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Baba Ramdev's Patanjali gets a setback from Delhi High Court, what is the whole matter?
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बाबा रामदेव की पतंजलि को दिल्ली हाईकोर्ट से झटका, क्या है पूरा मामला?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 03 Jul 2025 05:58 PM IST
योग और आयुर्वेद को लेकर अपनी पहचान बना चुकी पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर अदालत की फटकार के दायरे में आ गई है। डाबर इंडिया लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पतंजलि आयुर्वेद को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक और भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया है।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की एकल पीठ ने डाबर की याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की और पतंजलि से कहा कि वह ऐसे किसी भी वीडियो या प्रचार को न चलाए जो दूसरे ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचाता हो।
डाबर की याचिका के अनुसार, पतंजलि ने अपने “स्पेशल च्यवनप्राश” के विज्ञापन में दावा किया कि “किसी अन्य निर्माता को च्यवनप्राश बनाना नहीं आता।”
यही नहीं, विज्ञापन में बाकी सभी ब्रांडों को “साधारण च्यवनप्राश” कहकर न केवल नीचा दिखाया गया, बल्कि यह भी कहा गया कि “अन्य कंपनियों को च्यवनप्राश के आयुर्वेदिक ग्रंथों और मूल सूत्रों की जानकारी नहीं है।”
डाबर ने इसे सीधा व्यावसायिक अपमान और भ्रामक बयान बताया। डाबर की तरफ से अधिवक्ताओं जवाहर लाल और मेघना कुमार ने कोर्ट में कहा कि पतंजलि का यह प्रचार एक सोची-समझी रणनीति है ताकि डाबर जैसे पुराने और प्रतिष्ठित ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके।
याचिका में कहा गया कि “साधारण” शब्द का उपयोग कर पतंजलि ने यह दिखाने की कोशिश की कि डाबर का च्यवनप्राश गुणवत्ता में घटिया है।
कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा कि विज्ञापन की स्वतंत्रता व्यक्तिगत अपमान या प्रतिस्पर्धियों की बदनामी का हथियार नहीं बन सकती।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने कहा कि यदि पतंजलि के दावों में सच्चाई नहीं है, तो यह उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाला है और सीधे तौर पर कॉम्पिटिशन एक्ट और उपभोक्ता संरक्षण कानून का उल्लंघन है।
कोर्ट ने पतंजलि को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि वह 14 जुलाई तक अपने पक्ष में जवाब दाखिल करे। तब तक के लिए सभी भ्रामक, अपमानजनक विज्ञापनों को स्थगित करने का आदेश दिया गया है।
यह पहला मामला नहीं है जब पतंजलि भ्रामक प्रचार के चलते अदालत की नजरों में आया हो। पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे मौके आए हैं, जब बाबा रामदेव और पतंजलि पर अदालत की नाराजगी दर्ज हुई:
कोविड इलाज का दावा (2022)
IMA (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पतंजलि पर कोविड और अन्य बीमारियों के झूठे इलाज का दावा करने का आरोप लगाया।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार (2023)
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन बंद करने का आदेश दिया था। बावजूद इसके प्रचार जारी रहा, जिससे कोर्ट और नाराज़ हुआ।
व्यक्तिगत हाज़िरी का आदेश (2024)
कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया। फिर अवमानना की चेतावनी भी दी गई।
कोर्ट में माफीनामा (2025)
मार्च 2025 में दोनों ने माफीनामा दाखिल किया और कोर्ट से क्षमा मांगी। इसके बाद मामला बंद कर दिया गया।
यह भी उल्लेखनीय है कि पतंजलि हमदर्द कंपनी के शरबत पर ‘शरबत जिहाद’ वाली टिप्पणी के चलते पहले ही अदालत की फटकार झेल चुकी है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि बाबा रामदेव किसी के नियंत्रण में नहीं हैं और “अपनी ही दुनिया में जीते हैं।”
कोर्ट ने प्रथम दृष्टया उन्हें आदेश की अवमानना का दोषी भी पाया और भविष्य में हमदर्द के उत्पादों पर कोई टिप्पणी न करने का आदेश दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिस्पर्धा में ब्रांड को बेहतर दिखाने का प्रयास करना ठीक है, लेकिन जब वह दूसरे ब्रांड को नुकसान पहुंचाने या नीचा दिखाने के रूप में हो, तो वह कानूनी दायरे से बाहर हो जाता है। डाबर भारत की सबसे पुरानी आयुर्वेदिक कंपनियों में से एक है और च्यवनप्राश उसके प्रमुख उत्पादों में है। ऐसे में पतंजलि का यह दावा न केवल भ्रामक बल्कि उद्योग जगत के लिए खतरनाक मिसाल बन सकता है।
आयुर्वेदिक ब्रांड्स के बीच यह टकराव अब केवल मार्केटिंग वॉर नहीं, बल्कि कानूनी लड़ाई में बदल गया है। जहां एक तरफ पतंजलि अपने उत्पादों की श्रेष्ठता पर जोर दे रही है, वहीं डाबर अपने ब्रांड की गरिमा और विश्वसनीयता को बचाने की जंग लड़ रही है।
इस पूरे मामले में न्यायपालिका की भूमिका अब और भी अहम हो गई है।
अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी, लेकिन तब तक एक बात तय है — “दवा और दावा, दोनों के बीच अब कोर्ट तय करेगा सही और गलत का अंतर।”
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