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Exclusive: तालाब में ऑक्सीजन की कमी होते ही शुरू हो जाएगी 'बारिश', MMMUT शुरू करेगा पायलट प्रोजेक्ट
राजन राय, गोरखपुर।
Published by: vivek shukla
Updated Sat, 16 Jul 2022 12:47 PM IST
सार
एमएमएमयूटी के कुलपति प्रो. जेपी पांडेय ने कहा कि नाबार्ड के साथ मिलकर विश्वविद्यालय देवरिया और कुशीनगर में पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है। यह मछली पालकों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा। टीओपी सेंसर के माध्यम से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा का सटीक आंकलन होगा।
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तालाब।
- फोटो : अमर उजाला
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अब तालाब में ऑक्सीजन की कमी से मछलियां नहीं मरेंगी। ऑक्सीजन की कमी होते ही, इंटरनेट ऑफ थिंक (टीओपी) सेंसर सक्रिय हो जाएगा। संदेश मिलते ही तालाब में लगाए गए स्प्रिंकल से कृत्रिम बारिश होने लगेगी। जो तालाब में ऑक्सीजन की मात्रा सामान्य होने तक जारी रहेगी। इस तकनीक को मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) ने विकसित किया है। विश्वविद्यालय पायलट प्रोजेक्ट के तहत राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से देवरिया व कुशीनगर में इसकी शुरूआत करने जा रहा है।
दरअसल, गर्मी बढ़ते ही तालाबों में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। जिसके चलते मछलियां मरने लगती है। मछली पालकों को इसकी जानकारी तब होती है, जब मछलियां मरकर ऊपर तैरने लगती हैं। लेकिन, एमएमएमयूटी की ओर से विकसित इस तकनीक से ऑक्सीजन की मात्रा पहले ही पता चल जाएगी और समय रहते पानी में आक्सीजन का स्तर बेहतर कर दिया जाएगा।
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MMMUT
- फोटो : अमर उजाला।
नाबार्ड ने एमएमएमयूटी को इस प्रोजेक्ट को धरातल पर लाने का प्रस्ताव दिया है। इसके तहत नाबार्ड कुशीनगर और देवरिया में तालाब उपलब्ध कराएगा और 25 लाख रुपये देगा। प्रोजेक्ट की मानीटरिंग एमएमएमयूटी के शोधार्थी और शिक्षक करेंगे। अगले महीने से इस पर काम शुरू होने की उम्मीद है।
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सांकेतिक तस्वीर।
- फोटो : Pixabay
मोबाइल पर भी देख सकेंगे तालाब में ऑक्सीजन का स्तर
टीओपी सेंसर तालाब के पास लगे यंत्र के माध्यम से लगातार पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बताएगा इसके अलावा मोबाइल फोन पर यह जानकारी उपलब्ध रहेगी। ऐसे में अगर मछली पालक कहीं बाहर भी है, तब भी वह तालाब में आक्सीजन की मात्रा की जानकारी हासिल कर सकेगा। तकनीक को आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के माध्यम से विकसित किया गया है।
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सांकेतिक तस्वीर।
- फोटो : अमर उजाला।
पीएच वैल्यू भी बताएगा
तालाब में पानी का पोटैशियम ऑफ हाईड्रोजन (पीएच) वैल्यू सात होना चाहिए। स्तर इससे कम होने पर मछलियां खतरे में पड़ सकती हैं। पानी लगा सेंसर पीएच वैल्यू भी बताएगा।
एमएमएमयूटी के कुलपति प्रो. जेपी पांडेय ने कहा कि नाबार्ड के साथ मिलकर विश्वविद्यालय देवरिया और कुशीनगर में पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है। यह मछली पालकों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा। टीओपी सेंसर के माध्यम से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा का सटीक आंकलन होगा। सेंसर, जीपीएस के माध्यम से तालाब में लगे स्प्रिंकल को संदेश देगा और कृत्रिम बारिश होने लगेगी। इससे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगेगी और मछलियां मरने नहीं पाएंगी।
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