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Karauli News effect of modern style of agriculture on cattle fair of princely era number of animals decreased
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Karauli News: रियासत कालीन पशु मेले पर कृषि की आधुनिकता शैली का असर, घटी पशुओं की संख्या, सिर्फ ऊंटों तक सिमटा
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, करौली Published by: करौली ब्यूरो Updated Thu, 20 Feb 2025 04:11 PM IST
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एक समय था जब करौली जिले में लगने वाले रियासत कालीन पशु मेले का अलग ही माहौल दिखाई देता था। यहां लगने वाले पशु मेले की राजस्थान में एक अलग ही पहचान थी। पशुपालक भी बड़ी संख्या में पशु खरीदने के लिए यहां पहुंचते थे और उनमें एक ही उत्साह नजर आता था। लेकिन अब आधुनिकता के दौर में यह मेला फीका नजर आ रहा है। इस मेले में पशुओं की संख्या में कमी देखी गई है। अगर पशुओं की बात करें तो सिर्फ ऊंट के अलावा अन्य जानवर कम ही नजर आ रहे हैं।
एक्सपर्ट ब्रह्म कुमार पांडेय ने बताया कि यह मेला रियासत कालीन समय से लगता हुआ आ रहा है। यह राजस्थान के प्रमुख पशु मेलों में से एक है। इस मेले में कई वर्षों पहले गाय, बैल, भैंस और बकरी देखने को मिलती थी। इनमें से बैल की खरीदारी करने के लिए पशुपालक प्रदेश के अलग-अलग कोने से आते थे। लेकिन किसानों का रुख आधुनिक तकनीक के अनुसार ढल गया है।पुराने समय में किसान बैलों की अत्यधिक खरीदारी करते थे। लेकिन समय में जैसे ही बदलाव आया तो अब ट्रैक्टर की खरीदारी और रुझान ज्यादा देखने को मिल रहा है। इससे साफ जाहिर होता हैं कि इस आधुनिक दौर में ट्रैक्टर ने जानवर (बैलों) की जगह पर कब्जा कर लिया है। यही वजह है कि इस मेले में ऊंटों के अलावा अन्य जानवर कम ही नजर आ रहे हैं।
मेले में घटी बैलों की संख्या
शहर के मेला दरवाजा स्थित पशु मेले का शुभारंभ 12 फरवरी से शुरू हुआ है। इसमें 7वें दिन ऊंटों की संख्या तो बढ़ने के आसार थे। लेकिन पशुपालक ज्यादा रुचि नहीं ले रहे, क्योंकि पांचवें दिन ऐसा लगा कि ऊंटों की संख्या में इजाफा होगा। लेकिन अब वर्तमान में संख्या घटने की ओर अग्रसर है। वहीं, बैलों की बात करें तो पूर्वकाल समय में किसान बैलों का उपयोग अधिक करते थे और पशुपालक प्रदेश के अलग-अलग कोने से बैलों को लेकर खरीद-फरोख्त के लिए आते थे। लेकिन अब बात की जाए मेले की तो दुधारू पशु नगण्य हो चुके हैं। इनकी जगह अब मेले में ऊंटों ने ले ली है। क्योंकि कहा जाता है, पहले बैलों का पूजन किया जाता था। लेकिन अब किसानों के पास बैल देखने तक नहीं मिलते हैं।
आधुनिक तकनीक का पड़ा प्रभाव
प्रदेश में अलग-अलग जगह पशु मेला का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में दुधारू जानवर जैसे गाय, बैल, भैंस और बकरी जैसे अन्य जानवर आते थे। लेकिन इस आधुनिक तकनीक के युग में बैलों को पसंद करने की जगह किसान ट्रैक्टर को करने लगा है। क्योंकि किसान के पास कार्य करने के लिए समय कम रहता है और किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली लेने में सक्षम हैं। लेकिन पुराने समय में पशुओं का उपयोग इसलिए किया जाता था। क्योंकि किसानों के पास इतना पैसा नहीं था, जिससे ट्रैक्टर खरीद भी सकें। लेकिन ज्यादा पुराने समय की बात की जाए तो तब किसानों के अलावा जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए ट्रैक्टर का सहारा तक नहीं था। इसलिए अधिकनीक तकनीक का प्रभाव देखने को मिल रहा है।
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