शारदीय नवरात्रि के तहत आज हम आपको सिरोही जिले के माउंटआबू स्थित अतिप्राचीन अर्बुदादेवी (अधरदेवी) मंदिर के बारे में बता रहे हैं। यहां मां दुर्गा अपने छठे रूप कात्यायनी के रूप में पहाड़ों के ऊपर गुफा में विराजमान हैं। इसके साथ ही यह मंदिर देश में 51 शक्तिपीठों में से एक है। वैसे तो यहां सालभर श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी रहती है, लेकिन जब बात नवरात्रि की हो तो यहां पर दिनभर मेले सा माहौल बना रहता है।
माउंटआबू प्रदेश का केवल हिल स्टेशन नहीं है बल्कि, धार्मिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यहां विभिन्न क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक पौराणिक धरोहरे हैं। इनमें से एक है यहां स्थित अर्बुदादेवी (अधरदेवी) मंदिर। देलवाड़ा मार्ग पर अरावली पर्वतमाला की ऊंची चोटी पर प्राकृतिक गुफा में माता अर्बुदादेवी (अधरदेवी) मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी के रूप में विराजमान हैं। माताजी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। नवरात्रि में तो श्रद्धालुओं को तो लंबी लाइनों में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।
यह भी पढ़ें- Actor Veer Sharma Death: बेटों के शव देख सुध खो बैठी एक्ट्रेस मां, बोली- दोनों अभी उठकर करेंगे पढ़ाई और मस्ती
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती की मृत्यु के बाद उनके शरीर को लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था। इस दौरान सती के होंठ (अधर) माउंटआबू में गिरे थे। इसके कारण इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली थी। इसके साथ ही मंदिर का नाम अधरदेवी पड़ा था। इसके साथ ही ऋषि वशिष्ठ ने माउंटआबू के शिखर पर एक यज्ञ किया था ताकि पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए देवताओं से सहायता प्राप्त की जा सके।
परमार राजवंश, जिन्होंने 9 वीं से 14वीं शताब्दी तक पश्चिम-मध्य भारत के मालवा और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया, का अर्बुदादेवी मंदिर से गहरा संबंध माना जाता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि परमार शासकों की उत्पत्ति माउंटआबू के ‘अग्निकुंड’ से हुई थी और अर्बुदा देवी उनकी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती थीं। अग्निकुंड की कथा, जो परमारों की उत्पत्ति को माउंट आबू से जोड़ती है, इस राजवंश की अर्बुदा देवी के प्रति गहरी भक्ति का एक मजबूत पौराणिक आधार प्रदान करती है। यह संभावना है कि उनके शासन के दौरान मंदिर को महत्वपूर्ण समर्थन और मान्यता मिली होगी। माउंटआबू क्षेत्र पर 10वीं शताब्दी के अंत से 13वीं शताब्दी के अंत तक परमारों की चंद्रावती शाखा का शासन था, जिसकी राजधानी चंद्रावती थी।
यह भी पढ़ें- Rajasthan News: डूंगरपुर में युवक की मौत की अफवाह से तनाव, पुलिस की गाड़ी पर पथराव; दोवड़ा छावनी में तब्दील