Bihar Election: कोई नहीं बोलेगा! बिहार चुनाव से गायब हो गया परिवारवाद का मुद्दा; वजह बता रही यह रिपोर्ट
Leaders With Family : पीएम मोदी भी आ रहे हैं। पहले बोलते रहें हैं। इस बार नहीं बोलेंगे। बोलेंगे तो खुद ही घिर जाएंगे। बिहार विधानसभा चुनाव से क्या गायब हो गया परिवारवाद का मुद्दा और ऐसा है तो क्यों? सूची के नाम गिनते थक जाएंगे आप!

विस्तार
अधिवक्ता का बेटा/बेटी वकील बने या चिकित्सक का बेटा/बेटी डॉक्टर बने या पत्रकार का बेटा/बेटी मीडियाकर्मी बने- इसे 'परिवारवाद' नहीं कहा जाता है। वजह यह कि कोई वकील, डॉक्टर या मीडियाकर्मी अपनी पढ़ाई या काबिलियत से बनता है। ऐसे कई पेशे हैं। लेकिन, राजनीति कोई पेशा नहीं। देश-क्षेत्र-समाज की सेवा है। और, यहां शिक्षा की अनिवार्यता नहीं है। निरक्षर भी मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बन सकते हैं। इसलिए, जब-जब कोई राजनेता अपने परिजन या उत्तराधिकारी को आगे करता है- परिवारवाद की बात चल निकलती है। बिहार विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा सामने आया है। कहीं राजनेता पति ने पत्नी को लांच किया है, कहीं राजनीतिक विरासत में बेटा/बेटी/बहू/दामाद/भतीजे/भांजे को आगे किया गया है।


परिवारवाद इस चुनाव में बनेगा मुद्दा?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दोनों चरणों के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। परिवार के लोगों को टिकट देने की खबरें लगातार आईं। अब जिन्हें मैदान में रहना है, उतर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी दल के लिए यह मुद्दा होगा? सीधा जवाब पूछे तो- नहीं। क्योंकि, आम परिभाषा के तहत इस चुनाव में वामपंथियों को अपवाद मानकर चलें तो सभी दलों से कोई न कोई, किसी राजनीतिक परिवार का जरूर है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्रा कहते हैं- "बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में परिवारवाद कोई मुद्दा नहीं है, यह तो अब परंपरा के रूप में स्थापित है। जनता इसे स्वीकार कर रही है। अविभाजित बिहार ने देखा था कि पुराने रजवाड़े कैसे नौकर-चाकर को भी सदन में भेज दिया करते थे। फिर सीधे कुर्सी सौंपते हुए भी बिहार ने देख लिया। और, अब तो पीएम नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह भी इसपर कुछ शायद ही बोल सकें क्योंकि भाजपा में भी यह खूब चल रहा है।"

बिहार विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट से पहले यह चर्चा कई बार उड़ाई गई कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत कुमार को लांच करेंगे। 'अमर उजाला' ने ऐसी हर चर्चा का खंडन करते हुए आधार बताया कि क्यों नीतीश कुमार ऐसा नहीं करेंगे। दरअसल, नीतीश कुमार हर बार परिवारवाद के खिलाफ बोलते रहे हैं। वह अगर बेटे को लांच करते तो उनके सिद्धांतों पर सवाल उठता और यह इस चुनाव में उन्हें कमजोर भी करता। बाकी, बिहार की तमाम बड़ी हस्तियों को देखें तो हर तरफ परिवार के लोगों को आगे बढ़ाने का उदाहरण दिखता है। आगे देखिए कि कितने तरह से परिवार-परिजनों को आगे बढ़ाया गया, जिसके कारण 'राजनीति में परिवारवाद' का मुद्दा उठता रहा है।

