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Explainer: क्या होती है अंतरिम सरकार? नेपाल में नहीं होंगे ये अधिकार | AmarUjala | Nepal

अमर उजाला, नोएडा Published by: तन्मय बरनवाल Updated Thu, 11 Sep 2025 03:44 PM IST
Explainer: What is an interim government? These rights will not be there in Nepal | AmarUjala | Nepal
नेपाल इन दिनों अपने अपने बुरे दौर से गुजर रहा है।, सड़कों पर युवाओं का ग़ुस्सा है और सत्ता की कुर्सी खाली! राजनीतिक उथल-पुथल और तनाव के बीच वहाँ की सरकार गिर गई है । सोशल मीडिया बैन से शुरू हुआ विरोध आंदोलन अब अंतरिम सरकार के गठन तक पहुँच चुका है। हालात संभालने के लिए युवाओं ने पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अपना नेता चुना है, जिससे देश में नई राजनीतिक शुरुआत की उम्मीदें जग उठी हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर नेपाल में अंतरिम सरकार का गठन कैसे होता है? इसके अधिकार क्या होते हैं और इसकी सीमाएँ किन बिंदुओं तक तय हैं? चलिए विस्तार से बताते है।

नेपाल में हिंसा के बाद तनाव बना हुआ है। इस बीच सेना और प्रदर्शनकारियों में बातचीत हुई है। बातचीत के बाद पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को Gen Z ने अपना नेता चुना है। उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में नेपाल में अगली अंतरिम सरकार का गठन होगा। दरअसल, नेपाल संविधान के अनुच्छेद 100 के अनुसार जब देश में किसी कारण से तत्कालीन सरकार गिर जाती है या फिर किसी कारण से प्रधानमंत्री अपना इस्तीफा दे देते हैं तो नेपाल में ‘अंतरिम’ या ‘केयरटेकर’ सरकार बनाई जा सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अंतरिम सरकार के पास सरकार चलाने के सीमित अधिकार होते हैं। नेपाल मीडिया के अनुसार अस्थायी सरकार अपने कार्यकाल में कोई बड़ा नीतिगत बदलाव या निर्णय नहीं ले सकती है। अंतरिम सरकार को केवल दैनिक प्रशासन कार्य सुचारू रूप से चलाए रखने के लिए बनाया जाता है। ऐसी सरकार खासकर विदेश नीति और देश की सेना से जुड़े बड़े फैसले नहीं ले सकता है।

सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस रह चुकी हैं। उन्होंने 2016 में अपना पदभार संभाल था, उनकी छवि बेहद निष्पक्ष और ईमानदार जज की है। यहां बता दें कि अंतरिम सरकार में कोई नया कानून पारित नहीं किया जा सकता। इसके अलावा अस्थायी सरकार सेना या विदेश नीति जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सीमित निर्णय लेने का अधिकार रखती है। अमूमन अंतरिम सरकार कुछ हफ्तों से चंद महीनों तक ही चलती है। नेपाल के मौजूदा संकट में युवाओं ने जिस तरह उन्हें अपना नेता चुना है, वह इस बात का संकेत है कि जनता अब भ्रष्टाचार और अस्थिर राजनीति से निजात चाहती है। कार्की को इसलिए भी एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है क्योंकि वे राजनीति से सीधे तौर पर नहीं जुड़ीं और उनकी छवि निष्पक्ष है। यह भरोसा दिलाता है कि वे अंतरिम सरकार को संतुलित तरीके से चला सकती हैं। बता दे की नेपाल में संसदीय लोकतंत्र है, यहां प्रधानमंत्री का पद कार्यकारी प्रमुख का होता है। देश का प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के अधीन आता है। नेपाल के संविधान के अनुसार यहां प्रधानमंत्री का चयन संसद के बहुमत के आधार पर होता है। राष्ट्रपति संसद में सबसे बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता है। उम्मीदवार को 30 दिनों के भीतर संसद में विश्वासमत हासिल करना होता है, अगर वह ऐसा नहीं कर पाता तो दूसरे उम्मीदवार को मौका दिया जाता है।

अब आपके मन में सवाल हो रहा होगा की आखिर यहाँ की प्रक्रिया दूसरे देशों से अलग क्यों है जैसे भारत और अमेरिका? तो नेपाल में संसदीय प्रक्रिया भारत और अमेरिका से अलग है। भारत में संसदीय व्यवस्था है, यहां राष्ट्रपति बहुमत वाले लोकसभा सदस्य को प्रधानमंत्री बनाते हैं। बता दें इंडिया में लोकसभा पर निर्भरता अधिक है। जबकि इससे उलट नेपाल में क्षेत्रीय असंतुलन और जातीय विविधता दलों को प्रभावित करती है। इस सब के अलावा अमेरिका में राष्ट्रपति जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से इलेक्टोरल कॉलेज के माध्यम से चुना जाता है। बता दें हाल ही में नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन लगा। सरकार का दावा था कि इस कदम से अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं पर रोक लगेगी। लेकिन देश के युवा इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। उनका मानना था कि यह उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। शुरुआत में विरोध शांतिपूर्ण था, लेकिन धीरे-धीरे यह आंदोलन हिंसक हो गया। काठमांडू और कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने आगजनी की, सड़कें जाम कर दीं और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया, जिससे हालात और बिगड़ गए। आखिरकार दबाव बढ़ने पर नेपाल के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद अंतरिम सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। अब गौर करें तो नेपाल का मौजूदा संकट केवल राजनीतिक अस्थिरता का मामला नहीं है, बल्कि यह देश की युवा शक्ति और लोकतांत्रिक मूल्यों की परीक्षा भी है। जिस तरह से युवाओं ने हिंसा के बावजूद एक निष्पक्ष और भरोसेमंद नेता को चुना है, यह सकारात्मक संकेत है। हालांकि चुनौतियां कम नहीं हैं। अंतरिम सरकार को सीमित अधिकारों के साथ प्रशासन चलाना होगा। सबसे बड़ी चुनौती शांति बहाल करना, विश्वास कायम करना है।
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