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फर्जी IAS के नकाब के पीछे कई चेहरे: समाजसेवी, फिर अध्यापक और यूट्यूबर को ओढ़ा चोला, अब खुद को बता रहा ब्रोकर
अमर उजाला ब्यूरो, गोरखपुर
Published by: आकाश दुबे
Updated Mon, 15 Dec 2025 02:46 PM IST
सार
फर्जी आईएएस बनकर ठगी करने वाले ललित उर्फ गौरव ने समाजसेवी व यूट्यूबर के तौर पर पहचान बनाई थी। उसको लेकर नए-नए खुलासे हो रहे हैं। यहां पढ़ें पूरी खबर-
खुद को आईएएस बताकर लोगों को ठगने वाले ललित किशोर उर्फ गौरव कुमार सिंह के ठगी के नेटवर्क और कार्यशैली के चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। जांच में सामने आया है कि आरोपी ने पहले समाजसेवी के तौर पर पहचान बनाई। फिर कोचिंग सेंटर संचालक और यूट्यूबर के तौर पर भरोसे का ऐसा जाल बुना कि पढ़े लिखे लोग भी उसके झांसे में आते गए। ठगी के तमाम मामले सामने आने के बाद उसके सारे नकाब हट चुके हैं और असली चेहरी सामने आ गया है।
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फर्जी आईएएस गौरव कुमार सिंह
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
ललित ने सबसे पहले बिहार के बांका जिले में ललित वेलफेयर सोसाइटी नाम से एक एनजीओ शुरू किया था। समाज सेवा के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए, उसने राज्यपाल स्तर से प्रशस्ति पत्र भी हासिल किया। कोरोना काल में मास्क और सेनेटाइजर वितरित कर उसने समाजसेवी के तौर पर छवि बनाई।
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फर्जी आईएएस का साथी
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
रांची में आयोजित एक कार्यक्रम में भी राज्यपाल द्वारा उसे प्रशस्ति पत्र दिया गया, जिसे वह अपनी वैधता के प्रमाण के रूप में हर जगह दिखाता था। एनजीओ के बाद उसने लेन-देन और अन्य गतिविधियों वधियों को वैध दिखाने के लिए आदित्य-30 नाम से कोचिंग सेंटर खोला। बाबू टोला, अलीगंज और बांका-कटोरिया रोड पर कार्यालय बनाए। हाईफाई कोचिंग के तौर पर शोहरत के लिए स्कूलों में जाकर टेस्ट कराने लगा।
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फर्जी आईएएस ललित किशोर उर्फ गौरव कुमार
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
यूट्यूबर बनाकर जिला प्रशासन से जुड़े सोशल मीडिया ग्रुपों में घुसा
जिस भी स्कूल में जाता, वहां खुद को शिक्षा विभाग के किसी बड़े अधिकारी का रिश्तेदार बताता जिससे लोग प्रभावित हों। यूट्यूबर के तौर पर जिला प्रशासन के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ा जालसाज ललित ने खुद को यूट्यूबर बताते हुए जिला प्रशासन से जुड़े व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया ग्रुप में भी जगह हासिल कर ली।
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फर्जी आईएएस की लाल बत्ती लगी गाड़ी
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
इससे उसे अधिकारियों की गतिविधियों, बैठकों और स्थानांतरण जैसी सूचनाएं आसानी से मिलने लगीं। बाद में इन्हीं जानकारियों का इस्तेमाल वह आईएएस के तौर पर अपनी फर्जी पहचान को मजबूत करने में करता था।
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