परिवारवाद किसे कहेंगे, बिहार के उदाहरण से फैसला आप करें
प्रकार 1 : जेल की नौबत आई तो पत्नी को सीएम की कुर्सी सौंपी
- लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में वारंट जारी हुआ तो मुख्यमंत्री पद से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। जब बात इस्तीफे की आई तो उन्होंने गृहणी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की। उनकी बनाई पार्टी ने इसे मान लिया। अब बेटे को उत्तराधिकारी बनाया। बड़ी बेटी सांसद चुनी गईं।
प्रकार 2 : अपने सामने परिजनों को वोटरों के बीच भेजा, बढ़ाया
- डॉ. जगन्नाथ मिश्रा कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे और उनके भाई ललित नारायण मिश्रा देश के रेल मंत्री भी रहे थे। जगन्नाथ मिश्रा ने राजनीति से रिटायरमेंट के पहले बेटे नीतीश मिश्रा को विरासत सौंपी। नीतीश उनकी सीट से ही विधायक चुने गए।
- भाजपा के संस्थापक सदस्यों में रहे गंगा प्रसाद लंबे समय तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। फिर गवर्नर भी बने। बेटे संजीव चौरसिया को विधानसभा चुनाव में जनता के बीच भेजा। विधायक बने। इस बार भी मैदान में हैं।
- दिवंगत राम विलास पासवान राजनीति में जमे तो भाइयों रामचंद्र पासवान और पशुपति पारस को भी विधायक-सांसद के चुनाव में उतारा। फिर बेटे चिराग पासवान को जनता के बीच भेज दिया। आज की तारीख में चिराग केंद्रीय मंत्री हैं।
- जीतन राम मांझी राजनीति में जमे तो बेटे को सदन तक लेकर आए। फिर, बहू-समधन को भी। खुद केंद्रीय मंत्री हैं तो बेटे विधान परिषद् सदस्य और बिहार में मंत्री हैं। इस चुनाव में बहू, दामाद, समधन को फिर उतार कर चर्चा में हैं।
प्रकार 3 : परिवार के नेता के निधन के बाद चुनाव में उतरे
- सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह की साख ऐसी थी कि पार्टी छोड़ कर निर्दलीय भी जीत गए थे। उनके निधन के बाद पत्नी पुतुल कुमारी सांसद बनीं। शूटिंग में नाम कर रही बेटी श्रेयसी जमुई विधायक हैं। फिर मैदान में हैं।
- 2005 में पटना पश्चिम से भाजपा विधायक चुने जाने के बाद नवीन किशोर सिन्हा का निधन हो गया था। बेटे नितिन नवीन तब पढ़ ही रहे थे। मां ने संबल दिया और पार्टी ने टिकट दिया। तब से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं।

