नहीं गया और अधिकारी पत्रावली लेकर अपने घर चले गए। अगले दिन 19 दिसंबर 2024 को सुबह 11 बजे जब उन्होंने दस्तावेज देखा, तो पाया कि उस पर 18 दिसंबर की बैकडेट डालकर टाइप किया आदेश तैयार किया गया। जिसमें पहले पारित मेरिट आदेश 10 नवंबर 2020 को एकतरफा मानते हुए निरस्त कर दिया गया था। मामले की शिकायत डीएम, पुलिस आयुक्त गौतमबुद्धनगर, चकबंदी आयुक्त, मुख्य सचिव को दी लेकिन कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। विवश होकर उन्होंने मेरठ की भ्रष्टाचार निवारण विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। वहीं एसीपी सेंट्रल नोएडा बीएस वीर का कहना है कि कोर्ट के आदेश पर केस दर्ज किया है। मामले की जांच की जा रही है।
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