सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Columns ›   Opinion ›   It is time for america and india to clear the air between both countries

भारत और अमेरिका के लिए आपसी आशंकाएं दूर करने का समय

सुरेंद्र कुमार Published by: Raman Singh Updated Tue, 17 Dec 2019 05:40 AM IST
विज्ञापन
It is time for america and india to clear the air between both countries
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो) - फोटो : पीटीआई

नरेंद्र मोदी के कटु आलोचक भी मानते हैं कि 22 सितंबर को ह्यूस्टन में हुआ हाउडी मोदी कार्यक्रम अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के मानस पर छाप छोड़ने वाला सबसे बड़ा और सबसे शानदार कार्यक्रम था और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनका व्यक्तिगत रिश्ता अप्रत्याशित था। ह्यूस्टन में ऊर्जा क्षेत्र के सीईओ और न्यूयॉर्क में 42 अमेरिकी व्यावसायिक प्रमुखों के साथ विभिन्न मंचों पर हफ्ते भर की बातचीत के दौरान मोदी ने भारत को निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बताया था। ट्रंप द्वारा भारत से जीएसपी वापस लेने और स्टील, अल्यूमीनियम तथा अन्य उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने के बाद भारत ने प्रतिक्रिया स्वरूप बादाम और सेब जैसे अमेरिकी उत्पादों पर 25 फीसदी शुल्क लगाया। मोदी के बेहद आक्रामक रुख और भारत की शानदार ब्रांडिंग के कारण कुछ महीनों की नोक-झोंक के बाद भारत-अमेरिकी संबंध में सुधार हुआ है।


loader

इस तथ्य के बावजूद कि बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाए हैं, मोदी की यात्रा के सौ दिन के भीतर कल (18 दिसंबर को) वाशिंगटन में भारत के रक्षा और विदेश मंत्री की अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ दूसरी 2+2 बातचीत मौजूदा रिश्ते को समग्रता में निष्पक्ष मूल्यांकन करने में सक्षम बनाएगा और भारत की घरेलू घटनाओं के बारे में अमेरिकी बयानों के कारण पैदा होने वाली बाधाओं को दूर करने के उपायों का पता लगाया जा सकेगा। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि द्विपक्षीय मतभेद विवाद का कारण न बनें।

रक्षा व्यापार के क्षेत्र में भारी सफलता मिली है, भारत को अमेरिकी रक्षा निर्यात पिछले दस वर्ष में 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट तथा कम्युनिकेशन्स कॉम्पैटिबिलिटी ऐंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर होने के बाद अमेरिका दोनों देशों के रक्षा बलों के बीच संवेदनशील सूचनाओं और अंतर्संबंधों को नए स्तर पर ले जाने के लिए बेसिक एक्सचेंज ऐंड कोऑपरेशन फॉर जियो स्पेशियल कोऑपरेशन समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत पर दबाव डालेगा।

ऐसी भी अटकलें हैं कि दोनों देश औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध (आईएसए) पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, जिसमें अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारत की सरकारी कंपनियों के अलावा निजी कंपनियों के साथ संवेदनशील, मालिकाना प्रौद्योगिकी के साझेदारी का भी लक्ष्य है। अगर इस समझौते पर हस्ताक्षर हो जाता है, तो बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसे युद्धक विमानों के निर्माता फाइटर जेट्स के स्थानीय साझेदार के रूप में निजी भारतीय कंपनियों की तलाश कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय वायुसेना अपने बेड़े के पुराने मिग-21 की जगह फाइटर जेट्स खरीदना चाहती है। हाल ही में संपन्न पहले त्रि-सेवा अभ्यास (टाइगर ट्रायम्फ और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, जापान व फिलीपींस के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास में भारत की भागीदारी) की पृष्ठभूमि में आईएसए भारत-अमेरिकी रक्षा सहयोग में एक नया आयाम जोड़ेगा।

जीएसपी (अमेरिका द्वारा व्यापार में वरीयता देने की प्रणाली) की पूरी तरह से वापसी फिलहाल असंभव लग रही है, जिससे 5.6 अरब डॉलर का भारतीय माल प्रभावित हुआ है, पर भारतीय उत्पादों की चुनिंदा वस्तुओं पर शुल्क घटाए जा सकते हैं। अमेरिका भी भारत पर शुल्क घटाने का दबाव बनाएगा-अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधियों ने उसे सबसे ज्यादा बताया है-तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों का अनुपालन करने व अमेरिकी सोलर पैनल व कृषि उत्पादों के भारत में बाजार खोलने की मांग की जाएगी। ऐसे ही भारत सूचना प्रौद्योगिकी और फार्मेसी उत्पादों के लिए बड़े बाजार तक पहुंच बनाना चाह सकता है, हालांकि जन विरोध की आशंका को देखते हुए हमारी सरकार अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए अपना बाजार खोलने और स्टेंट व घुटने के कैप की मूल्य सीमा हटाने का विरोध कर सकती है। पर व्यापार घाटे को लेकर ट्रंप के विरोध को देखते हुए भारत को इसे कम करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। अमेरिका से गैस एवं तेल के आयात में तीव्र वृद्धि तथा भारत के रक्षा आयात से इसे काफी हद तक पाटा जा सकता है।

अनुच्छेद 370 हटाने तथा जम्मू-कश्मीर की स्थिति को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की प्रतिक्रिया से भारत में सनसनी फैल गई। विदेश मंत्री एस जयशंकर को सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि यह भारत का आंतरिक मामला है। दक्षिण एवं मध्य एशिया के लिए अमेरिका की कार्यकारी सहायक विदेश मंत्री एलिस जी वेल्स के अनुसार, 2+2 वार्ता में भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा नहीं होगी, पर कश्मीर की स्थिति और भारत की सुरक्षा चिंता पर अवश्य बात होगी। फिर भी अमेरिकी संसद में एक द्विदलीय प्रस्ताव के जरिये भारत को हिरासत में लिए गए लोगों को शीघ्र छोड़ने, संचार पर लगे शेष प्रतिबंध हटाने और पूरे जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवा बहाल करने, अत्यधिक बल प्रयोग से बचने, और अपनी वैध सुरक्षा प्राथमिकताओं को जारी रखते हुए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर आपत्ति जताते हुए इसे गलत दिशा में खतरनाक मोड़ बताया है, जो भारत के धर्मनिरपेक्ष बहुलतावाद के समृद्ध इतिहास और संविधान के खिलाफ है।

इस 2+2 वार्ता में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान तथा इराक के घटनाक्रमों, उइघुर एवं हांगकांग के प्रदर्शनकारियों के साथ चीन के बर्ताव तथा आतंकवाद पर विचारों, मूल्यांकन, धारणाओं का आदान-प्रदान भी हो सकता है। हालांकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और चतुर्भुज सांस्कृतिक सुरक्षा संवाद में भारत और अमेरिका की रुचि है, लेकिन उनकी समझ और अपेक्षाओं में अंतर है, जिनमें तालमेल बिठाना जरूरी है। लब्बोलुआब यह है कि मौजूदा वैश्विक प्रवाह में भारत और अमेरिका को करीब आना ही होगा।

विज्ञापन
विज्ञापन
Trending Videos
विज्ञापन
विज्ञापन

Next Article

Election

Followed