मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में सवाल उठाया गया कि जिन मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है, उनमें पुजारी के रूप में सिर्फ ब्राह्मण वर्ग की नियुक्ति क्यों हो रही है। अजाक्स संगठन ने यह याचिका लगाई है। याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार के कई विभागों से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
बताया जाता है कि याचिका में कहा गया है ऐसे मंदिर जो सरकारी जमीन पर बने हैं और राज्य सरकार के अधीन हैं। इन मंदिरों में ब्राह्मण पूजा करते हैं। इन्हें शासन तनख्वाह देता है। मध्य प्रदेश शासन के अध्यात्म विभाग द्वारा 4 अक्टूबर 2018 एवं 4 फरवरी 2019 में मंदिर विधेयक 2019 पास किया गया। अजाक्स ने इसी की संवैधानिकता को चुनौती दी है, जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने नोटिस जारी किए हैं। इस जनहित याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा की गई।
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इस पूरे मामले में विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि वैसे तो माननीय हाईकोर्ट का हम पूरी तरह सम्मान करते हैं, लेकिन अजाक्स संघ ने न्यायालय में मंदिरों पर ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व व एकाधिकार की पिटीशन लगाई है। इसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश के मंदिरों पर ब्राह्मण ही पुजारी हैं, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मध्यप्रदेश के मंदिरों में ब्राह्मणों का पुजारी पद पर एकाधिकार नहीं है यहां दलित, ओबीसी, अल्पसंख्यक व आदिवासी पुजारी हैं। अगर सरकार इसका सर्वे कराती है तो इसका पता चल जाएगा। पूर्व में मंदिरों की प्रकृति के अनुसार ही समाज की व्यवस्थाओं के अनुसार पुजारी की नियुक्ति की गई थी जो कि अब भी परंपरानुसार जारी है।
दलित वंश की परंपरा पर ब्राह्मणों का हस्तक्षेप नहीं है। ऐसा ही कुछ ब्राह्मणों की परंपरा में भी है, जहां दलित वर्ग कोई हस्तक्षेप नहीं करते हैं। बात अगर उज्जैन की की जाए तो यहां चार मंदिरों में ब्राह्मण, चार मंदिरों में ओबीसी, चार मंदिरों में दलित पुजारी हैं। ऐसा ही अन्य प्रदेशों में भी है। इसमें राजस्थान में गुर्जर समाज और खाटू श्याम में राजपूत समाज के लोग पुजारी हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह समझ नहीं आता कि एक और मंदिरों में योग्य व्यक्ति की बात की जाती है दूसरी और ब्राह्मणों का मंदिरों के पुजारी पद पर एकाधिकार बताया जाता है।
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शैलेशानंद महाराज, महामंडलेश्वर जूना अखाड़ा ने बताया कि देशकाल परिस्थिति में हर व्यवस्था में परिवर्तन किया जाता है, जिसका परिवर्तन पूजा पद्धति में भी देखने को मिलता है। कुछ मंदिरों के गर्भग्रह और प्रतिमा के नजदीक सिर्फ ब्राह्मण को जाने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत सभी नियमों का पालन करना भी आवश्यक होता है। वर्तमान में दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में अन्य वर्ग के पुजारी की नियुक्ति की गई है, लेकिन मैं बताना चाहूंगा कि ब्राह्मण जाति नहीं बल्कि उच्च विचार व ऐसी परंपरा है जो कि निरंतर अध्ययन से आता है।

पं महेश शर्मा, पुजारी महाकाल मंदिर- फोटो : credit