प्रदेश सरकार द्वारा राज्यवृक्ष खेजड़ी की कटाई पर दी गई छूट का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है। पर्यावरणविद् एवं पीपुल फॉर एनीमल्स के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू ने इस फैसले को अमृतादेवी बिश्नोई और 363 बलिदानियों का अपमान करार दिया है। उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार अमृतादेवी बिश्नोई पुरस्कार देकर वन्यजीवों और पेड़ों के संरक्षण की बात करती है, तो दूसरी तरफ खेजड़ी जैसे महत्वपूर्ण वृक्ष की कटाई की छूट देकर दोहरी नीति अपना रही है।
उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 1730 में अमृतादेवी बिश्नोई सहित 363 लोगों ने खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे। यह बलिदान पर्यावरण और प्रकृति प्रेम की अनूठी मिसाल है। अगर खेजड़ी वृक्ष की कटाई को कानूनी मंजूरी ही देनी थी, तो इसे राज्यवृक्ष घोषित करने की जरूरत ही क्या थी?
बाबूलाल जाजू ने वन क्षेत्र के घटने और पर्यावरणीय असंतुलन को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि 1950 में राजस्थान का वन क्षेत्र 13.5% था, जो अब घटकर मात्र 9% रह गया है। वहीं, राज्य की जनसंख्या बढ़कर 7.5 करोड़ हो चुकी है, लेकिन वनों की सघनता घटती जा रही है। लगातार घटते वन क्षेत्र के कारण प्रदेश का तापमान बढ़ता जा रहा है, जिससे भविष्य में गंभीर पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो सकता है।
बिश्नोई समाज पिछले छह महीनों से खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। सरकार की इस उदासीनता से पर्यावरण प्रेमियों में रोष व्याप्त है।
पर्यावरणविद् जाजू ने सरकार से खेजड़ी वृक्षों की कटाई पर तुरंत प्रभाव से पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने जल्द कदम नहीं उठाए तो राजस्थान का पर्यावरणीय संतुलन पूरी तरह से बिगड़ सकता है।
उन्होंने प्रदेशवासियों से "वन बचाओ, राजस्थान बचाओ" अभियान से जुड़ने की अपील की और सभी पर्यावरण प्रेमियों से खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया।