भोपाल गैस त्रासदी के आरोपियों द्वारा सजा के खिलाफ भोपाल जिला न्यायालय में दायर अपील की सुनवाई गत डेढ़ दशक से लंबित होने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि लगभग ढाई दशकों तक चले प्रकरण के बाद न्यायालय ने आरोपियों को साल 2010 में सजा से दंडित किया था। इस प्रकार चार साल गुजर जाने के बावजूद भी आपराधिक प्रकरण की सुनवाई पूर्ण नहीं है। हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए अपने आदेश में भोपाल ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया है कि लंबित अपील पर त्वरित सुनवाई करते हुए मासिक प्रगति रिपोर्ट हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करें। मासिक रिपोर्ट की जांच हाईकोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश के द्वारा की जाएगी।
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भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की तरफ से दायर की गई याचिका में साल 1984 भोपाल गैस त्रासदी के आरोपियों द्वारा सजा के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई करते हुए यथाशीघ्र निराकरण किया जाए। याचिका में बताया गया था कि साल 2010 में आरोपियों को सजा से दंडित किया गया था। सजा के खिलाफ उन्होंने अपील दायर की थी, जो गत डेढ दशक से लंबित है।
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याचिका की सुनवाई के दौरान शासन की तरफ से बताया गया कि सीबीआई जांच एजेंसी है और अब भी एक आपराधिक अपील तथा एक विविध आपराधिक मामला लंबित है। अपील दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत आरोपियों को फरार घोषित करने के लिए दायर किया गया था। याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया कि आरोपी अक्टूबर 2023 से अदालत में उपस्थित हो रहा है, फिर भी अब तक कोई आदेश पारित नहीं हुआ है। युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हम 40 साल तक मामले लंबित नहीं रख सकते। युगलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिका का निराकरण कर दिया। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता राजेश चंद्र ने पैरवी की।
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