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Chandra Grahan 2025: The sight of Blood Moon was seen all over the world, the pictures won hearts.
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Chandra Grahan 2025: Blood Moon का नजारा पूरी दुनिया में देखा, तस्वीरों ने मोह लिया दिल।
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: अभिलाषा पाठक Updated Mon, 08 Sep 2025 08:51 AM IST
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खगोलीय घटनाओं को वैज्ञानिक नजरिए से देखने-समझने का अभ्यास करने वाले लोगों के लिए चंद्र ग्रहण धर्म से इतर भी गूढ़ अर्थ रखता है। आज साल 2025 के अंतिम चंद्र ग्रहण के दौरान देशभर में 'ब्लड मून' देखा गया। लगभग तीन साढ़े घंटे से अधिक समय तक चांद पर धरती की छाया पड़ती रही। चंद्रग्रहण की पूरी अवधि में पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच रही और चांद पर सूर्य का प्रकाश सीधे नहीं पड़ा। देशभर से इस खगोलीय घटना की तस्वीरें सामने आई हैं। दिल्ली-एनसीआर,लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम और चेन्नई जैसे शहरों से चांद और 'ब्लड मून' की अलग-अलग छवियां सामने आईं। देखिए ब्लड मून यानी रक्त जैसी लालिमा लिए चंद्रमा की चुनिंदा तस्वीरें...खबरों के मुताबिक दुनिया के लगभग 77 फीसदी हिस्से में चंद्रग्रहण देखा गया। भारत समेत ब्रिटेन, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये जैसे देशों में भी चंद्रग्रहण देखा गया। लाखों खगोल विज्ञान प्रेमियों ने चांद पर पड़ती धरती की छाया को देखा और सौरमंडल की अनोखी घटना के साक्षी बने।भारत में करीब साढ़े तीन घंटे बाद चांद धरती की छाया से मुक्त हुआ।
वहीं थाईलैंड, चीन, हांगकांग, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में लोगों ने टेलिस्कोप और अन्य वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से चांद को कई मिनटों तक निहारते रहे। वैज्ञानिकों के मुताबिक एशिया और ऑस्ट्रेलिया से देखने वालों के लिए यह सबसे अच्छा अनुभव रहा होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्र ग्रहण चंद्रमा के पेरिगी पर पहुंचने से ठीक 2.7 दिन पहले होने के कारण खास रहा। इस कारण चांद अपने सामान्य आकार से थोड़ा बड़ा दिखाई दिया। पेरिगी कक्षा की उस बिंदु को कहते हैं जहां पहुंचने के बाद चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब आ जाता है।खगोल विज्ञान के जानकारों के मुताबिक यूरोप और अफ्रीका में चंद्रोदय के समय चंद्र ग्रहण देखा गया। इस दौरान क्षितिज का अद्भुत दृश्य दिखाई दिया। फोटोग्राफी के शौकीन लोगों के लिए ये अवसर बेहद खास साबित हुआ।सूतक काल, हिन्दू धर्म में एक ऐसा समय माना जाता है जो किसी ग्रहण (चंद्र या सूर्य) से पूर्व शुरू होता है। चंद्रग्रहण के मामले में, सूतक काल ग्रहण के लगभग 9 घंटे पहले शुरू होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस काल में वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो जाती है क्योंकि राहु और केतु ग्रहों का प्रभाव चंद्रमा पर पड़ता है। इसी कारण से इसे अशुभ समय माना जाता है। इस अवधि में पूजा-पाठ, भोजन, श्रंगार और किसी भी शुभ कार्य को निषिद्ध माना गया है। यह समय आध्यात्मिक साधना, जप, ध्यान और आत्मचिंतन के लिए उपयुक्त होता है। सूतक काल का मुख्य उद्देश्य आत्मा और वातावरण को शुद्ध बनाए रखना है, ताकि ग्रहण के दुष्प्रभावों से बचा जा सके। इसलिए ज्योतिष और धर्मशास्त्र दोनों में इस समय का विशेष महत्व बताया गया है।
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