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Mission Election : आखिर मैनपुरी सीट पर क्यों टिकी हैं शिवपाल की निगाहें, 'सियासी जानकारों' ने बांटा ज्ञान
चंद्रभान यादव, लखनऊ
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Mon, 05 Sep 2022 06:51 AM IST
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सार
Mission Election : यहां से सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। अब उनके भाई और प्रसपा संस्थापक शिवपाल यादव ने इस सीट पर नजर गड़ा दी है। वे कहते हैं कि मुलायम चुनाव नहीं लड़े तो मैं यहां से चुनाव लड़ूंगा। उनकी इस रणनीति के सियासी मायने भी हैं।

शिवपाल सिंह यादव।
- फोटो : amar ujala
विस्तार
लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने से पहले ही मैनपुरी लोकसभा सीट सुर्खियों में हैं। यहां से सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। अब उनके भाई और प्रसपा संस्थापक शिवपाल यादव ने इस सीट पर नजर गड़ा दी है। वे कहते हैं कि मुलायम चुनाव नहीं लड़े तो मैं यहां से चुनाव लड़ूंगा। उनकी इस रणनीति के सियासी मायने भी हैं। यहां सिर्फ वोटबैंक ही मुफीद नहीं है, बल्कि सियासी कद के लिए भी इस सीट को अहम माना जा रहा है।
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अहम सवाल यह उठ रहा है कि जब शिवपाल फिरोजाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं तो फिर उनकी निगाह मैनपुरी पर ही क्यों है? इस पर सियासी जानकारों के अलग-अलग तर्क हैं। कुछ का कहना है किमैनपुरी सिर्फ लोकसभा क्षेत्र न होकर यादव लैंड का प्रतीक भी है। इस सीट के नतीजे का संदेश प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में जाएगा। इससे शिवपाल यहां से सांसद बनने का ख्वाब देख रहे हैं। शिवपाल यहां से सांसद बनकर अपने सियासी कद को राष्ट्रीय राजनीति में चमकाने के साथ प्रदेश में बेटे प्रतीक को स्थापित करने का ख्वाब देख रहे हैं। राष्ट्रीय राजनीति में इंट्री के लिए मैनपुरी सीट उनके लिए सशक्त माध्यम है।
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दूसरी अहम बात यह है कि वे मुलायम का सियासी वारिस होने का संदेश भी देना चाहते हैं। यही वजह है कि वे बार-बार यह कह रहे हैं कि मुलायम चुनाव लड़े तो उन्हें लड़ाएंगे और जिताएंगे भी। लेकिन उनकेचुनाव न लड़ने पर इस सीट पर उनका पहला दावा है। दरअसल, उन्हें यह पता है कि मुलायम बीमार हैं। ऐसे में उनके 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावना कम है। हालांकि सपा भी इस सीट को इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं है। क्योंकि सपा खेमे में भी इस सीट के लिए उपयुक्त उम्मीदवार पर विचार शुरू हो गया है।
मुलायम के चुनाव न लड़ने की स्थिति में अखिलेश के खुद मैदान में उतरने की उम्मीद है। इस सीट से सांसद रहे धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव का भी दावा है। जो परिवार के ही सदस्य हैं और सपा के साथ हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि ऐसे हालात में सपा भी किसी भी कीमत पर मैनपुरी सीट को गंवाना नहीं चाहेगी।
सपा का अभेद्य दुर्ग है मैनपुरी
इस सीट पर लंबे समय से सपा का ही कब्जा है। एक तरह से सपा के लिए यह घरेलू सीट माना गया है। वर्ष 1989 व 1991 में जनता दल से उदय प्रताप सांसद बने, लेकिन वर्ष 1996 में मुलायम सिंह यहां से पहली बार सांसद चुने गए। तब से अब तक हुए नौ लोकसभा चुनावों में यहां से सिर्फ सपा जीतती आई है। जब भी मुलायम ने इस सीट को छोड़ा तो परिवार के ही किसी न किसी सदस्य को सौंपा। इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली जसवंत नगर विधानसभा सीट से शिवपाल तो करहल से अखिलेश यादव विधायक हैं। किशनी विधानसभा सीट पर सपा के ब्रजेश कठेरिया तो भोगांव से भाजपा के रामनरेश अग्निहोत्री और मैनपुरी सदर से भाजपा के जयवीर सिंह विधायक हैं।
मैनपुरी में वोटों का गणित
मैनपुरी सीट में लगभग 17.3 लाख वोटर हैं। इनमें करीब 40 फीसदी यादव हैं। राजपूत, चौहान, भदौरिया सहित अन्य अगड़ी जाति करीब 29 फीसदी हैं। अन्य में शाक्य व मौर्य 15 फीसदी हैं। इसके बाद मुस्लिम व दलित हैं। वर्ष 2004 में मुलायम को यहां करीब 4.60 लाख वोट हासिल मिले थे और 2014 में उन्हें 595918 वोट मिले थे। वर्ष 2019 के चुनाव में उन्हें 524926 वोट मिले, जबकि भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को 430537 वोट मिले थे।