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amidst the severe cold the cows roaming on the streets got the support of bonfire
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Rajgarh: कड़ाके की ठंड के बीच सड़कों पर घूमने वाले गौवंशों को अलाव का सहारा, जानिए क्या बोले स्थानीय लोग
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, राजगढ़ Published by: राजगढ़ ब्यूरो Updated Thu, 02 Jan 2025 01:53 PM IST
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मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में पिछले कई वर्षों से सड़कों पर घूमने वाले गौवंश हमेशा चर्चा का विषय रहे है। चाहे बात उनके कारण होने वाले हादसों की हो या उनकी हादसों में जान गंवाने की, लेकिन यदि बात गौवंश के संरक्षण की हो तो वो न के बराबर देखने को मिलता है, जिसका नतीजा ये दिखाई देता है कि मौसम कैसा भी हो राजनीति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले गौवंश की चर्चा नेताओं के बयानों तक ही सीमित रहती है।
जमीनी स्तर पर उनका हाल बेहाल ही है। हाल ही में ठंड ने अपने तेवर बताना शुरू कर दिए है और प्रदेश के कई इलाकों में हाड़ कंपाने वाली ठंड देखने को मिल रही है, जिसमें हर व्यक्ति अपने आपको सुरक्षित रखने के उचित प्रयास करता हुआ नजर आ रहा है, लेकिन राजगढ़ में सड़कों पर घूमने वाले गोवंशों के लिए अलाव ही एक मात्र सहारा है, जो हाल ही में राजगढ़ के गौ प्रेमियों के द्वारा देखने को मिल रही है, लेकिन उनके इस प्रयास से वो आधी रात तक ही गौवंशों को ठंड से बचा सकते है और आधी रात के बाद गौवंश ठंड से संघर्ष करते है।
बता दें कि राजगढ़ शहर के अलग अलग चौराहे पर आमजन के लिए जलने वाले अलाव में अनोखी बात ये देखने को मिलती है। जिसमें गौवंश के लिए स्थानीय लोगों के द्वारा अलाव जलाकर उन्हें ठंड से बचाने के प्रयास किए जा रहे है, हालांकि लकड़ियां नगरपालिका और समाजसेवी संस्था और लोगों की तरफ से भी डलवाई जा रही है, लेकिन अलावा लगभग रात 2 बजे तक ही जल पाता है, जिसके बाद गौवंश इस कड़ाके की ठंड में ठंड खुद ही संघर्ष करती हुई नजर आती है, जिससे स्थानीय लोगों में नाराजगी भी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि राधा रानी गौशाला और मां बिजासन ग्रुप बढ़चौक के माध्यम से राजगढ़ में इस अनोखी पहल की शुरुआत की गई है। जिसमें नगरपालिका के साथ साथ आम नागरिकों का भी हमें सहयोग प्रदान हो रहा है और हम शहर की सड़कों पर घूमने वाले गोवंशों के लिए अलाव का इंतेज़ाम कर रहे है, लेकिन हमें अधिक लकड़ी की आवश्यकता है, क्योंकि अलाव सिर्फ रात दो बजे तक ही जल पाता है, उसके बाद गौवंश ठंड में परेशान होते हुए नजर आते है। साथ ही यह भी कहना है कि लकड़ियां खत्म होने के बाद हम इधर उधर से ढूंढकर गौवंशों को आग से बचाने की कोशिश करते है और करते रहेंगे। इन बेजुबानों को ठंड से जैसे भी हो बचाएंगे।
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