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संसद में अमित शाह ने वोट चोरी की तीन घटनाएं बताईं
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 11 Dec 2025 04:14 AM IST
संसद में बुधवार को उस समय राजनीतिक तापमान अचानक बढ़ गया, जब गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाले विपक्ष को “इतिहास के आईने में झांकने” की नसीहत दे दी। सदन में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर विपक्ष जहां सरकार पर ‘वोट चोरी’ और ‘चुनाव हस्तक्षेप’ के आरोप लगा रहा था, वहीं अमित शाह ने बहस का रुख सीधे 1947 के दौर की ओर मोड़ते हुए कांग्रेस के अंदरूनी इतिहास को केंद्र में ला दिया। शाह ने कहा कि आज विपक्ष जिस ‘वोट चोरी’ की बात कर रहा है, उसकी पहली मिसाल तो देश को आज़ादी के तुरंत बाद ही मिल गई थी।
पहली ‘वोट चोरी’- सरदार पटेल बनाम नेहरू
अमित शाह ने दावा किया कि आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री पद के चयन में कांग्रेस के 28 प्रांतीय अध्यक्षों ने सरदार पटेल को चुना था, जबकि जवाहरलाल नेहरू के नाम पर महज़ दो वोट पड़े। इसके बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू बने। शाह ने कहा, “क्या यह वोट चोरी नहीं थी? बहुमत का अपमान यहीं से शुरू हुआ था।” सदन में यह टिप्पणी विपक्ष के हंगामे के बीच आई, लेकिन शाह ने जोर देकर कहा कि इतिहास को नज़रअंदाज़ कर वर्तमान पर आरोप लगाना राजनीतिक ईमानदारी नहीं है।
दूसरी घटना- इंदिरा गांधी और इलाहाबाद हाईकोर्ट
वोट चोरी की दूसरी घटना बताते हुए शाह ने इंदिरा गांधी के 1975 के चुनाव को केंद्र में रखा। उन्होंने कहा कि रायबरेली से इंदिरा गांधी की जीत को राजनारायण ने कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस चुनाव को ‘अवैध’ करार दे दिया। शाह बोले, “जब कोर्ट ने तय कर दिया था कि चुनाव सही तरीके से नहीं जीता गया, तब इसे क्या कहा जाएगा? यह भी तो वोट चोरी ही थी। फिर इस फैसले के बाद संसद में कानून लाया गया ताकि प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई केस न हो सके। विपक्ष आज इम्युनिटी पर सवाल खड़ा कर रहा है, लेकिन जो इंदिरा जी ने खुद के लिए इम्युनिटी ली, उस पर चुप क्यों हो?”
तीसरी घटना- सोनिया गांधी पर आरोप
तीसरे उदाहरण में अमित शाह ने सोनिया गांधी से जुड़े एक हालिया विवाद का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि एक मामला अभी दिल्ली की सिविल अदालत में है, जिसमें दावा किया गया है कि सोनिया गांधी देश की नागरिकता मिलने से पहले ही मतदाता सूची में शामिल हो गई थीं।
शाह बोले, “मैं तथ्य बता रहा हूं। इसका जवाब अदालत में देना है, यहां क्यों दिया जा रहा है? विपक्ष पूरे मामले को चुनाव आयोग से जोड़ना चाहता है, जबकि यह कानूनी प्रक्रिया का विषय है।”
बहस के दौरान विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार चुनाव आयोग की नियुक्तियों में हस्तक्षेप कर रही है और प्रक्रिया को ‘संस्थागत कब्जा’ की दिशा में ले जाया जा रहा है। इस पर तीखा पलटवार करते हुए अमित शाह ने कहा, “73 साल तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का कोई कानून ही नहीं था। प्रधानमंत्री फाइल भेजते थे और राष्ट्रपति मंजूरी दे देते थे। तब विपक्ष ने सवाल क्यों नहीं उठाया? मोदी सरकार ने पहली बार नियुक्ति प्रक्रिया को बहुसदस्यीय पैनल से जोड़ा है।”
उन्होंने कहा कि 2023 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अस्थायी समिति बनाई गई जिसमें प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता शामिल रहे। बाद में कानून लाकर प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया। शाह ने कहा, “कांग्रेस ने अपने दौर में जो परंपरा बनाई, आज उसी पर सवाल उठा रही है। पारदर्शिता की बात करने वालों को पहले अपने इतिहास का सामना करना चाहिए।”
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