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तेलंगाना फैक्ट्री विस्फोट में लापता परिजनों के लिए तड़प रहें परिवार
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 03 Jul 2025 12:58 PM IST
तेलंगाना के संगारेड्डी जिले की वह सुबह सामान्य नहीं थी। फार्मा फैक्ट्री में हुए भीषण विस्फोट ने न जाने कितने घरों में मातम बिखेर दिया। उन चेहरों पर गम की परछाइयाँ हैं, जिनका कोई दोष नहीं था — बस वे रोज़ी-रोटी की तलाश में फैक्ट्री पहुंचे थे।
ज्योत्सना का 19 वर्षीय भतीजा कल ही ड्यूटी पर लौटा था। रविवार की छुट्टी के बाद सोमवार की सुबह वो जल्दी तैयार हुआ। घर से निकला, फैक्ट्री में मोबाइल जमा किया और पेपर कटिंग यूनिट की ओर बढ़ गया। लेकिन फिर… जैसे वक्त ठहर गया हो। न फोन आया, न कोई खबर। अब केवल आंसुओं में डूबा इंतजार है। ज्योत्सना कांपती आवाज़ में कहती हैं,
“डेथ हो गई या क्या हुआ, कुछ पता नहीं चल रहा… बॉडी भी नहीं मिल रही है।”
इसी तरह, पूजा कुमारी, जो सात महीने की गर्भवती हैं, अपने पति, भाई और दो चाचाओं की तलाश में रो-रोकर बेहाल हैं। वे बिहार से काम के सिलसिले में तेलंगाना आए थे, सपनों के साथ। पूजा अब टूटी हुई सी दिखती हैं — एक मां, एक पत्नी और एक बहन, जो सिर्फ एक आवाज सुनना चाहती है।
“एक बच्चा छोटा है, और अब… कुछ समझ नहीं आ रहा,” वह रुंधे गले से कहती हैं।
रेखा के भाई ने विस्फोट के कुछ देर बाद उसे कॉल किया था — शायद आखिरी बार। सात महीने पहले फैक्ट्री में काम शुरू किया था उसने, पर कोई नहीं जानता था कि इतना कम वक्त उसकी पूरी जिंदगी का आखिरी अध्याय बन जाएगा।
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इस हादसे को राज्य की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक बताया है। मुआवजे के ऐलान हुए, जांच के आदेश दिए गए, लेकिन जिनका सब कुछ उजड़ गया, उनके लिए यह सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है।
यह कहानी सिर्फ़ एक फैक्ट्री विस्फोट की नहीं है, यह उन सपनों की राख है जो नौकरी की तलाश में आए थे, और अब लौटेंगे तो सिर्फ़ ताबूतों में।
इस त्रासदी ने ये सवाल छोड़ दिया है — क्या इंसान की जान सस्ती है? क्या सुरक्षा महज़ एक कागज़ी वादा है? जवाब शायद अभी भी लापता है… ठीक वैसे ही जैसे पूजा का परिवार और ज्योत्सना का भतीजा।
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