यह सूची देखने के बाद लगेगा, परिवारवाद तो कोई मुद्दा ही नहीं
- राष्ट्रीय जनता दल- सांसद सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ सिंह, पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब, विधान पार्षद विनोद जायसवाल के बेटे विशाल जायसवाल, पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पौत्री करिश्मा राय, पूर्व मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि कुमार, झारखंड सरकार के मंत्री संजय यादव के बेटे रजनीश भारती, जदयू सांसद गिरधारी यादव के बेटे चाणक्य प्रकाश रंजन, पूर्व विधायक सुनील पुष्पम की पत्नी माला पुष्पम, पूर्व विधायक समता देवी की बेटी तनुश्री मांझी, विधायक रामविशुन सिंह के बेटे कुणाल किशोर, पूर्व विधायक अशोक सिंह की पत्नी चांदनी सिंह, विधायक किरण देवी के बेटे दीपू राणावत, पूर्व सांसद राजेश कुमार के बेटे सर्वजीत पासवान, पूर्व मंत्री शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी, पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह के बेटे व सांसद सुधाकर सिंह के भाई अजीत सिंह, पूर्व मंत्री दिवंगत रघुनाथ झा के पोते नवनीत झा, पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा, पूर्व मंत्री मुंद्रिका यादव के बेटे सुदय यादव, तसलीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज आलम, पूर्व मंत्री तुलसी प्रसाद मेहता के बेटे आलोक मेहता, पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी, पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला, विधायक कौशल यादव की पत्नी पूर्णिमा देवी, विधायक पूर्णिमा यादव के पति कौशल यादव, पूर्व विधायक शशि कुमार राय के भाई नंद कुमार राय आदि।
- भारतीय जनता पार्टी- पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के बेटे सम्राट चौधरी, डॉ. जगन्नाथ मिश्र के बेटे नीतीश मिश्रा, पूर्व विधायक दिवंगत नवीन किशोर सिन्हा के बेटे नितिन नवीन, पूर्व विधान पार्षद व पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद के बेटे संजीव चौरसिया, पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण निषाद की बहू व पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद, पूर्व सांसद गोपाल नारायण सिंह के बेटे त्रिविक्रम सिंह, विधायक स्वर्ण सिंह के पति सुजीत कुमार सिंह, सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत, पूर्व मंत्री अंबिका शरण सिंह के बेटे राघवेंद्र प्रताप सिंह, पूर्व विधायक यमुना सिंह के पोते व पूर्व विधायक ब्रज किशोर सिंह के बेटे अरुण कुमार सिंह, पूर्व विधायक सीताराम सिंह के बेटे राणा रणधीर, पूर्व विधायक कृष्णकांत सिंह के पोते व पूर्व विधायक भूमेंद्र नारायण सिंह के बेटे देवेश कांत सिंह, कोरोना संक्रमण से मृत पूर्व मंत्री विनोद कुमार सिंह की पत्नी निशा सिंह, विधायक राम नरेश प्रसाद यादव की पत्नी गायत्री देवी आदि।
- जनता दल यूनाईटेड- एमएलसी दिनेश सिंह व सांसद वीणा सिंह की बेटी कोमल सिंह, पूर्व विधायक दिनेश कुशवाहा के बेटे अजय कुशवाहा, पूर्व विधायक राजीव रंजन के बेटे रुहेल रंजन, पूर्व विधायक अशोक कुमार के बेटे मांजरिक मृणाल, पूर्व विधायक दिलीप वर्मा के बेटे समृद्ध वर्मा, पूर्व सांसद अरुण कुमार के बेटे ऋतुराज, पूर्व सांसद आनंद मोहन व पूर्व सांसद लवली आनंद के बेटे चेतन आनंद।
- हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर)- केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू और विधान परिषद् सदस्य व मंत्री संतोष कुमार सुमन की पत्नी दीपा कुमारी, उनकी मां ज्योति देवी, मांझी के दामाद प्रफुल्ल मांझी, विधायक अनिल कुमार के भतीजे रोमित कुमार।
- विकासशील इंसान पार्टी- पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी, जदयू सांसद अजय मंडल की भांजी अपर्णा मंडल, पूर्व विधायक गुलाब यादव की बेटी बिंदु यादव।
- जन सुराज पार्टी- पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रो. केके तिवारी के पुत्र तथागत हर्षवर्द्धन।
- राष्ट्रीय लोक मोर्चा- रालोमो प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता, मंत्री संतोष सिंह के भाई आलोक कुमार सिंह, पूर्व मंत्री रामलखन महतो के बेटे प्रशांत कुमार पंकज।
- लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)- चिराग पासवान के भांजे सीमांत मृणाल, पूर्व विधायक राजन तिवारी के भाई राजू तिवारी, पूर्व विधायक सुनील पांडेय के भाई हुलास पांडेय
- कांग्रेस- बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम खुद पूर्व मंत्री दिलकेश्वर राम के बेटे हैं। पूर्व सांसद दिवंगत डॉ. मनोज पांडेय के पुत्र शाश्वत केदार, पूर्व मंत्री गिरीश नारायण के बेटे संतोष मिश्रा।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- भाजपा के राज्य सचिव राम नरेश पांडे के बेटे राकेश कुमार पांडे।
- द प्लुरल्स पार्टी- जदयू के पूर्व एमएलसी दिवंगत विनोद कुमार चौधरी की बेटी और दप्पा की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी।