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New Vice President: Masterstroke by CP Radhakrishnan PM, how did Rahul Gandhi's problems increase?
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New Vice President: सीपी राधकृष्णन PM का मास्टरस्ट्रोक,राहुल गांधी की कैसे बढ़ी मुश्किल ?
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: अभिलाषा पाठक Updated Tue, 19 Aug 2025 10:38 AM IST
कई बार ऐसा होता है कि विपक्ष अपनी रणनीति बना लेता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस रणनीति के बीच अचानक ऐसा दांव खेल देते हैं कि विपक्षी खेमा चकरा जाता है. एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का नाम सामने आना ऐसा ही मास्टरस्ट्रोक है. आपको याद होगा, जब जगदीप धनखड़ को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति के लिए कैंडिडेट चुना था तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दुविधा में फंस गई थीं. क्योंकि धनखड़ तब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हुआ करते थे और ममता विपक्षी दलों की टीम में थीं. आखिर उन्होंने धनखड़ को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. अब यही दुविधा उद्धव ठाकरे और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के सामने आ गई है.
पीएम मोदी ने सीपी राधाकृष्णन का नाम आगे बढ़ाकर इन दोनों नेताओं के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल ये है कि अगर वे राधाकृष्णन को समर्थन नहीं देते हैं, तो यह सीधा मैसेज जाएगा कि उन्होंने अपने ही राज्यपाल के खिलाफ जाकर वोट किया. राजनीति में यह बात जनता और विपक्ष दोनों ही आसानी से पकड़ लेते हैं. यही वजह है कि संजय राउत ने तुरंत कहा, राधाकृष्णन जी बहुत अच्छे इंसान हैं, विवादास्पद नहीं हैं और उनके पास अनुभव है. मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं. संजय राउत का बयान संकेत है कि उद्धव ठाकरे इस मामले में बहुत आगे जाकर खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगे. उनके पास सिर्फ दो विकल्प हैं– या तो चुप्पी साध लें या समर्थन कर दें. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी असमंजस में आएंगे. वजह यह है कि सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के हैं और उन्होंने हमेशा अपने को ‘प्राउड आरएसएस कैडर’ बताया है. अब स्टालिन अगर उन्हें समर्थन देते हैं तो डीएमके के वोटरों में सवाल उठेगा कि आखिर स्टालिन ने एक आरएसएस विचारधारा वाले नेता का समर्थन क्यों किया. और अगर विरोध करते हैं, तो यह आरोप लगेगा कि उन्होंने तमिलनाडु के सपूत को ही नकार दिया. यानी स्टालिन के लिए भी यह चुनाव ‘हां’ या ‘ना’ दोनों में फंसा हुआ है.
विपक्षी गठबंधन की धुरी आज राहुल गांधी बन चुके हैं. लेकिन इस स्थिति में सबसे बड़ी चुनौती उन्हीं के सामने है. वे जिस विपक्षी एकजुटता का दावा करते हैं, वह राधाकृष्णन के नाम से डगमगा सकती है. 2022 का उदाहरण उनके सामने है. जब जगदीप धनखड़ को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था, तो ममता विपक्षी मंच पर होने के बावजूद समर्थन करने को मजबूर हो गई थीं. अब वही दुविधा ठाकरे और स्टालिन के सामने है. अगर वे एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन कर देते हैं, तो यह मैसेज जाएगा कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन को एकजुट रखने में नाकाम है. राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठेंगे. आखिर उनके साथ खड़े होने वाले ही क्यों डगमगा जाते हैं? मोदी और शाह की राजनीति की खासियत यह है कि वे चुनावी मुकाबले को सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं मानते, बल्कि उसे मनोवैज्ञानिक लड़ाई बना देते हैं. राधाकृष्णन का नाम घोषित कर वे एक तीर से तीन निशाने साध चुके हैं. उद्धव ठाकरे को मजबूर कर दिया कि वे विरोध न कर पाएं. स्टालिन को ऐसी स्थिति में डाल दिया कि कोई भी फैसला उनके लिए भारी पड़े. राहुल गांधी को कमजोर दिखा दिया, क्योंकि विपक्षी एकता अब सवालों के घेरे में आ गई. अगर उद्धव ठाकरे और स्टालिन जैसे बड़े चेहरे समर्थन की तरफ झुकते हैं, तो विपक्षी गठबंधन में दरार साफ दिखाई देगी. उनके वोट भी कम हो जाएंगे.
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नामों को लेकर विपक्ष में दरार पड़ चुकी है। द्रमुक के प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने भी एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने गए उम्मीदवार को एक अच्छा फैसला बताया। हालांकि, उन्होंने कहा कि द्रमुक विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है और वह गठबंधन के फैसले का पालन करेगी।पहले भी जब यूपीए ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रतिभा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया था, तब शिवसेना ने एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद उनका समर्थन किया था, क्योंकि वह महाराष्ट्र से थीं। इसी तरह जब यूपीए ने प्रणब मुखर्जी को नामित किया, तो एनडीए में होने के बावजूद शिवसेना और जदयू दोनों ने अपना समर्थन दिया। ऐसे ही जब एनडीए ने रामनाथ कोविंद का नाम प्रस्तावित किया तो जदयू ने विपक्ष में होने के बावजूद उनका समर्थन किया, क्योंकि वे बिहार के राज्यपाल थे।तमिलनाडु में 32 सांसदों वाली और सबसे बड़ी पार्टी द्रमुक के सामने सबसे बड़ा सवाल यही होगा कि क्या उसे अपने राज्य से आने वाले उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए या नहीं? खासकर ऐसे वक्त पर, जब अगले साल तमिलनाडु में चुनाव होने वाले हैं। अगर राधाकृष्णन निर्वाचित होते हैं, तो वे उपराष्ट्रपति बनने वाले तमिलनाडु के तीसरे नेता बन जाएंगे।
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